भारत में विवाह को एक पवित्र धार्मिक और सामजिक संस्कार माना जाता है । षोडश संस्कारों में से यह एक अनिवार्य संस्कार है । जाति , धर्म, भाषा ,देश ,आर्थिक स्तर और कुटुंब की अनदेखी कर किये जाने वाले गन्धर्व विवाह या प्रेम विवाह के संकेत जातक की कुंडली में भी मिलते हैं ।
कुंडली में प्रेम विवाह के योग
- लग्नेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन या युति होना प्रेम विवाह का कारण बनता है ।
- पंचम भाव एवं सप्तम भाव प्रेम विवाह में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । पंचमेश एवं सप्तमेश की युति पंचम या सप्तम भाव में होना या दोनों का राशि परिवर्तन करना या पंचमेश और सप्तमेश में दृष्टि सम्बन्ध होना प्रेम - विवाह का कारण बनता है ।
- गुरु और शुक्र दाम्पत्य जीवन में पति और पत्नी के कारक ग्रह हैं । लड़कियों के जन्मपत्री में गुरु का पाप प्रभाव में होना और पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह का पाप प्रभाव में होना प्रेम - विवाह की सम्भावना को बढ़ाता है ।
- लग्नेश एवं पंचमेश की युति या दृष्ट सम्बन्ध या राशि परिवर्तन प्रेम विवाह योग को उत्पन्न करता है ।
- राहु का लग्न / सप्तम भाव में बैठना और सप्तम भाव पर गुरु का कोई प्रभाव न होना प्रेम विवाह का कारण बन सकता है ।
- नवम भाव में धनु/मीन राशि हो और शनि/राहू की दृष्टि सातवें भाव, नवम भाव और गुरु पर हो तो प्रेम विवाह होता है ।
- सातवें भाव में राहु + मंगल हों ।
- राहु + मंगल + सप्तमेश तीनों वृष /तुला राशि में हो तो प्रेम -विवाह का योग बनता है ।
- जन्मलग्न ,सूर्यलग्न और चन्द्रलग्न में दूसरे भाव और उसके स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो भी प्रेम विवाह होता है ।
- कुंडली का दूसरा भाव पाप प्रभाव में हो या उसका स्वामी शुक्र, राहु शनि के साथ बैठा हो और सप्तमेश का सम्बन्ध शुक्र ,चन्द्र एवं लग्न से हो ।
- जन्म लग्न या चन्द्र लग्न में शुक्र का पांचवे / नवें भाव में बैठना प्रेम विवाह का कारण बनता है ।
- लग्न में लग्नेश +चन्द्रमा हो तो प्रेम विवाह होता है या सप्तम में सप्तमेश + चन्द्रमा हो तो भी प्रेम - विवाह हो सकता है ।
द्वारा
गीता झा