Monday, August 10, 2015

कैसे जाने की कुंडली में प्रेम विवाह है की नहीं ?

भारत में विवाह को एक पवित्र धार्मिक और सामजिक संस्कार माना जाता है । षोडश संस्कारों में से यह एक अनिवार्य संस्कार है । जाति , धर्म, भाषा ,देश ,आर्थिक स्तर  और कुटुंब की अनदेखी कर किये जाने वाले गन्धर्व विवाह या प्रेम विवाह के संकेत जातक की कुंडली में भी मिलते हैं  । 

कुंडली में प्रेम विवाह के योग 
  1. लग्नेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन या युति होना प्रेम विवाह का कारण  बनता है । 
  2.  पंचम भाव एवं सप्तम भाव प्रेम विवाह में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । पंचमेश एवं सप्तमेश की युति पंचम  या सप्तम भाव में होना या दोनों का राशि परिवर्तन करना या पंचमेश और  सप्तमेश में दृष्टि सम्बन्ध होना प्रेम - विवाह का  कारण बनता है । 
  3. गुरु और शुक्र दाम्पत्य जीवन में पति और पत्नी के कारक ग्रह हैं । लड़कियों के जन्मपत्री में  गुरु  का पाप प्रभाव  में होना और पुरुष की कुंडली में शुक्र  ग्रह का पाप   प्रभाव   में होना  प्रेम - विवाह  की सम्भावना को बढ़ाता है । 
  4. लग्नेश एवं  पंचमेश की युति या दृष्ट सम्बन्ध या राशि परिवर्तन प्रेम विवाह योग को उत्पन्न करता है । 
  5. राहु का लग्न / सप्तम भाव में बैठना और सप्तम भाव पर गुरु का कोई प्रभाव न होना प्रेम विवाह का कारण बन सकता है । 
  6. नवम भाव में धनु/मीन राशि हो और शनि/राहू की दृष्टि सातवें भाव, नवम भाव और गुरु पर हो तो प्रेम विवाह होता    है ।
  7. सातवें भाव में राहु + मंगल हों ।
  8. राहु + मंगल + सप्तमेश तीनों   वृष /तुला राशि  में हो तो प्रेम -विवाह का   योग बनता है । 
  9. जन्मलग्न ,सूर्यलग्न और   चन्द्रलग्न में दूसरे भाव और उसके   स्वामी  का सम्बन्ध मंगल से हो तो भी प्रेम विवाह   होता है ।
  10. कुंडली  का दूसरा भाव पाप प्रभाव  में हो या उसका स्वामी शुक्र, राहु शनि के साथ  बैठा हो  और सप्तमेश का सम्बन्ध शुक्र ,चन्द्र एवं लग्न से हो  ।
  11. जन्म लग्न या चन्द्र लग्न में  शुक्र का पांचवे / नवें भाव में बैठना प्रेम  विवाह का  कारण बनता है ।
  12. लग्न  में लग्नेश +चन्द्रमा हो  तो प्रेम विवाह होता  है या सप्तम में सप्तमेश + चन्द्रमा  हो तो भी प्रेम -  विवाह हो सकता है  । 
द्वारा 
गीता झा