Friday, June 27, 2014

Selfie or Self-Portrait of Consciousness

विज्ञान के लिए जो अज्ञात हैं उसे वह डार्क-एरिया  घोषित कर चूका हैं. इसलिए अभी तक सूक्ष्म सत्ता चेतना से उसका परिचय नहीं हुआ हैं. सर्वप्रथम Einstein के विषय में , वे अपने जीवन के अंतिम समय पर ऋषियों के मायावाद सिद्धांत पर पहुँच गए थे. उन्होनें बताया की काल और स्थान सापेक्ष  हैं और वे प्रकाश के माप पर आधारित हैं. इस आधार पर वे unified - field -thoery सिद्ध करना चाहते थे.

आइन्सटाइन की unified theory के अनुसार ,ब्रह्माण्ड में कोई एक एकात्म - क्षेत्र [unified -field ] ऐसा हैं जिसमें विधुत शक्ति, चुम्बकीय बल और गुरुत्वाकर्षण बल भी होता होगा..यह क्षेत्र इन तीनों से युक्त और मुक्त भी होगा. यहीं वो तत्व हैं जो प्रकाश को धारण कर उसकी गति से किसी भी वास्तु को स्थानान्तरित कर सकता हैं. पदार्थ को शक्ति में बदल कर उसे कहीं भी सूक्ष्म अणुओं के रूप में बहाकर ले जा सकता हैं. यह फील्ड ऊर्जा के अत्यंत उच्चतम आयाम पर होता हैं .इसमें विद्युतीय ,चुम्बकीय और गुरुत्वाकर्षण के एकीकृत गुण पाए जातें हैंयह फील्ड ही कुछ कणों को भार देता हैं कुछ को नहीं देता हैं. यही फील्ड पदार्थ ,ऊर्जा और चेतना को आपस में अंतर्परिवार्तित करता  हैं.

यह रहयात्मक फील्ड विभाजन की सूक्ष्मतम इकाइयों से बना होता हैं,
जो God -Particle या ब्रह्मोन कहलातें हैं.

मायावाद सिद्धांत के अनुसार यह संसार वास्तविक नहीं हैं केवल भासता 
[आभास मात्र] हैं. अर्थात केवल चेतना हैं जो स्वनिर्धारित और 
स्वनिर्देशित है और अपनी इच्छा अनुसार कभी पदार्थ और कभी ऊर्जा का 
रूप ले लेती हैं.


ऐसा मानिये की समस्त संसार केवल उच्च और निम्न आवृति वाली 
तरंगों से निर्मित हैं.यदि कम्पन की गति निम्न दिशा में होगी तो वह  
पदार्थ रूप में दृष्टिगत  होगा यदि कम्पन उच्च आवृति के होंगेंतो वह  
अदृश्य ऊर्जा के रूप में होनें,और उच्चतम स्तर पर वह चेतना के रूप में 
होंगें.
इसे  आप साधारण भाषा में रामचरितमानस  की पंक्तिओं से समझे……..

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥१॥

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सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।

यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते परहिं भवकूपा॥८॥

अर्थात ब्रह्म [चेतना] अपने को अपनी इच्छानुसार निराकार [ऊर्जा] से आकार [शिशु] रूप में व्यक्त कर सकता हैं.इसलिए चेतना अपने अन्दर असीमित मात्र में ऊर्जा और पदार्थ समाये रखती हैं.

मीरा का कृष्ण की मूर्ति में समा जाना मात्र यह इंगित करता हैं की mass [भारचेतना में परिवर्तित हो गई.

 जैसे सिक्के के दो पहलू होतें हैं और यदि चित्त  को देखतें हैं तो पट भी दूसरी तरफ होता हैं लेकिन हम देख नहीं रहे तो भी वह अपना अस्तित्व नहीं खोता हैं ,उसी प्रकार चेतना के दो पहलू हैं पदार्थ और ऊर्जा और चेतना निर्धारित करती हैं की हम कौन सा पहलू देखें लेकिन इससे दूसरा आयाम ख़तम नहीं हो जाता हैं.

भौतिक जगत में पदार्थ और ऊर्जा E=MC2 के अनुसार एक दूसरे से सम्बंधित  हैं उसी प्रकार चेतना ,ऊर्जा और पदार्थ भी एक समीकरण द्वारा आपस में सम्बन्ध रख कर अपना रूप परिवर्तित करतें होंगें.
Ec= M Vt 2

Ec = energy of consciousness

M=mass 

Vt = velocity of thought waves 

 इसमें  केवल संभावना व्यक्त की हैं की यदि कभी विचारों की वेलोसिटी को नापा जा सका तो हम चेतना के उच्च स्तर की ऊर्जा को नाप सकतें हैं | हमारे अनुसार भावविचार और प्रकाश भी अणुओं से बने हैं तभी वे यात्रा करतें हैं.
गॉड़ - पार्टिकल या ब्रह्मोन :


ब्रह्मोन बुनयादी कण हैं जिनसे पूरी सृष्टि बनी हैं. ये रचना या सृजन की आधारभूत इकाई हैं. ये कण सदैव संतुलन और पूर्णता की स्थति में रहतें हैं.
 ब्रह्मोन कण अपने को व्यक्त[पदार्थ ] या परोक्ष[उर्जा] रूप में व्यक्त कर सकतें हैं.इन कणों की अनंत वाइब्रेशन , फ्रिक्वेन्सि और ऊर्जा होती हैं. 
ब्रह्मोन कण अंतिम सूक्ष्मतम बिंदू और अंतिम एकीकृत पूर्ण हैं. ये कण पूर्ण,सम्पूर्ण, अमर्त्य ,अनंत ,असीमित, कालातीत , सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं. 

एक ब्रह्मोन,एक मूलभूत इकाई,एक नियम और एक दैविक चेतना जिसके तहद समस्त सृष्टि गति या कार्य करती हैं.



  द्वारा 

गीता झा 

Monday, June 23, 2014

वेद के आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति की गणना

 वेद संसार के अद्भुत ज्ञान का भंडार है   सभी विद्याओं का मूल वेदों में विद्यमान  है वेदों के प्राचीन भाष्यकार  महर्षि सायणाचार्य ने कहा है कि वेद वे प्राचीन ग्रन्थ हैं जिनमें इच्छित पदार्थो की प्राप्ति और अनिष्टकारी  संभावनाओं से सुरक्षित रहने के दिव्य उपाय बताये गये हैं - जैसे इस भौतिक जगत को देखने के लिए नेत्रों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार दिव्य तत्वों को जानने तथा समझने के लिए वेदरूपी नेत्रों की आवश्यकता होती है अतः वेद दिव्य तथा अलौकिक तत्वों को लौकिक रूप से लाभदायी बनाने की सेतु है परंतु इससे पहले उस अलौकिक तत्वों को जानने तथा समझने  की अति आवश्यकता है



समय-2 पर भारतीय  मनीषियों ने अलौकिक तत्वों के सरलीकरण की प्रक्रिया को जारी रखा इसी सन्दर्भ में वेदव्यास जी का प्रयास सराहनीय है   आरम्भ में वेद एक ही था परंतु बाद में श्रीकृष्ण द्वैपायन महामुनि व्यास जी ने वेद को चार भागों में विभाजित किया - ऋृग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद इसमें ऋृग्वेद प्राचीनतम है आज वेद के ज्ञान को समझने तथा उसे मानवोपयोगी बनाने की जरूरत है आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना जेम्स क्लर्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell)  ने 19वी ताब्दी में की थी परंतु महर्षि सायण, जो वेदों के महान भाष्यकार थे, ने 14वीं ताब्दी में ही प्रका की गति की गणना ऋृग्वेद के आधार पर कर डाली थी यथा -

   तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि  सूर्य
            विश्वमा भासि रोचनम्  ।।

 ।।ऋृग्वेद 1.50.4।।

अर्थात् हे सूर्य ! तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रका के दाता और जगत् को प्रकाशि करने वाले हो

इसी पर भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने लिखा है -
  
 तथा स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे ते-द्वे योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण   नमोस्तुते ।।                      

 ।। सायण ऋृग्वेद भाष्य  1.50.4 ।।    

                 
  अर्थात् आधे निमे में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रका तुम्हें नमस्कार है

 कई विद्वानों ने इसके बारे में यह बताया है कि यहा पर सूर्य के प्रका की गति की नहीं बल्कि सूर्य की गति की बात कही गयी है परंतु इस संदर्भ में यह बात स्पष्ट है कि महर्षि सायणाचार्य जो कि वेद के भाष्यकार थे तथा गणित के भी विद्वान थे, अपने पूर्ववर्ती विद्वानों आर्यभट्ट, वाराहमिहिर इत्यादि के सिद्धातों से तो अवगत होंगे ही जिनमें सूर्य को हमारे सौरमंडल के संदर्भ में स्थिर ही माना गया है अतः सूर्य की गति की जगह सूर्य के प्रकाश की गति के सन्दर्भ में ही सायणाचार्य के उपर्युक्त सिद्धांत है  
           
            उपर्युक्त सिद्धान्त के आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति निकालने से पहले हमें निमेष  तथा योजन के बारे में जानने की आवष्यकता है

निमेष की गणना -
   महाभारत के  शांतिपर्व के आधार पर
15       निमेष =       1          काष्ठा
30       काष्ठा   =       1          कला
30.3   कला     =       1          मूहुर्त
30       मूहुर्त   =       1          अहोरात्र
1          अहोरात्र          =       1          दिन-रात
1          दिन-रात        =         24       घंटे           
अतः 24 घंटा = 30x30.3x30x15 निमेष = 24x60x60 सेकेण्ड
अर्थात् 409050 निमेष =86,400 सेकेण्ड
1  निमेष = 0. 2 112  सेकण्ड 
अतः  1/2 निमेष  = 0.1056 सेकेण्ड      ---------- A

योजन की गणना -

  जहां तक दूरी का सवाल है तो हमारे पुराणों में योजन को एक प्रामाणिक इकाई माना गया है इसकी गणना इस प्रकार होती है -
10 परम अणु  = 1  परमसूक्ष्म 
10 परमसूक्ष्म   = 1  त्रषेणु   
10  त्रषेणु   = महिराजस [ धुल का कण ]
10  महिराजस = 1 बलाग्रा 
10 बलाग्रा =  लिख्षा 
10 लिख्षा  = 1  युका 
10  युका = यवोदरा 
10  यवोदरा = 1 यव [ मध्यम  आकार  के जौ के दाने की  लम्बाई ]
10 यव = 1  अंगुल [ 1 . 89 cm  या लगभग 3 /4  इंच ]
6  अंगुल  = 1 पदा 
2 पदा  = 1  विष्टि 
1  विष्टि = 1  हस्त [ क्यूबिट ]
4  हस्त = 1  धनु [ मनुष्य की लम्बाई ] 
5 धनु = 1  रज्जु 
2  रज्जु = 1  परिदेश 
100 परिदेश = 1  कोस = 2.25 मील 
4  कोस = 1  योजन = 9.09 मील 
या धनु के बाद की गणना इस प्रकार  कर सकते हैं : 
2000 धनु = 1  गवयुति  [ यह दूरी  जहां तक एक गाय की ध्वनि सुनाई पड़ती है ] = 12000   फीट 
4  गवयुती  = 1  योजन 
1  योजन = 48,000 फीट = 9 . 09  मील             
अर्थात् 1 योजन = 9.09 मील    -------- B

महर्षि सायण ने जो सूत्र दिया अर्थात् सूर्य का प्रकाश 1/2 निमेष  में 2202 योजन चलता है - इसे उन्होंने कैसे निकाला है इसकी जानकारी हमें नही है परंतु इसके आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति इस प्रकार है -

प्रकाश की गति   = 2202 योजन प्रति  1/2 निमेष 
                                 = 2202 योजन प्रति 0.1056 सेकेण्ड  - समीकरण ‘Aसे
                                  =  2202x9.09 मील प्रति 0.1056 सेकेण्ड -समीकरणBसे
                                  =  189547.15909 मील प्रति सेकेण्ड

अर्थात् ऋृग्वेद के आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति  = 1,89,547 मील प्रति सेकेण्ड परन्तु आधुनिक विज्ञान के आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति  =1,86,286  मील प्रति सेकेण्ड  है इस संदर्भ में हम भारतवासी का पुनीत कर्तव्य हो जाता है कि वेद के ज्ञान का विस्तार हो तथा इसके लिए भारत सरकार को वेद, वेदांग (उपनि) पुरा इत्यादि शास्त्रों के विद्वानों की समितियाँ बनानी चाहिए जिससे इनमें स्थित अलौकिक ज्ञान को मानवोपयोगी बनाने की प्रक्रिया शुरू हो  



भारतीय गणित, ज्योतिश, स्वरशास्त्र, संगीत, राजनीति, समाजशास्त्र, विज्ञान, धि, वैमानिकी, युद्धशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, योगशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र, वास्तुशास्त्र इत्यादि की बारीकियों को उजागर कर उसे तुरंत कॉपीराइट करायें जिससे वे मानवोपयोगी सिद्ध हो तथा हमारे भारतीय मनीषियों  को विश्व मंच पर यथायोग्य सम्मान मिल सके हम 1200 वर्षों तक गुलाम रहे परंतु आज तो हम आजाद हैं  



अतः आज हमारी विशेष  जिम्मेदारी हो जाती है कि हम अपने पुरातन खोजों को सबके सामने लायें जिससे हम सभी विश्ववासी लाभान्वित हो सकें हमारा विश्व परिवार सुख, शांति, एवं समृद्धि को प्राप्त हो सर्वेभवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा श्चित्दुःख भाग्भवेत अर्थात् भी प्राणी (मनुष्य एवं मनुष्येतर) सुखी हो, स्वस्थ्य हों, सभी हरेक को कल्याणमयी  दृष्टि से देखें, इन दिव्य भावों के अलौकिक आलोक से सारा जग आप्लावित हो जाये

द्वारा 
मधुरिता झा