Tuesday, January 27, 2015

आइन्स्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी :[ Time—Space ] PART -1


आइन्स्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (General Theory of Relativity) विज्ञान के चमत्कारिक और रहस्यमय  सिद्धांतों में से एक है। यह वह सिद्धांत है जो आज की तिथि में बड़े से बड़े वैज्ञानिक , भौतिकशास्त्री , विचारकों की समझ में भी पूरा पूरा नहीं आया है । जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी या समान्य सापेक्षता के सिद्धांत में ऐसी क्या बात है की इसे समझना इतना दुस्तर हो रहा है और आज भी विज्ञान इस कांसेप्ट की  परिधि पर ही नाच रहा है । 

आइन्स्टीन के अनुसार पदार्थ, स्थान , गति और समय की कोई सत्यता नहीं है ।  कोई भी एक मूलभूत  समय , स्थान, गति नही है जिसमें कोई घटना घटित हुई हो ।  निरिक्षण के अनुभव ही समय, गति ,स्थान  की रचना करते हैं । यानी संसार का कोई भी तथ्य मूलभूत , स्थिर ,शाश्वत या निरपेक्ष नहीं है बल्कि सभी तथ्यों की जानकरी , माप और उसके विषय में किये गए सभी अनुभव सापेक्ष हैं जो  हमारे निरीक्षण, परीक्षण  और विश्लेषण करने की सीमित  क्षमता पर निर्भर करते हैं ।

सापेक्षता 
जैसे मान लें दो रेलगाडि़यां एक ही दिशा में 50 km. प्रति घंटे की रफ्तार से जा रही हो तो उन गाडि़यों में बैठे यात्रियों के लिए दूसरी ट्रेन स्थिर नजर आएगी, जबकि प्लेटफार्म पर खड़ा व्यक्ति उन गाडि़यों को 50 km.प्रति घंटे की रफ्तार से जाता हुआ मानेगा। तो प्रश्न ये था कि ट्रेन की गति का मान किसके अनुमान पर निर्धारित किया जाए ?

  जवाब था कि दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं। वस्तु की गति का मान, अनुमान लगाने वाले व्यक्ति की स्थिति पर निर्भर करेगा, अर्थात् वो स्थिर अवस्था में अनुमान लगा रहा है या गतिशील होकर। संक्षेप में कहें तो निष्कर्ष था - गति निरपेक्ष (absolute)  नहीं बल्कि सापेक्ष (Relative)  है। पर गति को सापेक्ष मानने के बाद उससे एक और सवाल जुड़ गया। क्या भौतिकी के बाकी सारे नियम गति की तरह सापेक्ष होंगे ? उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति 40 km प्रति घंटे की रफ्तार से जाती हुई गाड़ी में भौतिकी या भौतिक नियमों से जुड़ा कोई भी प्रयोग कर रहा हो और दूसरा व्यक्ति प्लेटफार्म पर खड़े होकर वही प्रयोग कर रहा हो तो क्या दोनों के परिणाम अलग होंगे

यह सिद्धांत सिद्ध करता है की भौतिक विज्ञान अंतिम सत्य तक तभी पहुँच सकता है जब वह संसार , तथ्यों और पदार्थों  के विषय में विश्लेषण  और  अध्ययन  अपने देखने और समझने की सहूलियत के अनुसार केवल 3  डाइमेंशन के दायरे में  बंध  कर न करे बल्कि  4  डाइमेंशन या मल्टी डाइमेंशन से ही किसी भी तथ्यों को देखे और उनकी जानकरी ले ।

डाइमेंशन
आखिर भौतिकी में डाइमेंशन का क्या अर्थ  है ? सामान्य रूप से डाइमेंशन का अर्थ है आयाम । आयाम (डाइमेंशन) शब्द चित्रकला और शिल्पकला से आयात हुआ और साहित्य समालोचना में आधुनिक काल में प्रयुक्त होता है। संस्कृति में इस शब्द का अर्थ तन्वन, विस्तार, संयमन, प्रलंबन है।जब हम कहते हैं की  रवि एक बहुआयामी [ मल्टी- डाइमेंशनल ] व्यक्तित्व का मालिक है । इसका अर्थ है की उसके व्यक्तित्व के कई पहलु हो सकते हैं , जैसे वह एक अच्छा चित्रकार होने के साथ एक कुशल प्रशासक और एक समर्पित समाजसेवक हो सकता है ।



गणित और भौतिकी में किसी भी वस्तु या दिक् (स्पेस ) के उतने आयाम या डाइमेंशन होते हैं जितने निर्देशांक (coordinates) उस वस्तु या दिक् के अन्दर के हर बिंदु के स्थान को पूरी तरह व्यक्त करने के लिए चाहिए होते हैं। जैसे एक सीधी या सरल रेखा में केवल लम्बाई होती है जो केवल एक coordinate से ही व्यक्त हो जाती है इसलिए एक सीधी रेखा वन डाइमेंशनल है | एक आयत [rectangle ] में लम्बाई और चौड़ाई को व्यक्त करने एक लिए दो coordinate  चाहिए अतः यह टू - डाइमेंशनल है , किसी भी सॉलिड वस्तु  जैसे एक क्यूब में लम्बाई, चौड़ाई  और मोटाई [ गहराई ] को जानने के लिए तीन coordinates  की आवश्यकता पड़ती है अतः यह थ्री-डाइमेंशन है ।

फोर्थ डाइमेंशन 
संसार के जितने भी पदार्थ हैं, वह इन्हीं तीन प्रकार के आयामों  के अंतर्गत आते हैं। हमारे पास जो भी वस्तुएँ हैं, वह इन्हीं तक सीमित हैं, इसलिये भौतिक विज्ञान जब भी किन्हीं वस्तुओं का अध्ययन करता है, वह इसी सीमा की जानकारी दे पाता है। लेकिन अलबर्ट आइन्स्टीन ने बताया कि यह गलत है। जब तक हम एक और चौथे डाइमेन्शन समय (टाइम) की कल्पना नहीं करते, तब तक वस्तुओं के स्वरूप को अच्छी प्रकार समझ नहीं सकते।

यदि इस चौथे डाइमेन्शन time या काल  को ध्यान में रखकर विचार करें तो पता चलेगा कि जिन वस्तुओं का हम अध्ययन या विश्लेषण कर रहेँ हैं उसका कोई भी स्थिर माप या स्वरुप नहीं है वे सब केवल  प्राकृतिक परमाणुओं से बनी आकृतियाँ मात्र हैं। उनका कोई निश्चित स्वरूप नहीं। समय की मर्यादा में बँधे परमाणु जब टूट-टूटकर अलग हो जाते हैं तो वस्तु का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। इस तरह पानी के बुलबुले के समान संसार बनता और बिगड़ता रहता है।
संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वह इन चार के अंतर्गत ही है।
 1. स्थान (स्पेस), 
2. समय (टाइम)
3. गति (मोशन), 
4. कारण (काज )

दिक्-काल (स्पेस-टाइम)
दिक् संस्कृत  का शब्द है जिसका अर्थ है इर्द-गिर्द की जगह। इसे अंग्रेजी में "स्पेस" कहते हैं। मनुष्य दिक् के तीन पहलुओं को भांप  सकने की क्षमता रखते हैं - लम्बाई , चौड़ाई और गहराई । हमारे पास जो भी वस्तुएँ हैं, वह इन्हीं तक सीमित हैं, इसलिये भौतिक विज्ञान जब भी किन्हीं वस्तुओं का अध्ययन करता है, वह इसी सीमा की जानकारी दे पाता है।

लेकिन अलबर्ट आइन्स्टीन ने बताया कि यह गलत है। जब तक हम एक और चौथे डाइमेन्शन समय (टाइम) की कल्पना नहीं करते, तब तक वस्तुओं के स्वरूप को अच्छी प्रकार समझ नहीं सकते। सभी पदार्थ समय की सीमा से बँधे हैं, अर्थात् हर वस्तु का समय भी निर्धारित है, उसके बाद या तो वह अपना रूपान्तर कर देता है या नष्ट हो जाता है।

आइन्स्टीन  ने सापेक्षता सिद्धांत में दिखाया के वास्तव में दिक् के तीन और काल का एक मिलाकर ब्रह्माण्ड में चार पहलुओं या डाइमेंशन वाला दिक्-काल है जिसमे सारी वस्तुएं और उर्जाएँ स्थित होती हैं।

टाइम /काल /समय 
वास्तव में समय कुछ नही है हमारे मस्तिष्क की कल्पना या रचना मात्र है | लोग कहते हैं .....मैं सुबह 5 बजे सो कर उठा , सुबह 8 : 3 0 पर ऑफिस के लिए निकला , मेरी क्लाइंट  मीटिंग मंगलवार को शाम को 6 बजे है, पडोसी से कल 1 2 बजे मिलना है , मुंबई राजधानी शाम को 5 :2 0 पर स्टेशन आएगी , रात में 2 बजे नाईट शो ख़त्म हुआ |   

इन वाक्यों को ध्यान से देखने से मालूम होगा की प्रत्येक समय किसी न किसी घटना से जुड़ा हुआ है |  समय दरसल कोई वस्तु  ही नही है . यदि कोई क्रिया या घटना न हुई हो तो हमारे लिए समय का कोई अस्तित्व ही नही होगा |   

4 बज कर 2 0 मिनट , अगस्त , 1 9 4 7 , परसों, कल, पांच दिन बाद, यह सब घटनाओं का सापेक्षता [ relativity ] है |   

2 0 1 5 को विक्रम, शक संवत, आर्य संवत के हिसाब से कुछ और कहा जा सकता है | 

हम समय की सीमा में बँधे हैं। न्यूटन की शास्त्रीय भौतिकी में यह कहा जाता था के ब्रह्माण्ड में हर जगह समय (time) की रफ़्तार एक ही है। अगर आप एक जगह टिक के बैठे हैं और आपका कोई मित्र प्रकाश से आधी गति की रफ़्तार पर दस साल का सफ़र तय करे तो, उस सफ़र के बाद, आपके भी दस साल गुज़र चुके होंगे और आपके दोस्त के भी। 

लेकिन आइन्स्टीन  ने इसपर भी कहा के ऐसा नहीं है , केवल घन पदार्थ ही फैलते या सुकड़ते नहीं हैं वरन समय भी फैलता और सुकड़ता है | सिद्धांत के अनुसार गति की तीब्रता होने पर समय की चाल घट जाती है  | जैसे एक घंटे में पैदल चलने पर तीन मील का सफ़र होता है , मोटर से 8 0 मील  पार कर लेते हैं, ट्रेन से और अधिक दूरी  और हवाई जहाज़ से उससे भी अधिक दूरी तय कर सकते हैं |  समय की गति को शिथिल या अवरुद्ध किया जा सकता है |

समय कोई भौतिक पदार्थ नहीं है, यह तो दो घटनाओं के बीच की अवधि की माप (मेजरमेन्ट्स) है, जो कभी सत्य नहीं हो सकता |   अक्सर लोग समय की माप उस अवस्था में करते हैं जब पृथ्वी में जीवन अस्तित्व में आया . कल्पना करें अगर पृथ्वी का अस्तित्व ही नही होता तो हमारे लिए समय क्या होता ? यदि हम घटनों या क्रियाओं से परे हो जाएँ  तो समय नाम की कोई वस्तु  संसार में नही हैं | 

सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय 24 घण्टे का होता है। क्योंकि यदि आप चंद्रमा पर बैठे हों एक बार सूर्य के उदय होने और उसके अस्त होने में 12 X 7=84 घन्टे लग जाते हैं। 84 घण्टों को यदि 60 मिनट से एक घन्टे से बाँटे तो वहाँ का दिन 100 घन्टे से भी बड़ा होगा इसलिये समय कोई स्थिर या शाश्वत वस्तु नहीं है।

जो चीज़ गति से चलती है उसके लिए समय धीरे हो जाता है और वह जितना तेज़ चलती है समय उतना ही धीरे हो जाता है। आइन्स्टीन   के अनुसार गति में वृद्धि होने पर समय की चाल स्वभावता कम हो जायेगी . यदि 1 ,8 6 ,0 0 0 मील प्रति सेकंड प्रकाश की चाल से चला जाए तो समय की गति इतनी कम हो जायेगी की उसके व्यतीत होने का पता ही नही चलेगा | आपका मित्र अगर अपने हिसाब से दस वर्ष तक रोशनी से आधी गति पर यात्रा कर के लौट आये, तो उसके तो दस साल गुज़रेंगे लेकिन आपके साढ़े ग्यारह साल गुज़र चुके होंगे।

स्पेस / स्थान /देश 
हमारे लिये कोई भी स्थान सत्य नहीं है। हमारे द्वारा वस्तुओं को पहचानने के अतिरिक्त स्थान का कोई अर्थ ही नहीं है। जिस प्रकार समय अनुभव के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उसी तरह देश या ब्रह्माण्ड (स्पेस) हमारे मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न काल्पनिक वस्तु के अतिरिक्त कुछ नहीं है। वस्तुओं को समझने तथा उनकी व्यवस्था (अरेन्जमेन्ट) जानने में सहायता मिलती है, इसलिये स्थान (स्पेस) को कल्पना को हम सत्य मान लेते हैं, अन्यथा स्थान कुछ निश्चित तरीके के परमाणुओं के अतिरिक्त और है भी क्या? परमाणु भी इलेक्ट्रान्समय होते हैं, इलेक्ट्रान एक प्रकार की ऊर्जा निकालता रहता है, जो तरंग रूप (वेविकल फार्म) में होता है। जिन वस्तुओं के इलेक्ट्रान जितने मन्द गति के हो गये हैं, वह उतने ही स्थूल दिखाई देते हैं। यह हमारे मस्तिष्क की देखने की स्थिति पर निर्भर करता है, यदि हम पृथ्वी को छोड़कर किसी सूर्य जैसे ग्रह में बैठे हों तो पृथ्वी एक प्रकार के विकिरण (रेडिएशन) के अतिरिक्त और कुछ न दिखाई देगी। इसलिये देश या ब्रह्माण्ड भी वस्तुओं की संरचना का अपेक्षित (रिलेटिव) रूप है। 

आम जीवन में मनुष्य दिक् या स्पेस  में कोई बदलाव नहीं देखते। न्यूटन की भौतिकी कहती थी के अगर अंतरिक्ष में दो वस्तुएं एक-दुसरे से एक किलोमीटर दूर हैं और उन दोनों में से कोई भी न हिले, तो वे एक-दुसरे से एक किलोमीटर दूर ही रहेंगी। हमारा रोज़ का साधारण जीवन भी हमें यही दिखलाता है। यदि घर के समीप कोई मंदिर 1  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तो आज से 2  साल , पांच साल या सालों बाद भी घर से मंदिर की दुरी 1 किलोमीटर  ही रहेगी या एक समान्य तथ्य है । लेकिन आइनस्टाइन ने कहा के ऐसा नहीं है। दिक् खिच और सिकुड़ सकता है। ऐसा भी संभव है के जो दो वस्तुएं एक-दुसरे से एक किलोमीटर दूर हैं वे न हिलें लेकिन उनके बीच का दिक् कुछ परिस्थितियों के कारण फैल के सवा किलोमीटर हो जाए या सिकुड़ के पौना किलोमीटर हो जाए।

 आम भाषा में कहा जाए तो ब्रह्माण्ड के सारे घटक एक दूसरे के सापेक्ष गति में हैं |  जब हम कोई पिंड, स्टार इत्यादि देखते हैं तो उसकी द्रष्टव्य स्थिति उसकी गति , दूरी और समय (Space-Time) पर निर्भर करती है | यह दिक्-काल स्थाई नहीं है - न दिक् बिना किसी बदलाव के होता है और न यह ज़रूरी है के समय का बहाव हर वस्तु के लिए एक जैसा हो।दिक्-काल को प्रभाव कर के उसे मरोड़ा, खींचा और सिकोड़ा जा सकता है और ऐसा ही ब्रह्माण्ड में होता है। 
आइन्स्टीन  के अनुसार दुरी और समय की मान्यता भ्रामक और आवस्तविक है | जो कुछ दिखाई देता है वह खोखला आवरण मात्र है, हमारे नेत्रों और मस्तिष्क संसथान अपनी बनावट और अपूर्ण संरचना के कारण वह सब देखता है जो हमें यथार्थ लगता है लेकिन होता कुछ और है | 

मनुष्यों को दिक्-काल में बदलाव क्यों नहीं प्रतीत होता
दिक्-काल में बदलाव हर वस्तु और हर रफ़्तार पैदा करती है लेकिन बड़ी वस्तुएं और प्रकाश के समीप की रफ्तारें अधिक बदलाव पैदा करती हैं। मनुष्यों का अकार इतना छोटा और उसकी रफ़्तार इतनी धीमी है के उन्हें सापेक्षता सिद्धांत के आसार अपने जीवन में नज़र ही नहीं आते, लेकिन जब वह ब्रह्माण्ड में और चीज़ों का ग़ौर से अध्ययन करते हैं तो सापेक्षता के चिन्ह कई जगहों पर पाते हैं।


स्पेस-टाइम -ग्रेविटी
 लगभग चार सौ साल पहले न्यूटन ने एक पेड़ से गिरते हुए सेब को देख कर गुरुत्वाकर्षण  के सिद्धांत की खोज की थी उंसके अनुसार ब्रह्माण्ड  की सभी वस्तुएं एक दूसरे को अपनी और आकर्षित करती हैं । आकर्षण का यह बल दोनों वस्तुओं  के द्रव्यमानों के गुणफल का समानुपाती [ directly proportional ] एवं दोनों वस्तुओं के बीच की  दुरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती [  inversely proportional ] होता है । यदि दो वस्तुएं A  और B जिनका द्रव्मान  क्रमशाः  m १ और m  २ है और दोनों के बीच की दुरी r  है तो आकर्षण बल F होगा ----

न्यूटन का मानना था के हर वस्तु में एक अपनी और खीचने की शक्ति होती है जिसे उसने गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटी) का नाम दिया। पृथ्वी जैसी बड़ी चीज़ में यह गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है, जिस से कि हम पृथ्वी से चिपके रहते हैं और अनायास ही उड़ कर अंतरिक्ष में नहीं चले जाते। ब्रह्माण्ड में मौजूद हर पिण्ड गुरुत्वीय बलों के अधीन होकर गति कर रहा है।

आइंन्स्टीन ने कहा के गुरुत्वाकर्षण की यह समझ एक झूठा भ्रम है। उन्होंने कहा के पृथ्वी बड़ी है और उसकी वजह से उसके इर्द-गिर्द का दिक्-काल मुड़ गया है और अपने ऊपर तह हो गया है। हम इस दिक्-काल में रहते हैं और इस मुड़न की वजह से पृथ्वी के क़रीब धकेले जाते हैं।
ऐसे सोचिये की पृथ्वी एक शहद  रूपी विस्कोस   माध्यम में गति कर रही है तो उसके [ पृथ्वी के ] इर्द गिर्द का शहद रूपी माध्यम भी  उसके साथ गति करता है ।

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) स्पेस-टाइम का घुमाव (Distortion) होता हैजो मैटर की वजह से पैदा होता है. और यह घुमाव (Distortion) दूसरे पदार्थों की गति पर प्रभाव डालता है |
इसकी तुलना एक चादर से की जा सकती है जिसके चार कोनो को चार लोगों के खींच के पकड़ा हो। अब इस चादर के बीच में एक भारी गोला रख दिया जाए, तो चादर बीच से बैठ जाएगी, यानि उसके सूत में बीच में मुड़न पैदा हो जाएगी। अब अगर एक हलकी गेंद हम चादर की कोने पर रखे तो वह लुड़ककर बड़े गोले की तरफ़ जाएगी। आइंस्टीन ने कहा की इस प्रक्रिया को कोई भी समान्य बुद्धि वाला इंसान देखेगा तो तो यही समझेगा की छोटी गेंद को बड़े गोले ने खींचा इसलिए गेंद उसके पास गयी। लेकिन असली वजह थी के गेंद ज़मीन की तरफ़ जाना चाहती थी और गोले ने चादर में कुछ ऐसी मुड़न पैदा करी के गेंद उसके पास चली गयी। इसी तरह से उन्होंने कहा के यह एक मिथ्या है के गुरुत्वाकर्षण किसी आकर्षण की वजह से होता है। गुरुत्वाकर्षण की असली वजह है के हर वस्तु जो अंतरिक्ष में चल रही होती है वह दिक् के ऐसी मुड़न के प्रभाव में आकर किसी बड़ी चीज़ की ओर चलने लगती है।

हमारा यूनिवर्स भी कुछ इसी तरह का है जिसमें तारे मंदाकिनियां और दूसरे आकाशीय पिंड बिन्दुओं के रूप में मौजूद हैं। एक बिन्दुवत अत्यन्त गर्म व सघन पिण्ड के विस्फोट द्वारा यह यह असंख्य बिन्दुओं में विभाजित हुआ जो आज के सितारे, ग्रह व उपग्रह हैं। ये सब एक दूसरे को अपने अपने गुरुत्वीय बलों से आकर्षित कर रहे हैं। जो स्पेस में कहीं पर कम है तो कहीं अत्यन्त अधिक। आइंन्स्टीन का सिद्धान्त गुरुत्वीय बलों की उत्पत्ति की भी व्याख्या करता है।

सापेक्षा -गुरुत्वाकर्षण - प्रकाश
न्यूटन की भौतिकी में गुरुत्वाकर्षण  का सिद्धांत था के दो वस्तुएं एक-दुसरे को दोनों के द्रव्यमान [ Mass ] के अनुसार खींचती हैं। लेकिन प्रकाश का तो द्रव्यमान होता ही नहीं, यानि शून्य होता है। तो न्यूटन के मुताबिक़ जिस चीज़ का कोई द्रव्यमान या वज़न ही नहीं उसका किसी दूसरी वस्तु के गुरुत्वाकर्षण से खिचने का सवाल ही नहीं बनता चाहे दूसरी वस्तु कितनी भी बड़ी क्यों न हो तो उनके हिसाब से प्रकाश हमेशा एक सीधी लकीर में चलता ही रहता है। 

लेकिन आइंस्टीन के अनुसार जिस प्रकार से एक लेंस प्रकाश की दिशा को मोड़ देता है  उसी प्रकार   किसी बड़ी वस्तु (जैसे की ग्रह या तारा) की वजह से दिक् ही मुड़ जाए, तो रोशनी भी दिक् के मुड़न के साथ मुड़ जानी चाहिए। यानि की ब्रह्माण्ड में स्थित बड़ी या भारी वस्तुओं को लेंस का काम करना चाहिए - जिस तरह चश्मे, दूरबीन या सूक्ष्मबीन का लेंस प्रकाश मोड़ता है उसी तरह तारों और ग्रहों को भी प्रकाश मोड़ना चाहिए।

यानी प्रकाश सीधे गति न करके कर्व होता हुआ जाता है ।रोशनी  भी गुरुत्वीय बल दिक् -काल  के कारण अपने पथ से भटक जाती है। और कभी कभी तो इतनी भटकती है कि उसकी दिशा घूमकर वही हो जाती है जिस दिशा से वह चली थी। जैसे  प्रकाश की किरण किसी मिरर से टकरा कर रिफ्लेक्ट हो जाती है  | 


गुरुत्वीय क्षेत्रों में प्रकाश की चाल धीमी हो जाती है। यानि वक्त की रफ्तार भी धीमी हो जाती है। दिक्‌-काल (स्पेस टाइम) बताता है कि पदार्थ को कैसे गति करनी है और पदार्थ दिक्‌-काल को बताता है कि उसे कैसे कर्व होना (मुड़ना) है।
अब कल्पना कीजिए बिग बैंग थ्योरी में एक ऐसे बिन्दु की जिसके आसपास कुछ नहीं है। यहां तक कि उसके आसपास जगह भी नहीं है। न ही उस बिन्दु पर बाहर से कोई बल आकर्षण या प्रतिकर्षण का लग रहा है। फिर उस बिन्दु में विस्फोट होता है और वह कई भागों में बंट जाता है। निश्चित ही ये भाग एक दूसरे से दूर जाने लगेंगे। और इसके लिये ये जगह को भी खुद से पैदा करेंगे। जो किसी ऐसे गोले के आकार में होनी चाहिए जो गुब्बारे की तरह लगातार फैल रहा है। और इसके अन्दर मौजूद सभी भाग विस्फोट हुए बिन्दु से बाहर की ओर सीढ़ी रेखा में चलते जायेंगे। किन्तु अगर ये भाग एक दूसरे को परस्पर किसी कमजोर बल द्वारा आकर्षित करें? तो फिर इनके एक दूसरे से दूर जाने की दिशा इनके आकर्षण बल पर भी निर्भर करने लगेगी। फिर इनकी गति सीधी  रेखा में नहीं रह जायेगी। अगर इन बिन्दुओं के समूह को आकाश माना जाये तो यह आकाश सीधा न होकर वक्र (कर्व) होगा । 
अब अपनी कल्पना को और आगे बढ़ाते हुए मान लीजिए कि विस्फोट के बाद पैदा हुए असंख्य बिन्दुओं में से एक पर कोई व्यक्ति (आब्जर्वर) मौजूद है। अब वह दूसरे बिन्दुओं को जब गति करते हुए देखता है तो उसे उन बिन्दुओं की गति का पथ जो भी दिखाई देगा वह निर्भर करेगा उन सभी बिन्दुओं की गतियों पर, और उन गतियों द्वारा बदलते उनके आकर्षण बलों पर (क्योंकि यह बल दूरी पर निर्भर करता है।)। अगर इसमें यह तथ्य भी जोड़ दिया जाये कि प्रकाश रेखा जो कि उन बिन्दुओं के दिखाई देने का एकमात्र स्रोत है वह भी आकाश में मौजूद आकर्षण बलों द्वारा अपने पथ से भटक जाती है तो चीजों के दिखाई देने का मामला और जटिल हो जाता है।



ब्लैक होल 
ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक - होल्स के स्पेस-टाइम का घुमाव इतना जबरदस्त होता है की कोई भी समीपवर्ती पार्टिकल या रेडिएशन  इसके  चुंगल से नहीं बच सकते है ।



कल्पना कीजिये , हमारी पृथ्वी से कुछ दूर पर एक तारा स्थित है। उस तारे का प्रकाश हम तक दो तरीके से आ सकता है। एक सीधे पथ द्वारा। और दूसरी एक भारी पिण्ड से गुजरकर जो किसी और दिशा में जाती हुई तारे की रोशनी   को अपनी उच्च ग्रैविटी या मुड़े हुए दिक्  की वजह से मोड़ कर हमारी पृथ्वी पर भेज देता है। जबकि तारे से आने वाली सीधी रोशनी  की किरण एक ब्लैक होल  द्वारा रुक जाती है जो कि पृथ्वी और तारे के बीच में मौजूद है। अब पृथ्वी पर मौजूद कोई आब्जर्वर  जब उस तारे की दूरी नापेगा तो वह वास्तविक दूरी से बहुत ज्यादा निकल कर आयेगी क्योंकि यह दूरी उस किरण के आधार पर नपी होगी जो पिण्ड द्वारा घूमकर आब्जर्वर  तक आ रही है।
 जबकि ब्लैक होल के पास से गुजरते हुए उस तारे तक काफी जल्दी पहुंचा जा सकता है। बशर्ते कि इस बात का ध्यान रखा जाये कि ब्लैक होल का दैत्याकार आकर्षण यात्री को अपने लपेटे में न ले ले। इस तरह की सिचुएशन ऐसे शोर्ट कट्स की संभावना बता रही है जिनसे यूनिवर्स में किसी जगह उम्मीद से कहीं ज्यादा जल्दी पहुंचा जा सकता है। इन शोर्ट कट्स को भौतिक जगत में वार्म होल्स (wormholes) के नाम से जाना जाता है।
ये एक आसान सी सिचुएशन की बात हुई। स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब हम देखते हैं कि पृथ्वी,पिण्ड, तारा, ब्लैक होल सभी अपने अपने पथ पर गतिमान हैं। ऐसे में कोई निष्कर्ष निकाल पाना निहायत मुश्किल हो जाता है।

 आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी  कुछ अनोखी चीज़ें सामने लाती हैं आती हैं। जैसे कि सिंगुलैरिटी, ब्लैक होल्स ,टाइम मशीन,एब्सोल्यूट स्टेज और वार्म होल्स।

भौतिक शास्त्र पर जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का इतना गहरा प्रभाव पड़ा के लोग आधुनिक भौतिकी (माडर्न फ़िज़िक्स) को शास्त्रीय भौतिकी (क्लासिकल फ़िज़िक्स) से अलग विषय बताने लगे और आइन्स्टीन  को आधुनिक भौतिकी का पिता माना जाने लगा।

द्वारा 
गीता झा


Thursday, January 22, 2015

How a Despairing Woman Saved Her Marriage Using Huna

Sukanya was a 45 year old married woman with two children. Being happily married for 20 long years she suddenly found herself in a great turmoil and distress, when she discovered that her husband who was 48 year old was dating a very young woman working as a junior subordinate in his office.

Sukanya was heartbroken by this discovery. She became depressed, despondent and her moods become unpredictable and sometimes unpleasant.

She always feared of losing her husband. She suspected a fully fledged serious affair between her husband and that woman. For her this serious love affair was a serious threatening  to break up their marriage, unless something was done pretty soon about it. Sukanya decided to use the occult power to change her unfortunate situation. She was very much convinced that her future can be brighter if she could prepare herself to believe in the power of Kahuna Magic and give it a time to work.

Sukanya went into daily Huna mediation for a period of three weeks. She stopped worrying and shut the doors of all negative thoughts. She put the problem into the hands of cosmic intelligence of her Higher Self who knew the real and effective solution.

In Huna mediation she projected the visuals of wining the love of her husband, visualizing him caring for her and their children. Visualized him in totally and completely in love with her.

After only five days she noticed a starting change in her husband. The tension between the couple was immediately less and the husband began to notice Sukanya again.

After ten days of practicing Huna mediation, her husband declared complete love for her and apologised for having neglected her and children.

Within three weeks time Sukanya's husband changed his mind drastically. He began to spend more time with his family than ever before. It was as if Sukanya and her husband  were falling in love with each other all over again as they had done so many years earlier.

After three weeks time Sukanya and her husband had a complete reconciliation and went to build a stronger and enduring marriage they had known before.

Sukanya was astonished by the miracle answer to her problem achieved by Huna Meditation. She further used Huna mediation several more times to get benefits in other areas of life.


A Beginner's Guide book for Huna
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BY
GEETA JHA 
INDIA

Planetary Combinations For A Mathematician In Astrology

According to astrology the excellent mental capacity and the extra -ordinary power of brilliance, logic and calculations are the factors indicative of the native's interest in mathematics. Education and intelligence are closely related.


Factors Responsible For Interest in Mathematics
Ascendant: general human capabilities
2nd 4th and 9th house: stand for education
5th house: intellect, memory,
10th house: higher education
Jupiter: significator of education
Mercury: significator of intelligence, logic and calculations
Moon: inclination of mind

Different combinations for a mathematician
  1. Jupiter in quadrant, indicates the interest of the native in maths
  2. Jupiter in quadrant, Mercury being the lord of 2nd house and Venus is exalted / in own sign, the native will be well versed in maths.
  3. Mars in 2nd with a benefice and aspected by Mercury or the Mercury in quadrant shows interest in maths
  4. Jupiter in quadrant/trine or the venue is in exaltation and the Mars posited in 2nd or in quadrant aspected by Mercury the native will excels in maths.
  5. Mercury and Moon in quadrant or lord of 3rd is with Mercury posited in quadrant, the native will be very good in calculations
  6. Mercury is posited sixth from Saturn and the Jupiter is in 2nd the native will excels in predictive astrology.
  7. Moon and Mars in 2nd aspected by the Mercury or Mercury being the lord of 2nd house is in its own sign /exalted and Jupiter is posited in Ascendant and Saturn in 8th house the native will be a very great mathematician.
BY
GEETA JHA 
INDIA

Monday, January 12, 2015

ज्योतिष में दरिद्र -योग

दरिद्र -योग में जन्म लेने वाला वाला  जातक कठिन  परिस्थिति में रहने वाला , अप्रिय बोलने वाला , व्यसनी, निम्न सोच रखने वाला , कटु भाषी, निम्न वृति से धन कमाने वाला , परस्त्री लोलुप होता है । इस योग के रहते कभी कभी जातक के अंगों में विकार आ जाता है , वह कलह-प्रिय , कृतघ्न , उत्तम लोगों  से जलने वाला , दूसरों के कार्य में विघ्न डालने वाला होता है ।

दरिद्र -योग होने की सम्भावना
लग्न द्वारा
  1. यदि लग्न  चर  राशि का हो , लग्न का नवमांश भी चर  राशि का हो और लग्न पर  शनि या नीच के वृहस्पति की दृष्टि हो तो दरिद्र योग बनता है । ऐसी सम्भावना केवल कर्क लग्न में बनती  है  ।
  2. यदि लग्न स्थिर राशि में हो और सभी पाप ग्रह केंद्र और  त्रिकोण में हों तथा शुभ  ग्रह केंद्र के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर हो तो जातक भिक्षा मांग कर जीवन यापन करता है ।
  3. यदि लग्न स्थिर राशि  का हो और सभी पाप ग्रह केंद्र एवं त्रिकोण में हों तथा शुभ  ग्रह  केंद्र और त्रिकोण में हों लेकिन निर्बल हों और पाप ग्रह केंद्र के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर हो तो भिक्षुक -योग बनता है ।
चन्द्रमा  द्वारा
  1. यदि लग्न व चन्द्रमा  से चतुर्थ स्थान पर पाप ग्रह  बैठा हो तो जातक निर्धन होता है ।
  2. यदि चन्द्र - ग्रहण  के समय का जन्म हो और चन्द्रमा  किसी ग्रह -युद्ध में पराजित होकर अशुभ ग्रह  से दृष्ट हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  3. यदि केंद्र या त्रिकोणवर्ती चन्द्रमा शत्रु या नीच वर्ग का हो और चन्द्रमा  से  वृहस्पति , बुद्ध आठवें या बारहवें घर में हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  4. यदि यदि राहु या केतु ग्रस्त चन्द्रमा  पाप दृष्ट या पाप संयुक्त हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  5. यदि रात्रि का जन्म हो और कमजोर चन्द्रमा से अष्टम भाव पाप दृष्ट /युक्त हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  6. यदि चन्द्रमा पाप नवमांश  में हो  और राहु के साथ हो तथा किसी पाप ग्रह   द्वारा दृष्ट  हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  7. यदि चन्द्रमा  तुला राशि में स्थित हो और नवमांश में  शत्रु-राशि में स्थित हो और किसी नीच या शत्रु ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  8. यदि चन्द्रमा  चर राशि में स्थित हो , पाप नवमांश में रहते हर  शत्रु /पाप ग्रह से दृष्ट हो  और चन्द्रमा  पर वृहस्पति की दृष्टि न पड़ती हो तो दरिद्र योग बन जाता है ।
  9. यदि चन्द्रमा सूर्य के नवमांश में हों सूर्य चन्द्रमा के नवमांश में हो लेकिन कुंडली में सूर्य और चन्द्रमा की युति हो तो दरिद्र योग बनता है ।
अन्य योग
  1. शुभ ग्रह केंद्र में हों पाप ग्रह धन भाव में हों तो जातक सर्वदा दरिद्र रहता है ।
  2. यदि वृहस्पति अष्टम /लग्न का स्वामी हो और नवमेश का बल उससे कम  हो तो तथा    एकादश  भाव का स्वामी केंद्र में न होकर अस्त /निर्बल हो तो जातक दरिद्र होता है । 
  3. यदि वृहस्पति , मंगल , शनि या बुद्ध नीच होने के साथ अस्त भी हो और ५/६/८/११/१२ भाव में स्थित हो तो जातक दरिद्र होता है ।
  4. यदि शनि  नवम भाव में हो और पाप ग्रह द्वारा दृष्ट  हो और सूर्य और बुद्ध लग्न में बैठे  हों , बुद्ध नीच नवमांश में हो तो दरिद्र-योग बनता है  ।
  5. यदि शुक्र ,वृहस्पति , चण्द्रमा और मंगल नीच राशि में  होते हुए लग्न/५/७/९/१०/११ इन छह भाव में किसी चार भाव में बैठे हों तो दरिद्र योग होता है । यह योग केवल कन्या और मकर लग्न में ही लागू हो सकता यही ।
  6. यदि वृहस्पति ६/१२ वे भाव में स्थित हो , पर स्वगृही  न हो तो दरिद्र योग बनता है ।
  7. यदि पाप ग्रह नीच हों तो जातक पाप कर्म करता है यदि  शुभ ग्रह नीच हों तो जातक गुप्त तरीके से पाप कर्म करता है । 
  8. नीच का वृहस्पति दशम स्थान पर बैठा हो तो जातक गुप्त तरीके से पाप करने वाला होता है ।
  9. उच्चस्थ ग्रह नीच  नवमांश में होने पर बुरा फल देते हैं और जातक को कुकर्म करने के लिए प्रेरित करता है ।
  10. आत्मकारक या लग्न से अष्टम भाव के स्वामी की दृष्टि आत्मकारक या लग्न पर हो तो दरिद्र योग बनता है ।
द्वारा
गीता झा

Friday, January 9, 2015

ज्योतिष में ह्रदय रोग

ह्रदय मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है । ह्रदय की बनावट कार्य प्राणी या वाल्वों में रक्त संचार की रुकावट या शिराओं संचार व्यवस्था में गड़बड़ी  होने से ह्रदय के कार्य करने में रुकावट पैदा होती है फलस्वरूप ह्रदय रोग उत्पन्न हो जाते हैं । 

धूम्रपान , शराब का सेवन करना , चिंता, शोक , उच्च रक्त चाप , चर्बी का बढ़ना , मानसिक तनाव , अपुष्ट भोजन, वात -रोग, गठिया , भय, वंशानुगत कारणों  , प्रमेह  आदि कारणों से ह्रदय रोग होते हैं ।  ह्रदय रोग कई प्रकार के होते हैं जैसे  जन्म से ह्रदय में छेद होना, ह्रदय शूल, खून के थक्के ज़माने से ह्रदय घात होना , वाल्व में खराबी आना , उच्च/निम्न  रक्त चाप आदि । 

ज्योतिष की दृष्टि से ह्रदय रोग को प्रभावित करने वाले कारक  

  1. कुंडली में चतुर्थ स्थान ह्रदय का स्थान है । 
  2. पंचम भाव /पंचमेश  मनोस्थति को दर्शाता है । 
  3. छठा भाव रोग का कारक है । 
  4. सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है । 
  5. बुद्ध स्नायु - मंडल  पर प्रभाव रखता है । 
  6. चन्द्रमा रक्त और मन का प्रतीक है । 
  7. मंगल रक्ताणु और रक्त-परिभ्रमण पर प्रभाव रखता है । 

ह्रदय रोग सम्बन्धी योग 

  1. कुंडली में पंचम भाव में पाप ग्रह बैठा हो और पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हुआ हो । 
  2. पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रह के साथ बैठा हो अथवा पाप गृह से देखा जाता है । 
  3. पंचम भाव का स्वामी नीच राशि अथवा शत्रु राशि में स्थित हो या  अष्ठम  भाव में बैठा हो ।
  4. यदि पंचमेश बारहवे घर में हो या बारहवे भाव के स्वामी के साथ 6 /8 /12  स्थान पर हो तो ह्रदय रोग होता है ।  
  5. सूर्य छठे भाव का स्वामी हो कर चतुर्थ भाव में पाप ग्रहों के साथ बैठा हो । 
  6. चतुर्थ भाव में मंगल के साथ शनि  या गुरु स्थित हो और पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो । 
  7. सूर्य और शनि चतुर्थ भाव में साथ बैठे हों । 
  8. सूर्य कुम्भ राशि में बैठा हो । 
  9. सूर्य वृश्चिक राशि में बैठा हो और पाप ग्रहों से प्रभावित हो । 
  10. सूर्य, मंगल ,गुरु चतुर्थ स्थान पर स्थित हो । 
  11. चतुर्थ स्थान  में शनि हो तथा सूर्य एवं छठे भाव के स्वामी पाप ग्रहों के साथ हो । 
  12. चतुर्थ भाव में केतु और मंगल स्थित हों ।
  13. यदि शनि , मंगल और  वृहस्पति चतुर्थ भाव में हो तो जातक ह्रदय रोगी होता है ।
  14. यदि तृतीयेश , राहु या केतु के साथ हो जातक ह्रदय रोग के कारण  मूर्च्छा में जाता रहता है ।   

ह्रदय-शूल होने के कारक 

  1. चतुर्थ भाव,चतुर्थ भाव के स्वामी और सूर्य की स्थिति से ह्रदय शूल का ज्ञान होता है । 
  2. चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो और लग्नेश निर्बल और पाप ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो । 
  3. द्वादश भाव में राहु हो तो गैस वायु से ह्रदय प्रदेश में दर्द होता है । 
  4. पाप ग्रहों के साथ सूर्य वृश्चिक राशि में हों ।
  5. यदि पंचमेश और सप्तमेश छठे स्थान पर हो तथा पंचम अथवा सप्तम स्थान पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो जातक ह्रदय-शूल से पीड़ित होता है । 

ह्रदय कम्पन 

घबराहट और बेचैनी से ह्रदय कम्पन होता है ।  जब गुरु या शनि षष्ठेश होकर चतुर्थ स्थान पर बैठें  हों  और पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो यह रोग होता  है । 

द्वारा 
गीता झा 

Thursday, January 8, 2015

ज्योतिष में ईश्वर-प्रेम और साधना योग

कुंडली के पंचमभाव से ईश्वर प्रेम और नवम भाव से धार्मिक कर्मकांड , अनुष्ठान  का विचार होता है जब नवम और पंचम दोनों  शुभलक्षण  युक्त हों तभी अनुष्ठान क्रिया भक्ति के साथ होती है पंचम भाव प्रगाढ़ भक्ति का  द्योतक है जब पंचम और नवम भाव में सकारत्मक सम्बन्ध  बनता है बनता है  तो जातक  भक्ति और अनुष्ठान दोनों के साथ रहने से  उच्च कोटि का साधक बनता है


दशम स्थान कर्मस्थान होता है और सन्यास योग भी इंगित करता है, यदि पंचमेश और नवमेश का  नवम भाव या नवमेश से सम्बन्ध हो तो साधना में उत्कृष्टता  आती है


पंचम में पुरुष ग्रह उपस्थित हो या पुरुष ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो जातक पुरुष देवता  की  उपासना करता है पंचम समराशि हो और उसमें  चण्द्रमा या शुक्र बैठे हो या इन दोनों में से किसी की दृष्टि पड़ती हो तो जातक किसी स्त्री शक्ति की उपासना करने वाला होता है यदि सूर्य पंचम स्थान पर हो दृष्टि हो तो जातक सूर्य का उपासक होता है यदि चण्द्रमा सूर्य पंचम भाव में बैठे हों या पंचम भाव पर दृष्टि डालते हों तो जातक अर्द्ध -नारीश्वर स्वरुप  की साधना करने  वाला होता है   यदि पंचम भाव पर मंगल स्थित हो या दृष्टि हो तो जातक कर्तिकेय , बुद्ध पंचम भव में स्थित हो या दृष्टि डाले तो श्री विष्णु , पंचम भाव में बृहस्पति स्थित हो या दृष्टि डाले तो जातक  भगवान  शंकर  की उपासना करने वाला होता है यदि शनि या राहु और केतु का समबन्ध पंचम भाव या  पंचमेश से हो तो जातक तांत्रिक क्रिया करने वाला या नकरात्मक  शक्तियों को मानने वाला  होता है


शनि का समबन्ध यदि पंचम भाव या विशेष कर नवम भाव से हो तो जातक कठोर तपस्या करने वाल होता है ऐसा जातक धर्मिक आडम्बर और जातिगत भेदभाव को मानने वाला और स्पर्शदोषादि को ना मानने वाला होता है जातक प्रायः रीती-रिवाजों का विरोधी और दर्शन को अपनी तार्किकता पर घिसने वाला होता है

              रामकृष्ण परमहंस की कुंडली

पंचमेश बुद्ध , शनि  के क्षेत्र , लग्न में स्थित है । 
लग्नेश शनि नवम भाव में स्थित है । 
पंचम भाव स्थित बृहस्पति की लग्न , लग्नेश, पंचमेश   और  नवम भाव पर दृष्टि है । 
नवमेश शुक्र उच्च का दूसरे भाव में स्थित है । 
सन्यास कारक  भाव दशमेश उच्च का होकर मोक्ष के भाव 12 वें  भाव में स्थित है । 

द्वारा
गीता झा