Thursday, May 10, 2018

हिंदू धर्मपरिवर्तन

इस धर्मपरिवर्तन का कारण वर्तमान समय में केवल दो हैं - 

१. हम हिंदू/सनातनी होकर भी अपने धर्म व संस्कारों के विषय में सम्पूर्ण जानकारी नहीं रखते, इसलिए हम में अपने धर्म के प्रति तथ्यात्मक व सम्पूर्ण गर्व नहीं है। जिसके कारण गूगल पर भी हमारे धर्म के बारे में प्रतिदिन अनेकों गलत/भ्रामक लेख छपते हैं, जिन्हें पढ़कर हमारे उभरता बुद्धिजीवी वर्ग केवल हिंदू/सनातनी धर्म पर कटाक्ष करता है और हमारे धर्मावलंबियों में ग्लानि भरने का कार्य करता है। 

२. हममें एकता नहीं/ एकजुटता नहीं है, क्योंकि हम सबसे अधिक व्यक्ति भावना (धर्म) स्तर पर स्वार्थी हैं। 
पूर्ण ज्ञान तो हमारे देश के मुसलमानों और ईसाईयों को भी अपने धर्म का नहीं है, लेकिन उनमें एकजुटता है। यदि कोई मुस्लिम/इसाई किसी मुसीबत में फंसता है तो उनकी पुरी कौम बिना कोई कारण जाने उनकी सहायता को तैयार रहता है, और करता भी है। अपने धर्म की केवल मिसालें वो देते हैं। 

दूसरी ओर हम (हिंदू/सनातनी) हमें नहीं फर्क पड़ता कि हमारे पड़ोस के घर में चुल्हा जला या नहीं, बच्चों को नौकरी मिली या नहीं, क्योंकि हम अपने घर की ही चिंताओं में मग्न है (बात सामान्य स्थितियों की कर रही हूँ, जो संघ की शिक्षाओं से अवगत नहीं हैं, हो सकता है बहुत से हममें से भी हो)। 
 भले देश जाये चुल्हें में पर हर मुसलमान/इसाई को हर मुसलमान/इसाई की फिक्र है। यह एक प्रमुख कारण है कि हमारे धर्मावलंबी भाई-बहन अपने घर की स्थिति सुधारने के लिए धर्म परिवर्तन। करते हैं 
खासकर इसाई मिशनरियाँ धर्म परिवर्तन करने वाले परिवार के बच्चों की शादियां करवाते हैं, उनका घर घर बनवाते हैं, उनकी नौकरियां लगवाते हैं और साथ ही आर्थिक रूप से अलग सहयोग करते हैं 

मुसलमान/इसाई हमेशा अपने धर्म की मिसाल अपने बच्चों को देते हैं  और 
 हमें तो अपने रिश्तेदारों/दोस्तों की भी इतनी फिक्र नहीं है। हम अपने बच्चों को अपने धर्म की कमियाँ बताते हैं। 
ये भी एक कारण है धर्म परिवर्तन का ।

एक प्रश्न आपके समक्ष रखती हूँ दिल पर हाथ रखकर सोचिएगा कि कभी आपने अपने घरों में इस तरह की बातें अपने बच्चों को या आपके बड़ों ने कभी बताई है- भीमराव अम्बेडकर जी को सब जानते हैं, लेकिन कितने लोग अपने घरों में अम्बेडकर जी की चर्चा करते हुए ये बताते हैं कि उनकी शिक्षा के लिए उस समय में समाज से लड़ने वाला एक ब्राह्मण था, उन्हें विदेश जानकर शिक्षा ग्रहण के लिए धन देने वाला एक राजा एक क्षत्रिय था और उनका हौंसला अफजाई करने वाला उनका एक मित्र एक वश्य एक बनिया था (मित्र वाली बात मेरा विचार है कोई ना कोई तो बनिया मित्र भी उनका रहा होगा, बाकी तथ्यात्मक है)। 
कितने परिवार के बच्चों को पता है कि हमारे धर्म में जातियाँ/ वर्ण कभी जन्मगत थे ही नहीं, ये तो कर्मगत थे? और समाज को अगर आज भी देखों तो कोई उस ढाँचे को नकार नहीं सकता, क्योंकि हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गयी व्यवस्था वैज्ञानिकता पर आधारित थी।  

सोचिए क्या हमारे घरों में चर्चा होती है इन बातों पर?

हम राष्ट्र पर मर - मिटने वाले प्राणी हैं, लेकिन रिश्तेदारी/दोस्ती और धर्म को भुलाने वाले प्राणी भी हम ही हैं।


एक विशेष बात अक्सर बहुत से लोग (आक्षेप करने वाले) मनुस्मृति पर सवाल उठाते हैं- कि मनुस्मृति ब्राह्मण ने लिखी थी, इसमें जन्मगत वर्ण व्यवस्था दी गई, यदि कोई ऐसा आपके समक्ष बोले तो उसे एक जवाब दीजिएगा - मनुस्मृति के ऋषि जन्मगत ब्राह्मण नहीं थे कर्मगत ब्राह्मण थे। अगर उन्होंने वर्णव्यवस्था बताई है तो उससे अगले ही अध्याय में उन्होंने एक ही  माँ (पिता)की कोख से ब्राह्मण और शुद्र की जन्म की बात भी कही है। 

जिस दिन हम इन विषयों पर अपने परिवार में चर्चा करना प्रारंभ करेंगे और अपने राष्ट्र के साथ साथ अपने धर्मावलंबी भाई बहनों की मदद सच्चे दिल से करेंगे तभी हमारे परिवार के सदस्यों में भी सत्य गर्व भर सकता है और इस धर्म परिवर्तन पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है।