Friday, November 23, 2012

तुम्हारे लिए

         

"अरे! रुपाली , तुम्हें मालूम है? कल पार्टी में जो  एस .डी . . साहिब आये थे ,उनकी कार आज बैंक मोड़ पर दुघटना-ग्रस्त हो गई है,उन्हें सीरियस हालत मैं अस्पताल ले जाया गया है। "

जया के मूंह  से ये शब्द निकलते ही रुपाली के हाथ से चाय का कप छुट पड़ा और वह बौखला कर उठ पड़ी। उत्तेजित होकर उसने जया से पूछा " आर यू श्यौर ? क्या वे एस .डी . .अतुल ही थे ?"

जया रुपाली के व्यवहार से आश्चर्यचकित  थी। वह अपनी जिज्ञासा छुपाते हुए बोली ''अरे भाई ! जब दुर्घटना हुई थी तब मेरी गाड़ी वहीँ से गुजर रही थी . बेचारे ड्राईवर ने तो वहीँ दम तोड़ दिया था। एस .डी . . साहिब को भी बुरी तरह जख्मी हालत में अस्पताल पहुँचाया गया है . लगता है दुनिया में इन्सान की जान ही सबसे सस्ती वस्तु रह गई है "


रुपाली दरवाजे से बाहर  चल पड़ी। उसे जाता देख जया कह उठीयह क्या रुपाली ? अभी तो तुम्हारी दो क्लासेस बांकी हैं ना?" रुपाली के लिए यह सब सुनने का वख्त ही कहाँ था।कॉलेज से बाहर  निकल कर उसने टैक्सी पकड़ी और अस्पताल की ओर चल दी।

यह अतुल कौन है? जिसके लिए रुपाली इतनी बेचैन हो गई थी? अभी कल ही तो कॉलेज के get - together पार्टी में वह अतुल को देख कर चोंक उठी थी। जब अतुल ने उसे रमेश के साथ देख तो तो उसके चहरे पर एक दर्दीली मुस्कान छा गई थी रमेश ने ही अतुल का परिचय करवाया "" रुपाली ये यहाँ के के एस . डी . . साहिब हैं " और अतुल उसे "हेलो "' कह कर आगे बड गया था। रमेश ने बाद में बताया की अतुल अभी तक अविवाहित है।


परन्तु क्या अतुल से उसकी पहचान केवल एक ही दिन की है? रुपाली के मस्तिष्क में अतीत के पन्ने पलटने लगे, और अतीत मनाओ स्वयं दृष्मान होकर सामने खड़ा हो गया।

आज से बीस साल पहले की घटनाएं उसे याद आने लगी। रुपाली के पिता का इलाहबाद में बहुत बड़ा कारोबार था। वे दिन रात अपनी सम्पति को बढ़ने की चिंता में रहते थे। रुपाली की माँ आधुनिक विचारों की महिला थी। उसे किट्टी  पार्टियों और महिला सम्मेलनों से फुर्सत की नहीं मिलती थी।

माँ -बाप के प्यार से मरहूम पाँच साल की रुपाली के लिए उसकी दादी ही सब कुछ थी। उसके लिए उसकी दादी का प्यार रेगिस्थान में किसी  नखलिस्तान से कम नहीं था।अचानक दादी की मौत से रुपाली को इस प्रेम से भी वंचित हो जाना पड़ा

तब रुपाली के पिता गावं से अपने घर काम -करने वाली का बारह साल का  बेटा अतुल , रुपाली के देख-भाल करने के लिए लाये।


उस लड़के की माँ ने पिताजी से अनुरोध किया था की उसका लड़का पढने में बहुत तेज है,इसलिए शहर में भी उसकी पढाई जरी रहे तो उसे बहुत ख़ुशी होगी। इलाहाबाद में पिताजी ने अतुल का नाम घर से पास ही एक प्राइमरी स्कूल में छठी जमात में लिखवा दिया था।

ऐसी बात नहीं थी की रुपाली के घर में नौकर- चाकरों की कमी थी।परन्तु जिस स्निग्धा की आशा एक बच्चे को होती है ,उसे कोई वृद्ध दे सकता है या कोई बच्चा।

कुछ ही दिनों में रुपाली अतुल से बेहद -घुल मिल गई।अतुल का काम था रुपाली को बगीचे में घुमाना,उसे कहानियां सुनना,उसके खाने-पीने का ध्यान रखना,इस सब से उसे फुर्सत मिलती तो वह अपनी पढाई करता था।

परन्तु रुपाली को उसकी पढाई से बहुत चिढ थी। क्योंकि फर्स्ट क्लास में होने के बाबजूद बहुत प्रयास करने के बाबजूद भी वह पांच से आगे के टेबल्स याद नहीं कर पाई थी। अतुल का अतिरेक ज्ञान उसके लिए आँखों की किरकिरी के सामान था। इसी इर्ष्या के कारण एक दिन उसने ब्लेड से अतुल का हाथ काट दिया और उसके किताबों की धज्जियां उड़ा दी थी। बेचार अतुल चुपचाप विद्यालय से मिली अपनी किताबों की दुर्दशा देखता रहा था।


धीरे-धीरे समय पंख लगा कर उड़ने  लगा। अतुल के ऊपर रुपाली का वर्चस्व कायम ही रहा। मेट्रिक की परीक्षा में अतुल का चयन मेरिट लिस्ट में हुआ, जिससे  उसे स्कालरशिप भी मिलाने लगी थी। परन्तु रुपाली का अपने पब्लिक स्कूल में पढने का अभिमान और अतुल को नीचा दिखने की प्रवृति ,  वह खोज-खोज कर  कठिन से कठिन प्रश्न लेकर आती , उसकी प्रशान्तता पर तब तुषारपात हो जाता जब अतुल मिनटों में उन प्रश्नों का हल निकाल  देता था।

रुपाली जब सातवी कक्षा में पहुंची तो अतुल ने इंटरमीडिएट में पूरे  जिले में अव्वल स्थान प्राप्त  किया था। साथ ही उसका चयन इंजीनियरिंग कॉलेज में भी हो गया था।पिता जी उसकी सफलता से बड़े प्रसन्न थे।

परन्तु रुपाली ने अपनी बाल -सुलभ बुद्धि से कहा "क्या अतुल ! तुम इंजिनियर बनकर क्या करोगे? मुझे तो सफ़ेद कपड़ों में डॉक्टर अच्छे लगते हैं।"

तब अतुल कुछ सोचता हुआ अपनी माँ से मिलाने गावं रवाना हो गया।


कुछ दिनों के बाद अतुल की माँ घबराई सी  घर आई और पिता से बोली "साब आप अतुल को समझिए , इतनी मुस्श्किल से इसका इंजीनियरिंग में दाखिला हुआ है लेकिन अब यह कहता है की यह एक साल घर बैठ कर डाक्टरी  की पढाई करेगा।"पिता जी भी अतुल के रवैये से अचम्भित थे।

फिर जब अतुल रुपाली से मिलाने आया .रुपाली ने भी यही सवाल किया किया की उसने ऐसा फैसला क्यों किया . तो वह रुपाली को एक कागज का पुर्जा थमा कर चल गया उस पर लिखा था ----"तुम्हारे लिए।"

समय का चक्र चलने लगा।रुपाली कॉलेज पहुँच गई। अतुल कभी-कभी घर में मिलाने के लिए जाता था।और रुपाली की पढाई  में मदद  करता था।रुपाली को याद है एक दिन वह अपनी एक सहेली के घर गई थी, उसके बड़े भाई  को देख कर वह बड़ी प्रभावित हुई थी, जिसने हाल में ही लोक-सेवा-आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

अगली बार जब अतुल घर आया तो रुपाली ने उसे भी लोक-सेवा-आयोग की परीक्षा में बैठने को कहा।अतुल बुद्धिमान तो था ही, मेहनती भी कम नही था। उसने फ़ौरन फॉर्म भरा और जम कर परीक्षा की तैयारी की।रुपाली की प्रसन्ता की ठिकाना रहा जब अतुल ने इस प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त कर ली थी।

इस दौरान दोनों एक दुसरे के बहुत करीब गए थे।ट्रेनिग में जाने से पहले अतुल ने रुपाली से विवाह करने की इक्छा उसके पिता के सामने प्रगट की .तब उसके पिता का गुस्सा सातवें असमान पर चढ़ गया था। उनका ब्राह्मणत्व जग उठा वे चिल्ला  कर बोले "" ऊँची नौकरी करने से शरीर का खून नहीं बदल जाता है अतुल !कल तक तुम्हारे बाप-दादा हमारे ही जूठे पत्तल पर खाना खाते आये हैं समुन्द्र की लहरें कितनी भी कोशिश कर ले वे आसमान नहीं छू सकती है "

यह सुनते ही अतुल का दिल बुरी तरह टूट गया .प्रेम का जो नन्हा पौधा उसने अपने बचपन में लगाया था।जो आज दरख़्त बन गया था।उसके फलने-फूलने से पहले ही समाज के दकियानूसी विचारों के झंझावत से वह उखड गया था।

रुपाली भी अपने खानदान और समाज की अबरू के सामने पस्त हो गई थी।अतुल हमेशा के लिए उसे छोड़ कर जा चुका था।

 कुछ ही दिनों में रुपाली का विवाह रमेश से कर दिया गया।जो एक कॉलेज में प्रध्यापक था। कुछ वर्षों के बाद रुपाली भी उसी कॉलेज में प्राध्यापक लग गई थी।अपने छोटे से परिवार के साथ वह अपने
जख्म भरने का प्रयास कर रही थी। अचानक  कल की पार्टी  में अतुल को देख , उसके जीवन में एक बार पुनः झंझावत गया था।


"मेमसाब ! अस्पताल गया " ड्राइवर के कहने अपर रुपाली की तन्द्रा
 
टूटी और वह उसे 200 रूपए देकर बांकी  के पैसे लिए बिना अस्पताल की
 
सीढियाँ चढ़ने लगी।


शरीर और मन के साथ साथ-साथ चल पाने के कारन उसकी चाल लडखडा रही थी। इंटेंसिव केयर वार्ड के बाहर अतुक का पूरा स्टाफ खड़ा था।



रुपाली ने डॉक्टर से अतुल से मिलाने की आज्ञा मांगी,तब डॉक्टर ने कहा कि केस बहुत सीरियस है , एस .डी . . साहिब केवल किसी रुपाली को याद कर रहे हैं।बाकि लोग उनसे नहीं मिल सकतें हैं।

तब रुपाली ने अपना परिचय दिया।और वार्ड में प्रवेश किया


अतुल की नाक से ऑक्सीजन की नाली लगी हुई थी।उसकी बुरी हालत देख रुपाली को रोना गया। तभी लगभग अर्द्ध विक्षिप्त हालाते में अतुल ने अपनी आंखें खोली। रुपाली को आने पास खड़ा देख उसे इशारे से बुलाया। शायद उसे अभी कुछ कहने के लिए जिन्दा रहना था।



रुपाली के पास आने पर अतुल ने धीरे-धीरे लडखडाती आवाज़ में कहा " रुपाली , मैंने जीवन में वही किया जो तुम चाहती थी। मगर में तुमें ना पा सका . तुम ही मेरी प्रेरणा थी और तुम ही मेरा लक्ष्य थी-------में फिर से जन्म लूँगा तुम्हारे लिए "

                         

यह कहते ही अतुल ने हमेश के लिए आंखें मूंद ली। उसके होंठ अभी भी मुस्करा रहे थे,जो शायद समाज की दकियानुसियत का मजाक उड़ाते प्रतीत होते थे।

गीता मिश्रा झा



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