Thursday, March 21, 2013

अंतिम निर्णय


मैंने घडी में समय देखा, रात के दो बज रहे थे मेज पर रखे गिलास का पानी मैं एक ही साँस में पी गई सरसरी तौर पर मैंने फिर  अपना नोट पढ़ा ....

" आदरनीय मम्मी और पापा , मुझे याद है , एक बार हमारी क्लास टीचर ने कहा था ---इतिहास अपने को दोहराता है जो कदम दीदी ने तीन साल पहले उठाया था उसी को आज मैं दोहरा रही हूँ जिस यातना और हैवानियत की दुनिया में आप लोग मुझे धकेलना चाहते हैं, उसकी अंतिम परिणिति भी इसी में होती

मैं जो कदम  उठा रही हूँ इसमें किसी का दोष नहीं है आशा है आप लोग मुझे माफ़ करेंगें "

मेरा गला सुख रहा था , होठों पर जीभ फेरते हुए मैंने नोट के नीचे  हस्ताक्षर किये " नीरजा शर्मा " और उसके ऊपर पेपर वेट रख उसे ऐसी जगह रख दिया की कमरे में घुसते ही उसके ऊपर नज़र  चली जाये

कमरे में कोने में सुराही रखी  हुई थी मैं उठी और सुराही से गिलास में पानी डालने लगी तभी बगल के कमरे से आवाज आई " निरा अब सोई नहीं बेटी ? और कितना पढेगी ?  सो जा सुबह उठ का पढना "

तो मम्मी अब तक जग  रही है लम्बे समय तक गठिया की बीमारी से लड़ने वाला उनका शरीर रात और दिन के अंतर को भूल चुका  है असहनीय पीड़ा के बीच कुछ ही क्षण होते थे जब वे सो पाती थी वे क्षण भी शायद मेरी वजह से उनसे छिन गए थे

लाइट  बंद करके मैं पलंग पर गई सोते ही दीपा ने अपने हाथ पैर मेरे ऊपर चढ़ा लिए पहले दीदी के साथ सोती थी मगर जब से दीदी गई , तबसे वह मेरे साथ ही सोती है

तभी पापा के खांसने की आवाज़ आई पापा की खांसी कितनी बढ़ गई है अपना ज़रा भी ख्याल नहीं रखते हैं। कितनी बार कहा की दवाई ले आईये , लेकिन हर बार हंस कर बोलते देतें हैं " जिस दिन निरा बेटी की डोली उठेगी, उसी दिन मेरी सारी  बीमारियाँ भी ठीक हो जाएँगी "

रोज़ी के घर एक तस्वीर देखि थी सलीब पर टंगे हुए यीशु की पुरे जगत की पीड़ा आत्मसात करने का दर्द था उनके चहरे पर कितनी समानता है पापा और यीशु में लेकिन यीशु सलीब पर चढ़ कर खुदा  बन गए और सभी उन्हें पूजते हैं, मगर मैं जानती हूँ मेरे पापा के साथ ऐसा नहीं होगा नहीं पापा मैं आपके सलीब की आखिरी कील नहीं बनूँगी

दीदी आज अँधेरे में तुम्हारा दिखाया हुआ रास्ता की सही लग रहा है आखिर कोई कितने समय के लिए याद रखेगा ? एक दिन वह भी आएगा जब तुम्हारी तरह पापा मम्मी और सब लोग मुझे भूल जाएंगें

आपने सीने  पर से दीपा का हाथ उठा कर मैंने तकिये के नीचे  टटोला मेरा हाथ में एक छोटी से शीशी गई "कीटनाशक दवाई " शायद उसकी एक खुराक ही मेरे लिए काफी होगी फिर सबको हमेशा के लिए सभी मुसीबतों से छुटकारा मिल जायेगा

अचानक लगा खिडकी का पर्दा हवा के झोके से ऊपर उठा बाहर दीदी दोनों हाथ फैला कर खड़ी है शायद धीरे-धीरे कह रही है  "जल्दी आओ निरा ! मैं यहाँ हूँ ! "

मैंने सिर को तेज़ी से झटका शायद मौत से पहले ऐसे ही विचार आते हैं

तभी दीपा का हाथ जोर से हवा में लहराया और धप से फिर मेरे सीने  पर पड़ा कल से दीपा के दसवीं के बोर्ड की परीक्षा है लेट -लतीफ़ उठने वाली दीपा ने आज घडी में छह बजे का अलार्म लगाया हुआ है तो कल 18 मार्च है इसके पक्का एक महीने बाद ही मेरी शादी होगी "18 अप्रैल " हाँ यही तारीख तय की थी अनूप के घर वालों ने

पांच साल पहले भी इस घर में शहनाई बजी थी मुझे याद है दुल्हन के सुर्ख जोड़े में दीदी कितनी सुन्दर लग रही थी " आज तो बन्नो रानी को दुल्हे मियां की नज़र लग कर ही रहेगी " मैंने दीदी को चुटी काटते हुए कहा था "धत्त पगली कहीं की ! " दीदी ने मेरे पीठ पर एक प्यार भरी धौल रसीद करते हुए कहा था

पहली संतान माँ -बाप की आकाँक्षाओं का मूर्त रूप होती है यही कारण  था पापा इस दिन बहुत खुश थे सबको कहते फिरते " अरे भाई ! मैं तो शुरू से ही जानता था , हमारी अचला को कोई डॉक्टर या इंजिनियर मुह खोल कर मांग लेगा "

दीदी की सुन्दरता ही अद्वितीय थी तभी तो जब वह बी . . के अंतिम साल में ही पढ़ रही थी तभी उसके लिए अरुण का रिश्ता गया था

अरुण रायबरेली में इंजिनियर था हमारे  मामा का करीबी रिश्तेदार पापा ने फ़ौरन यह रिश्ता मंजूर कर लिया आखिर कौन लड़के वाला अपना मुह खोल कर खुद लड़की का हाथ मंगाते हैं

मुह खोलने के साथ ही उनके मुह से एक हल्की सी आवाज़ भी साथ ही आई थी "लघु मांग " की लघु शायद इसलिए थी क्योकि दीदी की सुन्दरता का भी ध्यान रखा गया था

शादी वाले दिन इस लघु मांग से पूरा पंडाल भरा हुआ था कार , रंगीन टी . वी . फ्रिज , . सी . , अलमारी और जाने क्या -क्या

पापा की जीवन भर की जमा -पूंजी इसमें फूंक चुकी थी मगर उनके चहरे पर एक शिकन तक नहीं थी  | मम्मी से कहते फिरते थे  "देखना अपनी अचला ससुराल में राज करेगी , अरे ! इकलौती बहु है , सारा राज पाठ  तो उसे ही मिलेगा "'

शादी के तीन महीनों बाद दीदी आई थी उसका रूप और निखर गया था  | मुझे वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी | पापा मम्मी ने दीदी और जीजा की खातिर में जी जान लगा दिया था मगर जाने क्यों मुझे लगा की दीदी बात करते करते कहीं खो जाती थी या ख़ामोशी से दीवारों को ताकती रहती थी मैंने सोचा था की शायद यह सब नए माहौल में अपने को ढालने की कोशिश का नतीजा है

जब वे लोग जाने लगे तो पापा ने मशहूर हलवाई की दूकान से मिठाई , फल और सूखे मेवों के बड़े बड़े डालिए साथ कर दिए आखिर दीदी पहली बार मायके आई थी खाली हाथ कैसे जाती ?

फिर एक दिन दीदी की एक चिट्ठी आई

''प्यारी नीरा ,

शुभ प्यार

सुनहरे सपने बिखरने लगे हैं मैंने तो जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा ? फिर यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है ?

सुबह से रात के बारह बजे तक मैं जानवरों की तरह काम करती हूँ लेकिन इन लोगों के मुह से केवल जली कटी बातें ही सुनती हूँ

मम्मी ने जो मुझे आपने गहने दिए थे , वे सभी ननद की भेंट चढ़ गए है यह लोग अफ़सोस करते हैं की उन्हें अपने काबिल लड़के की पूरी कीमत नहीं मिली है शायद इसी की भरपाई ये लोग मुझे दुःख देकर करते हैं

तुम सोच सकती हो , उस दिन मुझे कितना दुःख हुआ होगा जब शादी के तीसरे दिन ही एक मामूली से बात पर अरुण ने मेरे ऊपर हाथ उठाया था

तुम्हारी दीदी

मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया प्यारी दीदी यह सब क्या हो गया ? पापा तो चिट्ठी पढ़ कर बुत ही बन गए थे सात दिनों तक उन्होंने किसी से बात तक नहीं की थी

मम्मी भी दुखी होकर कहती " मेरी फूल सी बच्ची ! क्या -क्या सपने देखे थे हमने उसके लिए सब खाक में मिल गए ''

फिर चिट्ठियों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह थमा ही नहीं एक दिन जीजा जी आये और दीदी को छोड़ कर चले गए

दीदी को देख कर हम सभी चौक पड़े थे सिर्फ हड्डियों को जोड़  कर बनाया गया एक मानव पिंजर थोड़ी ही अवधि में दीदी एकाएक बूढ़ी लगाने लगी थी

जीजा जी के जाने के बाद दीदी पापा के कंधे से लग कर कितना रोई थी बिल्कुल एक मासूम बच्ची की तरह तब मैं और दीपा कितने सहम गए थे

दीदी ने धीरे -धीरे मुझे बताया की उसके ससुराल वाले बहुत लालची हैं वे लोग ननद के लिए एक फ्लेट खरीदना चाहते हैं और इस बात की उम्मीद रखते हैं की पापा उन्हें 20 लाख रुपए दे इसके लिए वे लोग दीदी को शारीरक और मानसिक यातनाएं देते थे

"जब तक रुपयों का प्रबंध हो जाए घर मत आना "'

यही उन लोगों का फ़रमान था

पापा को जब इस बात का पता चला तो उनके पावों तले  जमीन ही खिसक गई व्याहता बेटी को आखिर कब तक घर में बैठा कर रखते रोहतक में अपने पुरखों की ज़मीन बेच कर उन्होंने अपने बेटी को 20 लाख रुपये थमा कर विदा कर दिया

फिर तीन चार महीनों तक दीदी की कोई चट्ठी नहीं आई हम लोग समझ रहे थे की अब  स्थिति सुधर चुकी होगी आखिर किसी को दुःख देने की भी कोई सीमा होती है

परन्तु शीघ्र ही पता चला हम लोग कितने गलत थे इस बार दीदी बिलकुल अकेले आई अधमरी और बीमार सी दीदी ने रोते रोते बताया की अरुण अपना कारोबार करना चाहता है इसके लिए वे लोग पापा से 20-25 लाख पाने की उम्मीद कर रहे हैं

दीदी ने पापा को भरे गले से कहा था " पापा प्लीज मुझे वहां मत भेजिए ! वे लोग मुझे मार डालेंगें ''

तब पापा ने दिवार को ताकते हुए कहा था "अचला बेटी स्वार्थी मत बन ! तेरे पीछे तेरी दो बहनें और भी हैं अगर तू अपना ससुराल  छोड़ कर यहाँ बैठ जाएगी तो इन दोनों से कौन शादी करेगा ''

और दीदी स्वार्थी नहीं बनी दो दिन बाद ही पापा दीदी को लेकर उसके ससुराल पहुँच गए उन्होंने हाथ जोड़ कर उन लोगों से विनती की "मैं अपनी पूरी जमा पूंजी पहले ही शादी में लगा चूका हूँ पुरखों की जमीन भी बेच दी है दो साल बाद ही मैं रिटायर हो जाऊंगा , जरा सोचिये ! अभी मेरी दो बेटियां और भी हैं "

परन्तु वे लोग नहीं पसीजे  | दीदी की ननद ने मुह बने हुए कहा था  '' जिस फ्लेट में आप लोग रहते हैं उसकी कीमत ही 25 लाख रूपए होगी मगर कुछ लोग बेटी से ज्यादा पैसों को पकड़ कर रहते हैं यह सब तो आमिर घर में बेटी देने से पहले ही सोचना चाहिए था ''

पापा अपमान का घूंट पीकर रह गए थे शादी को दो साल ही हुए थे की एक दिन वह मनहूस टेलीग्राम पहुंचा

" अचला ने तीसरी मंजिल से कूद कर खुदकुशी कर ली है ''

पुरे घर  में मातम छा गया मम्मी ने तो खाट ही पकड़ ली पापा के ऊपर कहर का पहाड़ टूट पड़ा था

हम लोग रायबरेली गए थे दीदी के ससुराल वालों के चहरों पर ज़रा भी दुःख का भाव नहीं था दीदी की सास बोली '' बहु को कितना मना किया की रैलिंग पर मत बैठा कर मगर उसका बचपना जाता तब जाने हमारे प्यार में क्या कमी रह गई थी की वह रैलिंग पर दाल बीनने के बहाने चढ़ी और नीचे कूद पड़ी ''

मुझे उन लोगों के बनावटी दुःख प्रदर्शित करने पर क्रोध रहा था पुलिस थाने  में केस दर्ज हुआ " आत्महत्या का मामला ''

नहीं दीदी तुम आत्महत्या  नहीं कर सकती थी तुम्हें मारा  गया था पापा ने भी अपना मुह बंद रखना उचित समझा क्योकि उनके सामने दो -दो बेटियों के भविष्य का सवाल था जाने यह कैसी विडम्बना थी

दीदी की मौत के छह महीनों बाद ही पता चला की अरुण ने दुबारा शादी कर ली थी इस बार उन्होंने एक गरीब घर की लड़की को अपनी बहु बनाने की गलती नहीं की थी

पिछले  वर्ष मैंने भी स्नातक की परीक्षा पास कर ली थी प्रत्येक पिता का एक ही सपना  होता है अपनी बेटी की डोली देखने का अनूप एक अच्छे खाते - पीते  घर का लड़का था और उसके घर वालों की ''लघु मांग '' के अलावा और कोई  मांग नहीं थी

मुझे याद है सगाई में अनूप की माँ  मेरी बलाएं लेते हुए बोली थी  " लड़की तो लक्ष्मी होती है ! उसके घर में आते ही घर सुख -समृद्धि से भर जाता है ''

कीटनाशक  दवाई की शीशी पर मेरे हाथ की पकड़ मजबूत हो गई

ससुराल में सुख समृद्धि का एक ही रास्ता है पापा के प्रोविडेंट फंड का सफाया मेरी आँखों के सामने पापा का खांसता हुआ चेहरा घूम गया मम्मी का करहाना क्या मैं इन लोगों के बुढ़ापे की आखिरी आस भी छीन लूंगी ? सारा पैसा मुझ में लगा देंगें तो दीपा का क्या होगा ? नहीं मेरे जीने से किसी का भला संभव होते नहीं दिखता है

तभी लगा की मैं पिघलते हुए कोलतार की सड़क पर भाग रही हूँ गर्म -गर्म कोलतार मेरे पैरों को जल रहा है तभी सामने बबूल का एक पेड़ दिखाई दिया , जिसमें  एक फंदा लटक रहा था | हाँ यही मेरी मंजिल है

तभी मैंने पीछे मुड कर देखा , मेरे पीछे - पीछे दीपा भागी -भागी रही है "रुको दीदी मैं भी तुम्हारे साथ जाउंगी "

और उसके पीछे जाने कितनी लड़कियां भागी चली रहीं हैं

मेरा शरीर पसीने पसीने हो उठा फिर लगा मेरे शरीर का पोस्ट मार्टम हो रहा है मोहल्ले के लोग चटकारे लेकर तरह तरह की बातें कर रहे हैं पापा मम्मी जीते जी मर चुके है दीपा से लोग मेरे बारे में तरह तरह के सवाल पूछ  रहे हैं , और वह मासूम खाली रोती जा रही है ।अपने छत- विक्षिप्त शरीर को देख कर मेरे मुह से चीख निकलते निकलते रह गई

शीशी पर मेरे हाथ की पकड़ ढीली हो गई दीदी के बाद मैं , मेरे बाद दीपा और उसके बाद जाने कितनी लड़कियों का यह हश्र होगा

इस सिलसिले को कहीं  तो रोकना ही पड़ेगा

शीशी मेरे हाथ से फिसल कर फर्श पर गिर पड़ी नहीं दीदी मैं तुम्हारा रास्ता नहीं अपनाउंगी मुझे अभी जीना है शायद मौत से ज्यादा कठिन जीना है और इसी जीने में मेरी जीत है

टर्न-टर्न टर्न-टर्न .....अलार्म घडी बजने लगी इसका मतलब छह बज गए  है मैंने दीपा को झंझोर कर उठाया दीपा आँखें मलते हुए उठी और मुह धोने बाहर चली गई

मैं उठी मैंने खिड़की का पर्दा सरकाया बाहर पालाश  के पेड़ के पीछे से सूरज उग रहा था मानो सूरज का लाल रंग चुरा कर पालाश के फूल खिल उठे हो

मुझे अपनी कल्पना पर हंसी गई

सामने देखा मेरा नोट पड़ा हुआ था उसे उठा कर उसके टुकड़े टुकड़े कर कूड़े दान के हवाले किया

मेज़ की दराज़ से एक फोरम निकला कर उसे पेपर वेट से दबा दिया

'' सब-इंस्पेक्टर के लिए आवेदन पत्र "

और एक नन्ही सी मुस्कान मेरे चहरे पर खिल गई

द्वारा

गीता  मिश्रा झा 

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