2. गायत्री मन्त्र - माता -पिता
मन्त्र के उच्चारण के साथ की अदृश्य माता - पिता का अनुभव होने लगता है .
3. पंचमुखी दसमुखी महाशक्ति का आभास
भावना करते ही गायत्री माता का स्वरुप सर्वव्यापी , अंतर्यामिनी , सर्व्शाक्तिशालिनी तथा महामाहिमामायी प्रतीत होता है .
4. ब्रह्म - विद्या स्वरूपा
गायत्री ब्रह्मा की ब्रह्मानी शक्ति है . इस रूप की उपासना करने से साधक के अंतःकरण
में ब्रह्म - ज्ञान , तत्वबोध , ऋतंभरा प्रज्ञा एवं सूक्ष्म दृष्टि का अविर्भाव होता है .
5. परम - पोषक वैष्णवी
विष्णु की शक्ति को वैष्णवी कहते है . माता की गोद में साधक आपने को नवजात शिशु के रूप में सौंप देता है तो अनंत शक्ति तथा अनमोल मातृत्व सुधा का पान करने लगता है .
6. शाम्भवी
- शक्ति
शिव योगेश्वर है . उनकी चेतवानी तथा गतिशीलता ही शाम्भवी शक्ति है. गायत्री ही शिव के त्रिनेत्र की शक्ति है . इनकी दया होते ही समस्त कषाय - कष्टों का नाश हो जाता है , बुराइयाँ भस्म हो जाती है .
7. उद्धारकत्री माता
संसार को भवसागर कहा जाता है. किंककर्तव्यविमूढ़ता के कारण इस भवसागर में डूबते का उद्धार गायत्री
मन्त्र का मनन अवश्यमेव कर देता है . उसकी शरणागति
से बढ़ कर कोई ऐसी नौका नही जो संसार सागर से सरलतापूर्वक पार लगा दे.
8. सदगुरु की प्राप्ति
सदगुरु
सरल तथा पहचान में नहीं आने वाले साधारण आदमी प्रतीत होते हैं . इनकी पहचान कठिन है . माता की कृपा जब साधक पर होती है तब स्वतप प्रयास में सदगुरु की प्राप्ति हो जाती है .
9. अनिष्ट - निवारिका
मनुष्य के जीवन में नाना प्रकार की व्याधियां , यातनाएं , कठिनाइयाँ एवं पीडाएं हैं , जो असंयम , खुदगर्जी , कुटिलता , आलस्य , दुर्व्यसन तथा दुष्कर्मों के कारण है . गायत्री मन्त्र के शरण में आते है ये स्वमेव औंस की बूंदों की तरह तिरोहित हो जाते हैं .
10. सद - गुणों की वरदात्री
गायत्री
उपासना प्रारंभ करते ही दया, सेवा , संयम , सत्य , शौर्य , प्रेम, त्याग, सद - विवेक तथा सद - भावना के गुण दिन दिन बढ़ने लगते हैं .
11. उन्नति मार्ग - निर्धारिका
गायत्री मन्त्र धारण करते ही व्यक्ति आत्मोत्थान , शारीरिक आर्थिक , बौद्धिक पारिवारिक उन्नति को प्राप्त करता हुआ यश, प्रतिष्ठा , आदर , एवं सुख - सुविधा का अधिकारी बनता है .
12. बंधनों से मुक्ति
मन्त्र कृपा से साधक को दिव्य शक्ति की ऐसी सहायता प्राप्त होती है , जिसके कारण समस्याओं की समस्त जंजीरें कट जाती हैं .
13. प्रारब्ध - परिवर्तन
यद्यपि प्रारब्ध बड़ा प्रबल होता है . लेकिन गायत्री शरणागत के कारण अत्यंत दुस्तर और असत्य कष्टों की यातना हलकी होकर बड़ी सरल रीति से भुगत जाती है.
14. रिद्धियों
- सिद्धियों का प्रादुर्भाव
गायत्री उपासक जब अपने आन्तरिक
मल - विक्षेपों को शुद्ध का लेता है , तो उसकी अन्तःभूमि में दैवी-शक्तियों का स्वमेव प्रादुर्भाव होता है और अनेक आलौकिक सामर्थ्य उसमें प्रगट होते हैं .
15. कायिक-कष्टों से निवृति
गायत्री साधना से असाध्य रोग के रोगी को मौत के मुंह से वापस लौटते देखा गया है. मन्त्र एक ऐसी रामबाण औषधि है , जिसके सामने चिकित्सा - शास्त्र मूक प्रतीत होता है .
16. सद - बुद्धिदायिनी शारदा
गायत्री शक्ति का बीजांक है ......... हीं श्रीं क्लीं ............ गायत्री
बुद्धि का मन्त्र है . इसमें ...हीं ....तत्व की प्रधानता है . इसकी उपासना से शुद्ध - बुद्धि की चित्त में वर्षा होती हुई दिखाई देती है .
17. एश्वर्य - दायिनी लक्ष्मी
गायत्री की ……….श्री……….. शक्ति लक्ष्मी ही है . इसमें एश्वर्य , वैभव तथा संपत्ति की प्राप्ति के साथ - साथ उसके सद - उपयोग की बुद्धि भी मिलती है .
18. महाशत्रुओं से रक्षा
गायत्री का ....क्लीं ..... रूप संहारक है . शत्रुओं का विनाश इसका प्रथम कर्तव्य
है .
19. अदृश्य -अद्भुत सहायिका
गायत्री उपासना करने से वह सहायता और सहयोग स्वमेव मिलेगा जिसकी कल्पना भी संभव नहीं है.
20. परम संतोष
गायत्री उपासना से साधक को अनमोल धन संतोष की प्राप्ति होती है .
21. सौभाग्य -स्नेह से पूरित परिवार
गायत्री उपासक का अंग-अंग सौभाग्य की चका चौंध से सरोबर हो जाता है तथा परिवार में स्नेह सुधा की वर्षा होती सी प्रतीत होती है .
22. कषाय - कटमषों का तिरोहन
व्यक्तित्व से कषाय , कटमषों का नाश होता है .
23. वसुधैव - कुटुम्बकम
गायत्री का यह विलक्षण प्रभाव है , मानव को मानवता प्रेमी बना देती है
जन्म - मरण , आवागमन की बेडी काटती है गायत्री
. परम प्रभु से मिलन कराती है .
No comments:
Post a Comment