Monday, February 17, 2014

रेकी - वैकल्पित चिकित्सा पद्धति

रेकी  चिकित्सा पद्धित  जापानी पद्धति है।  इसके प्रवर्तक डॉ मिकाओ यूसुई हैं, जिन्होनें ऐसी प्रवृति कि ऊर्जा तरंगों को खोज निकाला जो  मनुष्य कि हथेलियों और हाथों से विकरित  होती है , जिनमें किसी भी रोग को दूर करने कि क्षमता विद्यमान  होती है। 


 इन ऊर्जा तरंगों के माध्यम से  स्पर्श द्वारा या पृथ्वी पर कहीं  भी स्थित रोगी का रोग दूर किया जा सकता है।  

डॉ  .  यूसुई के अनुसार  इन रेकी  ऊर्जा तरंगों का प्रभाव सूक्ष्म शरीर पर होता है ये    पूर्णतः हानिरहित होती है।  उनके  अनुसार यह  ईश्वरीय ऊर्जा है जो  ब्रह्माण्ड से अवतरित होकर रेकी चिकित्सक के शरीर में प्रविष्ट होती है , एवं निकलती है। 

मानव-विकास प्रक्रिया में विज्ञान कि उन्नति के कारण  मानव ने आज अज्ञात जगत के कई रहस्यों को जान लिया है।

हर मनुष्य अपनी सीमाओं के साथ जन्म लेता है उसकी हर वस्तु - तथ्य के निरिक्षण -परीक्षण करने कि सीमा होती है।  जैसे हमारी आँखें एक खास वेवलेंथ को पकड़ पाती हैं और एक खास  वेवलेंथ पर हमारा कान सुनता है।  सीमा के ऊपर और नीचे  करोड़ों  करोड़ों वेवलेंथ है।  आज हमें अल्ट्रावॉयलेट, इन्फ्रारेड, रेडियो वेव , इंफ्रासोनिक, एक्स -रे  इत्यादि कि जानकरी है।  ये तरंगें ब्रह्माण्ड में प्रतिक्षण  उपस्थित है, एवं निरंतर हमारे ऊपर प्रभाव  डालती रहती हैं।  लेकिन अपनी सीमाओं के कारण  साधारणतः हमें इनका पता नही चलता हैं।  अत्यंत विशिष्टि यंत्रों के माध्यम से ही इनकी  उपस्थिति जानी जा सकती है।


हमारे आसपास से करोड़ों ध्वनियाँ  गुजर जाती हैं जिनका हमें पता भी नही चलता है।  अगर एक तारा  ब्रह्माण्ड से टूटता है तो उसकी भयंकर गर्जना हमारे चारों  तरफ से निकल जाती है , लेकिन हम  उसे नही सुन पाते हैं।  इसी प्रकार हमारे नेत्र एक्स-रे , इन्फ्रारेड , अल्ट्रावॉयलेट इत्यादि प्रकाश  किरणों को नही देख पाते हैं।  यहाँ तक कि हमारे शरीर में विद्यमान तापमान का भी दायरा है।  अठानवे डिग्री से एक सौ दस डिग्री के मध्य हम  जीते हैं।  अठानवे से नीचे एवं एक सौ दस के ऊपर भी तापमान होता है, लेकिन इस सीमा से नीचे  या ऊपर जाने से दोनों हालात में हम  मृत्यु के करीब पहुँच जाते हैं। 

ब्रह्माण्ड से निरंतर कई ऊर्जा तरंगें हमारे शरीर पर गिरती है और निरंतर हमें प्रभावित  करती हैं।  ब्रह्माण्ड में व्याप्त असंख्य ऊर्जा तरंगों में से कई तरंगें मनुष्य के ऊपर स्वाथ्यकारी प्रभाव डालती है।  इस ऊर्जा तरंगों में विस्मयकारी स्वास्थ्य-प्रदान करने वाले गुण होते हैं।  ऐसी तरंगों  को  डॉ यूसुई ने ईश्वरीय-ब्रह्मांडीय तरंगें कहा एवं ये "रे "के नाम से जानी जाती हैं।

 जिस प्रकार एक रेडियो  के ऊपर कई ध्वनि तरंगें पड़ती है लेकिन वह उस विशिष्ट स्टेशन पर ट्यून कर देने से ही  वह उस  विशिष्ट स्टेशन कि वेवलेंथ को पकड़ पाता  है।  उसी प्रकार  रेकी के माध्यम से ईश्वरीय ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों का अनुभव हो पाता  है।  इसके लिए रेकी मास्टर एक निश्चित प्रक्रिया से शरीर का एट्यूनमेंट  करता है।
 
ऊर्जा के सहारे  यंत्रों का संचालन  में जिस विद्युत कि आवश्कता होती है उसे  जीव-विद्युत कहा जाता है , इस विद्युत तरंगों को अब सूक्ष्मग्राही यंत्रों द्वारा अनुभूत किया जा सकता है।  इन विद्युत तरंगों को  वैज्ञानिक बायो -मैग्नेटिजम , बायो- प्लाज्म  , एक्टो-प्लाज्म , बायो-फ्लक्स आदि नामों से सम्बोधित करते हैं।   डॉ  .  किर्लियन  एवं डॉ  .थैल्मामास  ने किर्लियन तथा ऑर्गन फोटोग्राफी द्वारा इनके रंगीन चित्र भी खींचे है।  डॉ यूसुई के अनुसार यह  जीवनी शक्ति "की  " है।  जो प्रत्येक व्यक्ति ,जीव,  पदार्थ में निवास करती है |

रेकी के माध्यम से ईश्वरीय- ब्रह्मांडीय शक्ति और जीवनी शक्ति का सामंजस्य स्थापित कर स्वास्थ्य  पाया जाता है इनके असंतुलन से ही नाना प्रकार  के शारीरिक  -मानसिक  व्याधियां उत्पन्न होती है |
मानव शरीर में जो विद्युत -प्रवाह है वह सूक्ष्म शरीर में होता है।  इस सूक्ष्म शरीर में अनेक  शक्ति केंद्र हैं जहां विद्युत  भंवर बनाते हैं।  जिनमें इस शक्ति पुंज का निर्माण होता है।  प्रत्येक विद्युत- भंवर या चक्र का सम्बन्ध जीव के शारीरिक -मानसिक-आध्यत्मिक क्रिया -कलापों से जुड़ा रहता है।  जिस क्षेत्र में चक्र में सक्रियता होती है वहाँ विद्युत की तीव्रता  अधिक होती है |



जहां इन चक्रों कि गति , स्थति या बनावट  में विकार उत्पन्न  होता है , उसी विशिष्ट चक्र से सम्बंधित  शारीरिक-मानसिक  क्षेत्र रोगग्रस्त हो उठता है| 

रेकी के अंतरगत  इन शक्ति केन्द्रों को ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों के माध्यम से एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा ट्यून किया जाता है।  इससे शरीर कि विद्युत ऊर्जा का "वोल्टेज "अत्यधिक बढ़ जाती है और किरणों का  उत्सर्जन अधिक हो जाता है |  इस प्रक्रिया के माध्यम से रेकी चैनल  ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम से अपने शरीर के ऊर्जा केन्द्रों को जागृत कर अपने शरीर  कि विद्युत शक्ति को कई गुणा  बड़ा लेते हैं | कालांतर में अपने हाथों कि हथेलियों के माध्यम से उस अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा  का उपयोग  रोगी के विकार ग्रस्त ऊर्जा केन्द्रों को सक्रिय करने में किया जाता है।  शीघ्र ही रोगी के शरीर में जो ऊर्जा का असंतुलन था वह धीरे-धीरे ठीक होने लग जाता है, और  रोगी स्वास्थ्य लाभ उठाने लग जाता है।


अतः रेकी एक अत्यंत प्रभावशाली, निरापद एवं अध्यात्मिक वैकल्पित चिकित्सा  - प्रणाली  है। 
द्वारा
गीता झा
भारत

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