शिव तत्व
विश्व भर में जो मूल प्रकृति ईश्वरी शक्ति है , उस प्रकृति द्वारा पूजित देव शिव कहलाते हैं . “ शि ” का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और “व ” कहते हैं मुक्ति देने वाले को . शिव में दोनों गुण हैं . शिव वह मंगलमय नाम है जिसकी वाणी में रहता उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं . शिव शब्द कल्याणकारी है और कल्याण शब्द मुक्तिवाचक है . यह मुक्ति भगवान शंकर से प्राप्त होती है अतः वे शिव कहलाते हैं . भगवान शिव विश्वभर के मनुष्यों का सदा “शं ” या कल्याण करते हैं और कल्याण मोक्ष को कहते हैं इसलिए वे शंकर भी कहलाते हैं .
शिव अखंड , अनंत , निर्विकार , चिदानंद, परमात्मा तत्व हैं . जो अनन्त अन्तःकरणों माया भेद में प्रतिबिम्बित होते हैं. अंतःकरण गत प्रतिबिम्बित ही जीव कहलाता है और मायागत प्रतिबिम्बित ही ईश्वर कहलाता है .
शिव ही समस्त प्राणियों के अंतिम विश्राम के स्थान हैं . अनंत पापों से उद्गिन होकर विश्राम के लिए प्राणी जहाँ शयन करे, उसी सर्वाधिष्ठान , सर्वाश्रय को शिव कहा जाता है .
जागृत , स्वप्न और सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं से रहित , सर्व दृश्य , विवर्जित, स्वप्रकाश, सच्चिदानंद परब्रह्म ही शिव तत्व है . शिव ही परम शिव और दिव्य शक्तियों को धारण कर अनंत ब्रह्मांडों का उत्पादन, पालन और संहार करते हुए ब्रह्म, विष्णु शंकर आदि संज्ञाओं को धारण करते हैं .
मृत्यु और अमृत तत्व
जब शरीर निश्चेष्ट हो जात है और उसमें चेतन का कोई भी लक्षण नही रहता है तो हम कहते हैं की उसकी मृत्यु हो गई है . स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है . मृत्यु के उपरांत जीव नया शरीर धारण करता है . वर्तमान शरीर को त्याग कर शरीरांतर ग्रहण करने पर भी जिन्हें पूर्व जन्म की स्मृति बनी रहती है उनकी मृत्यु , मृत्यु नहीं कही जाती है क्योंकि उनके ज्ञान की सन्तति विच्छिन्न नही होती है . उन्हें “इच्छा मृत्यु ”या “अमर ”आदि नामों से भी पुकारा जाता है . उन्होंने अमृत तत्व का लाभ कर लिया होता है . नए - नए शरीर में प्रवेश करने पर भी उनका ज्ञान और पूर्व जन्म की स्मृति लुप्त नही होती है . वे “जाति – स्मर ” कहलाते हैं .
अज्ञान युक्त देहादि प्रकृति के परिवर्तन के साथ “मैं ” भी परिवर्तित हो रहा हूँ , इस प्रकार का ज्ञान होना ही अज्ञान है . परिवर्तन का नाम ही मृत्यु है और इससे विपरीत ज्ञान की , प्रकृति के परिवर्तन के साथ मेरा परिवर्तन नहीं होता है , यही ज्ञान ही अमृत तत्व है . परिवर्तन शील “मैं ” के अन्दर एक नित्य स्थिर “मैं ” है जिसका परिवर्तन नहीं होता है , जो इन सारे परिवर्तनों का साक्षी है और उन्हें परिवर्तन रूप से जानता है .
ऐसे मुक्त- पुरुष संसार के बंधन से मुक्त हो जाने पर जीवों के कल्याण हेतु एक या अधिक बार शरीर धारण कर जगत में आवागमन करते हैं . ये लोग मृत्यु तथा प्राण तत्व पर विजय प्राप्त किये रहे हैं और मृत्यु इनके वशवर्ती रहती है. अमृत्व तत्व धारण करने के कारण ये सदा नित्य , ज्ञानमय और आनंदमय भाव में अवस्थित रहते हैं .
महामृत्यंजय मन्त्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ॥
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ॥
हम तीन नेत्रों वाले भगवान शिव की अराधना करते हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं. उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए. जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा उनके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं .
महामृत्युंजय शिव
मृत्यु पर जय प्राप्त करने वाले और अमृत का लाभ करने वाले मृत्युंजय हैं . शास्त्रों में मृत्युंजय महादेव के ध्यान के जो श्लोक मिलते हैं उनमें वेदोक्त त्र्यम्बक मन्त्र से मृत्युंजय शिव का स्वरूप जाना जा सकता है . भगवान मृत्युंजय के जप ध्यान की विधि मार्कंडेय , राजा श्वेत आदि के काल भय निवारण की कथा शिवपुराण , स्कन्ध पुराण , काशी खंड, पद्मपुराण आदि में आती है . आयुर्वेद ग्रंथों में मृत्युंजय - योग मिलते हैं .
महामृत्युंजय शिव का स्वरुप
त्र्यम्बकं शिव अष्ठभुज हैं . उनके एक हाथ में अक्षमाला और दुसरे में मृग - मुद्रा है , दो हाथों से दो कलशों में अमृत रस लेकर उससे अपने ऊपर मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं और दो हाथों से उन्हें उन्होंने अमृत कलशों को थामा हुआ है .
दो हाथ उन्होंने अपने अंक पर रख छोड़े है और उनमें दो अमृत पूर्ण घट है . वे पद्म पर विराजमान है , मुकुट पर बाल चन्द्र सुशोभित है जिसकी अमृतवृष्टि से उनका शरीर भींगा हुआ है , ललाट पर तीन नेत्र शोभायमान हैं , उनके वाम भाग में गिरिराजनान्दिनी उमा विराजमान हैं . ऐसे देवाधिदेव श्री शंकर की हम शरण ग्रहण करते हैं .
शिव सदैव अमृत रूप हैं और अमृत में ही सराबोर रहते हैं .
मृत्युंजय शिव का आध्यत्मिक रहस्य
अमृत प्रवाह नाडी, स्पंदन अथवा गति के सूचक है . जिन दो धाराओं के द्वारा शिव अपने मस्तक को सदा आप्लावित करते हैं , वे गंगा - यमुना, सूर्य - चन्द्र के प्रवाह की इड़ा और पिंगला नाडी है, जो रज और तम की वाचक हैं . इन्हीं दोनों शक्तियों के कारण ही जगत की जागतिक क्रिया कलाप होते हैं . जब दोनों शक्तियाँ साम्यावस्था में होती हैं तो तभी प्रकृति -ज्ञान रूप का या सरस्वती का प्रवाह दृष्टिगत होता है, यही सुषुम्ना अथवा विशुद्ध सत्त्व है .
त्र्यम्बकेश्वर शिव के महा मृत्युंजय मन्त्र के जाप से इन दोनों धाराओं को शुद्ध और समन्वित कर मध्यम स्थित सुषुम्ना को जागृत कर विशुद्ध सत्त्व तत्व की प्राप्ति की जा सकती है . ऐसे जातक जगत के परिवर्तन अथवा मृत्यु के राज्य से त्राण पा लेते हैं .
महामृत्युंजय मन्त्र के जाप से लाभ
मृत्युंजय शिव संसार की समस्त औषधियों के स्वामी, मृत्यु के नियंत्रक , आरोग्य और स्वास्थ्य के प्रदाता हैं . इस जटिल और तनाव युक्त जीवन में इस मन्त्र द्वारा अकस्मित दुर्घटनाओं से जीवन की रक्षा की जा सकती है . रोगों का निवारण भी किया जा सकता है . भाव, श्रद्धा तथा भक्ति से इस मन्त्र का जाप करने पर भयंकर व्याधियों का भी विनाश हो सकता है . यह मन्त्र मोक्ष साधन है और दीर्घायु, शन्ति, धन -संपत्ति , तुष्टि तथा सदगति भी प्रदान करता है .
This is powerful healing with the grace of Lord Maha Mritunjay. Maha Mritunjay mantra has a vibration frequency of around 490 Hertz. So, this works very fast. This is an accurate system in the world, based on the present mental state of the person and can remove the evil plenary affecting our lives and bring positive effects. This is a powerful and accurate technique to remove almost all life problems.
द्वारा
गीता झा
गीता झा