आज हमारे भारतीय समाज में थोक के भाव बहनों ने भाईयों के ऊपर पैतृक सम्पति को लेकर कोर्ट केस किया हुआ हैं. हमारे समाज में जहाँ सगे भाईयों और गोतिया में सम्पति के बंटवारे को लेकर तलवारें खिंची रहती हैं वहां बहनों का यह एलाने- जंग कुछ गंभीर मुद्दों को उठता हैं. यह मुद्दा जहाँ वैधानिक ,सामाजिक और आर्थिक हैं वहीँ इसके मनोवैज्ञानिक पहलूओं पर भी नज़र डालनी चाहिए.
कुछ एक साल पहले हमारे भारतीय समाज़ की एक नव-विवाहित लड़की ने बहुत महत्पूर्ण सवाल उठायाथा.उस लड़की का विवाह एक अत्यंत प्रतिष्टित परिवार में हुआ था. ससुराल में सास ससुर के अलावा उसकी पांच ननदें थी. विवाह के कुछ समय पश्चात ही ननदों ने मायके में पूर्वजों की पैतृक सम्पति पर अपना अधिकार माँगा. सास- ससुर भी सहृदय अपनी पुत्रियों को हिस्सा देने को तैयार हो गए. गौर करने की बात यह हैं की उन पांचो ननदों का विवाह सम्मानित और समृद्ध परिवारों में हुआ हैं और उनके पत्तियों की प्रस्थिति काफी अच्छी थी,तथा उनका विवाह भी प्रचुर दान -दहेज़ देकर किया गया था.
तब पुत्र -वधु ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही उसने कहा की उत्तराधिकार के बंटवारे के साथ कर्तव्यों का भी बंटवारा होगा . अगर सम्पति के 6 हिस्से हुए तो माता- पिता जी, जो अब तक बेटे- बहु के साथ रहते थे अब साल के दो महीने हरेक संतान के साथ रहेंगे .इस प्रकार माता पिता साल में केवल दो महीने ही बेटा-बहु के साथ रहेंगे.
यह सुन कर बेटियों ने विद्रोह कर दिया और कहा की अगर वो माता- पिता को रखेंगी तो उनके अपने सास-ससुर कहाँ जायँगे ? इस पूरे प्रकरण में विचारने योग्य तथ्य यह हैं की सास ने खुद अपनी ननदों को अपने ससुराल की सम्पति में से फूटी कौड़ी भी नहीं दी थी.लेकिन अपनी समृद्ध बेटियों को वो उत्तराधिकार में हिस्सा दे रहीं हैं.
यह महिलाओ की जटिल और दोहरी मानसिकता हैं. उनकी ननद या बेटी की ननद अगर अपनी पैतृक सम्पति में अपना हिस्सा मांगती हैं तो वो लालची और घर तोड़ने वाली होती हैं ,लेकिन यही काम अपनी बेटी करती हैं तो वो जरूरतमंद और वैधानिक होती हैं.
'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:। ' (इस श्लोक या मन्त्र का अर्थ है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा| हे रक्षे!( रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। )कहते हुए ना जाने कितनी बार हमने अपने भाईयों की कलाइयों में राखी बांध कर आजीवन अपनी रक्षा का वचन माँगा हैं. आज हमें यकीन नहीं रहा की भाभी के आने के बाद वही भाई हमारी रक्षा करनेका टाइम निकाल सकता हैं.खून पानी से गाढ़ा ही होता हैं , विपत्ति पड़ने पर प्रत्येक भाई अपनी बहन की रक्षा करेगा ही, इस पर विश्वास करना चाहिए. यदि हम बहने अपने मायके में अपने अधिकारों की मांग भी करती हैं हमें अपने ससुराल की बेटियों को भी उनका हक़ देना चाहिए और अधिकारों की मांग के साथ अपने कर्तव्यो को निभाने की कुब्बत भी होनीचाहिए.
वैधानिक कानून सामाजिक परिवर्तन नहीं ला सकते हैं.जब हमारे हृदय परिवर्तित होंगे तभी समाज बदलेगा ,और फिर अपने भाई की एक मुस्कान के ऊपर तीनों जहान की दौलतें कुर्बान.
By
Food and Nutrition
ReplyDeleteRemedies
Skin Care
Eye Care
USA News
ReplyDelete