यदि जन्म -कुंडली में चार, पांच, छह या सात ग्रह एकत्रित होकर किसी स्थान में बैठे हों तो जातक प्रायः सन्यासी होता है । परन्तु ग्रहों के साथ बैठने से ही सन्यासी योग नहीं होता है वरन उन ग्रहों में एक ग्रह का बली होना भी आवश्यक है । यदि बली ग्रह अस्त हो तो भी ऐसा जातक सन्यासी नहीं होता है । वह केवल किसी विरक्त या सन्यासी का अनुयायी होता है । यदि बली ग्रह किसी ग्रह-युद्ध में पराजित होता है या अशुभ ग्रहों की दृष्टि में होता है तो ऐसा जातक सन्यासी बनने का इच्छुक तो होता है लेकिन उसे दीक्षा नहीं मिलती है ।
यदि सन्यास प्रदान करने वाला बली ग्रह युति के अंतर्गत ग्रह युद्ध में हार गया हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक सन्यास ग्रहण कर उसे छोड़ देता है । ग्रहों की युति में यदि कोई ग्रह दसम भाव का अधिपति होता है तो भी सन्यास-योग बनता है ।
सन्यास -योग के लिए मूल रूप से निम्न तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए
- चार या चार से अधिक ग्रहों का एक स्थान पर बैठना ।
- उनमें से किसी एक ग्रह का बली होना ।
- बली ग्रह का अस्त न होना ।
- हारे हुए बली ग्रह पर अन्य ग्रह की दृष्टि न पड़ती हो ।
- उन ग्रहों में से कोई दशमाधिपति हो ।
यदि सूर्य सन्यासी-ग्रह हो तो जातक वानप्रस्थ, अग्नि को पूजने वाला, पर्वत या नदी के किनारे रहने वाला, सूर्य, शक्ति का उपासक होता है ।
यदि चन्द्रमा सन्यासी-ग्रह हो तो जातक के शैव होने की सम्भावना होती है, वह गुरु का अनुशरण करने वाला होता है ।
मंगल के सन्यास-ग्रह होने पर जातक लाल वस्त्र धारी सन्यासी होता है , शाक्य , भिक्षावृति कर गुजारा करने वाला होता है ।
बुद्ध यदि सन्यास-ग्रह होता है तो जीवक विष्णु भक्त हो सकता है , तांत्रिक क्रियाओं का प्रदर्शन कर आजीवका कमाने वाला हो सकता है , बोलने की कला में निपुर्ण होता है ।
बृहस्पति यदि सन्यास-ग्रह हो तो जातक भिक्षु, तपस्वी, धर्मशास्त्रों का ज्ञाता , यज्ञ यादि कर्मकांडों को करने वाला होता है ।
शुक्र के सन्यास-ग्रह होने पर जातक भ्रमण करने वाला , वैष्णव , व्रत करने वाला होता है । यदि शुक्र का सम्बन्ध पंचम, नवम या दशम भाव से हो तो जातक आध्यात्म से प्रसिद्धि या धन पाने का अभिलाषी होता है ।
शनि यदि सन्यास-ग्रह होता है तो जातक कठोर-तपस्या करने वाला , दिगंबर , निर्ग्रंथी होता है ।
द्वारा
गीता झा
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