यदि पूर्ण बली चन्द्रमा केंद्र में हों और उस ऊपर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि पड़ती हो तो जातक आध्यात्मिक वृति का होता है ।
यदि दशम स्थान पर मीन राशि में बुद्ध या मंगल स्थित हो तो जातक ईश्वरानुरागी होता है और अंत में उसे मुक्ति मिलती है ।
यदि नवम भाव का स्वामी बली हो और उस पर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि या युति हो तो जातक जप,ध्यान, समाधि में रूचि रखने वाला होता है ।
दशम भाव का स्वामी नवम भाव में हो और बली नवम भाव के स्वामी पर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि या युति हो जातक जप और ध्यान करने वाला होता है ।
दशमेश शुभ हो, दशमेश दो शुभ ग्रहों के मध्य हो,या दशमेश शुभ ग्रह के नवमांश में हो जातक अध्यात्म के क्षेत्र में उज्जवल कीर्ति को प्राप्त करता है ।
दशमेश शुभ ग्रह हो या उच्च या स्वगृही अथवा मित्रगृही हो तो जातक उत्तम आध्यत्मिक जीवन जीने वाला होता है और उसका जीवन निष्कलंकित होता है ।
लग्नेश दशम स्थान में हो और दशमेश नवम स्थान में हो और दसमेश पर पापग्रह की दृष्टि न हो पर शुभग्रह की दृष्टि हो और दशमेश शुभ ग्रह के नवमांश हो परन्तु स्वयं दशमेश पाप ग्रह न हो तो जातक यज्ञ , होम आदि कर्मकांड करने वाला होता है ।
द्वारा
गीता झा
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