एक चीज़ होती है प्रेम और दूसरी चीज़ होती है आसक्ति या मोह । आज जिसे लोग प्रेम कहते हैं , वह किसी दूसरे के साथ खुद को बाँधने का,खुद की पहचान बनाने का एक तरीका है , एक आर्ट है , एक तकनीक है । आसक्ति प्रेम नहीं है । आसक्ति का प्रेम से कोई लेना देना भी नही है ।
आसक्ति काफी सुविधाजनक है जैसे सजावटी प्लास्टिक के फूल । आपके अहंकार को यह पुष्टि देता है , मैं कितना महान हूँ मैंने इसे चाहा ! अगर आप किसी के प्रति आसक्त होंगें तो उसके व्यवहार, स्वभाव और प्रतिक्रिया से आपके मन में बैचनी, डर , आशंका और पागलपन धीरे धीरे घर करने लगेंगें । आसक्ति आपको भावनाओं के एक ऐसे हाई वे पर ले जाती है जिसका आखिरी पड़ाव पागलपन ही होता है । आपकी आसक्ति जिसके प्रति है आप उसके साथ एक होना चाहेंगें। ...... वह उपस्थित है तो आप प्रसन्न होते हैं और अगर अनुपस्थित है तो आप दुखी होते हैं । यह विशुद्ध गणित है निज़ी लाभ -नुकसान का ,प्रेम नहीं ।
प्रेम में आपको भौतिकता की सीमा को तोडना होगा , प्रेम निजी फायदे किए लिए नहीं है,सच्चा प्रेम खुद को मिटाने का एक तरीका है । हम खुद के मैं को मिटाने से डरते हैं इसलिए आसक्ति की तरफ सहज आकर्षित हो जाते हैं । इससे अपना अहम भी बना रहता है , और झूठी तसल्ली भी बनी रहती है कि हम प्रेम करने के महारथी हैं ।
जब आप प्रेम में होते हैं वह भी सच्चे तो आपके भौतिक शरीर की सीमाएं टूट जाती हैं । प्रेम आपके शरीर को स्पंदनों से भर देता है और हो सकता है आपकी आँखों में आँसू भर जाएँ या आपका गला रुंध जाए । प्रेम एक मनोदशा है, एक मनोवृति है, जो मिटने की कला जानते हैं वही सच्चा प्रेम कर सकते हैं ।
कभी कभी लगता है मैंने उसे इतना चाहा , बदले में मुझे कम मिला या कुछ भी नहीं मिला या मेरे धोखा हुआ , तो निश्चिन्त रहिये आप आसक्ति की गिरफ्त में हैं प्रेम की नहीं । जो बांटने और देने से घट जाता है वह वासना है,आसक्ति है । उसे भूलकर भी प्रेम नहीं समझना ।आसक्ति , काम और वासना को नापा जा सकता है केवल प्रेम ही एक ऐसी immeasurable unit है जिसको नापा नहीं जा सकता है , यह अमाप है ।
प्रेम प्रार्थना है । एक सच्चा प्रेमी वही है जो प्रताड़ना, ईर्ष्या , दोषारोपण, माल्कियत की भावना से मुक्त होता है । मैंने तुझे प्रेम किया इतना ही काफी है । बदले में कुछ भी प्रतिकार चाहने वाला कुछ और कर सकता है लेकिन सच्चा प्रेम नहीं कर सकता है ।
अधितर प्रेम का अर्थ लोग एक प्रकार के एकाधिकार या माल्कियत से लेते हैं । जिस क्षण आप प्रेम के नाम पर किसी भी जीवित चीज़ पर अपना अधिकार जमाते हैं , आप उसे मार डालते हैं । तब आप चिंतित होंगें , आपको लगेगा की आपने तो प्रेम किया लेकिन सामने वाले ने आपको धोखा दिया । याद रखिये यदि आपको सच्चा प्रेम होगा तो आप कभी भी असुरक्षित, भयभीत और ईर्ष्यालु नहीं महसूस करेंगें ।
जो व्यक्ति प्रेम को समझ लेता है वह परमात्मा को समझने की फ़िक्र छोड़ देता है । प्रेम और परमात्मा एक ही डायमेंशन की चीजें हैं । प्रेम चरम नियम है ।
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