Sunday, October 13, 2024

महिषासुर मर्दिनी: देवी दुर्गा की वंदना (राग शिवरंजनी या रेवती पर आधारित लयबद्ध गीत)

 



महिषासुर मर्दिनी: देवी दुर्गा की वंदना

पर्वतराज हिमालय की कन्या, तू आनन्द की धारा,

संसार को हर्षित करती, तू जगत की पालनहारा।

नंदीगण भी करे वंदना, विन्ध्य के शिखरों पर वास,

विष्णु की प्रिय, इन्द्र से पूजित, शिव संग तेरा है विलास।


जय हो, जय हो महिषासुर मर्दिनी, पार्वती!

शिवप्रिय देवी, जय हो शक्ति अविनाशी!


इन्द्र को दे समृद्धि, तूने दानवों का नाश किया,

दुर्धर और दुर्मुख को, रण में तूने परास्त किया।

तीनों लोकों का पोषण कर, शिव को तूने संतोष दिया,

पाप हरती, दैत्यों का विनाश कर, तूने धर्म का दीप जला।


जय हो, जय हो महिषासुर मर्दिनी, पार्वती!

रण की नायिका, शक्ति की तू अविरल धारा!


समुद्र की कन्या लक्ष्मी-रूपिणी, तू करती कोप प्रबल,

मद में डूबे दैत्यों का, करती तू संहार अचल।

सदा हर्षित, तीनों लोकों की तू पालनहार महान,

शिव की प्रिया, पर्वतपुत्री, तेरी महिमा हो अज्ञात।


जय हो, जय हो महिषासुर मर्दिनी, पार्वती!

सर्वशक्ति स्वरूपिणी, अमर जयकार निरंतर!


कदम्ब वन में क्रीड़ा करती, सदा संतुष्ट और मधुर,

हिमालय की ऊँचाई पर, तेरे भवन का होतें दर्शन अद्भुत।

मधु-कैटभ का संहार किया, महिषासुर का भी अंत किया,

मधुरमयी तेरी क्रीड़ाएँ, तूने जग को सुख से भरा।


जय हो, जय हो महिषासुर मर्दिनी, पार्वती!

शिव संग शोभा करती, रण में तुम हो प्रचंड, अनवरत।


हे जगजननी, पर्वतराज की महिमा तूने बढ़ाई,

दैत्यों का नाश कर, धरती पर विजयध्वजा फहराई।

शत्रु पर प्रहार कर, तूने समृद्धि से जग को भरा,

महिषासुर मर्दिनी, तेरी जय जयकार से जग खिला।


जय हो, जय हो महिषासुर मर्दिनी, पार्वती!

शिवप्रिय देवी, जय हो शक्ति की अमर गाथा!


गजाधिपति की सूँड़ को, काट डाले सैकड़ों टुकड़े,

सेनापति चण्ड-मुण्ड का, तूने अंत किया झटके।

शत्रु के हाथी गण्डस्थल को, भग्न किया सिंह सवार,

हे महिषासुर मर्दिनी, तुझको बारंबार नमस्कार।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

शक्ति की मूर्ति, रण में तूने दैत्यों का संहार किया।


रणभूमि में शत्रुओं को, तूने मद से विहीन किया,

शिव के संग दूत बना, दूषित कामना का अंत किया।

अदम्य शक्ति से संपन्न, तूने किया सर्वत्र उजागर,

हे महिषासुर मर्दिनी, तेरी शक्ति अपरंपार।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

शत्रु को हरने वाली, तुम हो विजय की दाता।


शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों को, तूने दिया अभय वरदान,

त्रिशूल उठा, दैत्यों पर किया तूने प्रहार महान।

दिशाओं में गूँज उठी, दुन्दुभि की 'दुम-दुम' ध्वनि,

हे महिषासुर मर्दिनी, तेरी जय-जयकार सजीव बनी।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

तीनों लोकों को तुझसे मिला सुरक्षा का आभास।


हुंकार से धूम्रलोचन को, तूने भस्म कर डाला,

रक्तबीज का रक्त पीकर, रणभूमि में विजय संभाला।

शुम्भ-निशुम्भ से युद्ध कर, शिव के भूतों को संतुष्ट किया,

हे महिषासुर मर्दिनी, तेरी महिमा अनंत और दीप्त।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

शक्ति की देवी, तुम हो सर्वशक्तिमान की साक्षात मूर्ति।


समरभूमि में खड़ी वीरांगना, धनुष से रण को करती शंखनाद,

शत्रु दल हो जाता कम्पित, केवल हिलने से तू दिखाती प्रहार।

स्वर्ण तीरों से सज्जित तरकश, तूने योद्धाओं के सिर काट गिराए,

चारों सेनाओं का संहार कर, रणभूमि में बटुकों को जगाए।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

रण की देवी, तुझसे रणभूमि में गूंज उठे हैं जयकार।


देवांगनाओं के नृत्य में, मग्न हुई तू भावमयी धारा,

कुकुथा आदि तालों पर, गाने में लीन रहे स्वर प्यारा।

मृदंग की ध्वनि धुधुकुट-धूधुट, गम्भीर सुरों से तू प्रसन्न,

हे महिषासुर मर्दिनी, तेरी जय हो, तू है रण में महान।


जय हो, जय हो, महिषा सुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

तू है नृत्य की रचयिता, तेरी लय में है संसार का संहार।


हे जपनीय मन्त्र की शक्ति, विजय का है तुझसे आशीर्वाद,

संसार तुझसे स्तुति करे, तेरे नूपुरों से मोहित भूतनाथ।

अर्धनारीश्वर संग नृत्य करे, नाट्य की नायिका हो तू महान,

हे महिषासुर मर्दिनी, तेरी महिमा से है नृत्य का उत्थान।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

तू है नाट्य की रचयिता, तेरी रचना से सुंदर है सृष्टि का भाव।


देवताओं के पुष्पों से तूने, अपनी कान्ति को किया अलंकृत,

शिव की प्रिय, तू रात्रिसूक्त से, संसार को करती है शुद्ध।

चन्द्रमुखी तू, सुंदर नेत्रों से, करुणा का करती है बोध,

हे महिषासुर मर्दिनी, तू है, ज्ञानियों की आराधना का स्रोत।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

तू है करुणामयी, संसार तुझसे ही पाता है मोक्ष।


युद्ध के वीरों के भाले, जब चक्र में घूमते रणभूमि में,

तू देखती हर घात-प्रहार, चित्त लगाती युद्ध कला में।

स्त्रियों के संग तूने, कृत्रिम लता गृह बनाया,

भिल्लिनियों के वाद्य संग, तूने कंठ को सजाया।


जय हो, जय हो, महिषासुर मर्दिनी, शिवप्रिय देवी पार्वती,

रण की देवी, तुझसे जगती है रणभूमि की जय-जयकार।


सुंदर दंतपंक्ति वाली, कामदेव को जीवन देने वाली,

मदोन्मत्त गजराज की चाल से, तीनों लोकों की शोभा सजाने वाली।

सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित, कान्तिमयी तु धारा,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, जय-जयकार तुम्हारा!


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तेरी महिमा अपरम्पार, जय-जयकार तुम्हारा!


चन्द्रकलामय मुख की शोभा, उज्जवल ललाट की ज्योति,

कोमल और विलासमयी, तेरा रूप अनुपम कान्ति।

राजहंसों की मंद चाल, केशों में मौलश्री पुष्पों का हार,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तुझको बारम्बार नमस्कार।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

शिवप्रिय माता, तेरी जय हो अपार!


मुरली की ध्वनि सुनकर, मौन हो जाती कोकिला लाज,

भौंरों की गुंजार संग, पर्वत निकुंजों में तेरा विहार।

भूत-भिल्लिनी संग क्रीड़ा में तल्लीन,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तेरी जय हो हर दीन।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तेरे चरणों में जग का उद्धार!


पीले रेशमी वस्त्र से शोभित, सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत,

मदोन्मत्त हाथियों के समान, तेरा रूप विकराल, अविस्मृत।

देवताओं और दैत्यों के शीश पर, किरणें बिखराए चरणनख,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तेरा तेज अपार, अटल।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

शिव की संगिनी, तेरा आशीर्वाद विशाल!


सहस्रों हस्त नक्षत्रों की विजयिनी, सूर्य के सम तेजमयी,

तारकासुर संग्राम में जय प्राप्त की, शिवपुत्र कार्तिकेय की माँ।

सुरथ और समाधि का ध्यान, समाधि में प्रेम स्वरूप तुम्हारा,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तुझको बारम्बार नमन हमारा।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तेरी महिमा अपार, तुझसे जुड़ी हर आशा।


हे कल्याणमयी, करुणामयी, कमलवासिनी हे माँ,

तेरे चरणकमल की आराधना से, लक्ष्मी का होता वास हर जगह।

हे शिवे, तेरा चरण है परमपद,

तेरी शरण में, सब इच्छाएँ होतीं पूर्ण, अचल।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तू है सर्वसमर्थ, तेरा पथ करुणा भरा!


जो तेरे प्रांगण को जल से धोता, पाता है इन्द्राणी का सान्निध्य,

सुन्दरियों संग तेरा मिलन, वरदायिनी हो तू, भवसागर पार कराने वाली।

तेरे चरणों में जो करता नमन, उसे सुख-समृद्धि अवश्य मिलती,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तेरा अनंत आशीर्वाद सबको मिलता।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तेरे चरणों की सेवा, करती है जगत का कल्याण।


शान्तचित्त से जो करता है तेरा स्तोत्र पाठ,

तू ही हो माँ लक्ष्मी, और करती जीवन में प्रवेश बिना किसी रोक।

शत्रु भी तुझसे सेवा करें, और बन्धु-बांधव सदा साथ रहें,

हे शिव की प्रिय पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, तेरी कृपा से सब कुछ संभव है।


जय हो, जय हो, हे महिषासुर मर्दिनी,

तू ही जग की रचयिता, तेरा अंश है जीवन का हर सुख।

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