सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती का हिंदी पाठ
पर्वतराज हिमालय की कन्या, पृथ्वी को आनन्दित करने वाली, संसार को हर्षित रखने वाली, नन्दिगण से नमस्कार की जाने वाली, गिरिश्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करने वाली, भगवान विष्णु को प्रसन्न रखने वाली, इन्द्र से नमस्कृत होने वाली, भगवान शिव की भार्या के रूप में प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्ब वाली और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
देवराज इन्द्र को समृद्धिशाली बनाने वाली, दुर्धर तथा दुर्मुख नामक दैत्यों का विनाश करने वाली, सर्वदा हर्षित रहने वाली, तीनों लोकों का पालन-पोषण करने वाली, भगवान शिव को संतुष्ट रखने वाली, पाप को दूर करने वाली, घोर गर्जन करने वाली, दैत्यों पर भीषण कोप करने वाली, मदान्धों के मद का हरण कर लेने वाली, सदाचार से रहित मुनिजनों पर क्रोध करने वाली और समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
जगत की मातास्वरूपिणी, कदम्ब वृक्ष के वन में प्रेमपूर्वक निवास करने वाली, सदा संतुष्ट रहने वाली, हास-परिहास में सदा रत रहने वाली, पर्वतों में श्रेष्ठ ऊँचे हिमालय की चोटी पर अपने भवन में विराजमान रहने वाली, मधु से भी अधिक मधुर स्वभाव वाली, मधु-कैटभ का संहार करने वाली, महिष को विदीर्ण कर डालने वाली और रासक्रीडा में मग्न रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
गजाधिपति के बिना सूँड़ के धड़ को काट-काट कर सैकड़ों टुकड़े कर देने वाली, सेनाधिपति चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुजदण्ड से मार-मार कर विदीर्ण कर देने वाली, शत्रुओं के हाथियों के गण्डस्थल को भग्न करने में उत्कट पराक्रम से सम्पन्न कुशल सिंह पर आरूढ़ होने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से बढ़ी हुई अदम्य तथा पूर्ण शक्ति धारण करने वाली, चातुर्यपूर्ण विचारवाले लोगों में श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पनावाले प्रमथाधिपति भगवान शंकर को दूत बनाने वाली, दूषित कामनाओं तथा कुत्सित विचारोंवाले दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से न जानी जा सकने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों के वीर पतियों को अभय प्रदान करनेवाले हाथ से शोभा पाने वाली, तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्य शत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ में धारण करने वाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से निकलने वाली ‘दुम्-दुम्’ ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अपने हुंकार मात्र से धूम्रलोचन तथा धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर डालने वाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समूहों का रक्त पी जाने वाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये गये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
समरभूमि में धनुष धारण कर अपने शरीर को केवल हिलाने मात्र से शत्रुदल को कम्पित कर देने वाली, स्वर्ण के समान पीले रंग के तीर और तरकश से सज्जित, भीषण योद्धाओं के सिर काटने वाली और (हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल) चारों प्रकार की सेनाओं का संहार करके रणभूमि में अनेक प्रकार की शब्दध्वनि करनेवाले बटुकों को उत्पन्न करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ।
देवांगनाओं के तत-था-थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहने वाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले तालों से युक्त आश्चर्यमय गीतों को सुनने में लीन रहने वाली और मृदंग की धुधुकुट-धूधुट आदि गम्भीर ध्वनि को सुनने में तत्पर रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
हे जपनीय मन्त्र की विजयशक्ति स्वरूपिणि ! आपकी बार-बार जय हो । जय-जयकार शब्दसहित स्तुति करने में तत्पर समस्त संसार के लोगों से नमस्कृत होने वाली, अपने नूपुर के झण-झण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान शंकर को मोहित करने वाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने में तल्लीन रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
प्रसन्नचित्त तथा संतुष्ट देवताओं के द्वारा अर्पित किये गये पुष्पों से अत्यन्त मनोरम कान्ति धारण करने वाली, निशाचरों को वर प्रदान करनेवाले शिवजी की भार्या, रात्रिसूक्त से प्रसन्न होने वाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल वाली और सुन्दर नेत्रवाले कस्तूरी मृगों में व्याकुलता उत्पन्न करने वाले भौंरों से तथा भ्रान्ति को दूर करने वाले ज्ञानियों से अनुसरण की जाने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
महनीय महायुद्ध के श्रेष्ठ वीरों के द्वारा घुमावदार तथा कलापूर्ण ढंग से चलाये गये भालों के युद्ध के निरीक्षण में चित्त लगाने वाली, कृत्रिम लतागृह का निर्माण कर उसका पालन करने वाली स्त्रियों की बस्ती में ‘झिल्लिक’ नामक वाद्यविशेष बजाने वाली भिल्लिनियों के समूह से सेवित होने वाली और कान पर रखे हुए विकसित सुन्दर रक्तवर्ण तथा श्रेष्ठ कोमल पत्तों से सुशोभित होने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
सुन्दर दंतपंक्ति वाली स्त्रियों के उत्कण्ठापूर्ण मन को मुग्ध कर देनेवाले कामदेव को जीवन प्रदान करने वाली, निरन्तर मद चूते हुए गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के सदृश मन्थर गति वाली और तीनों लोकों के आभूषण स्वरुप चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
कमलदल के सदृश वक्र, निर्मल और कोमल कान्ति से परिपूर्ण एक कलावाले चन्द्रमा से सुशोभित उज्ज्वल ललाट पटल वाली, सम्पूर्ण विलासों और कलाओं की आश्रयभूत, मन्दगति तथा क्रीड़ा से सम्पन्न राजहंसों के समुदाय से सुशोभित होने वाली और भौंरों के सदृश काले तथा सघन केशपाश की चोटी पर शोभायमान मौलश्री पुष्पों की सुगन्ध से भ्रमर समूहों को आकृष्ट करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
आप हाथ में सुशोभित मुरली की ध्वनि सुनकर बोलना बंद करके लाज से भरी हुई कोकिल के प्रति प्रिय भावना रखने वाली, भौंरों के समूहों की मनोहर गूँज से सुशोभित पर्वत प्रदेश के निकुंजों में विहार करने वाली और अपने भूत तथा भिल्लिनी आदि गणों के नृत्य से युक्त क्रीड़ाओं को देखने में सदा तल्लीन रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अपने कटिप्रदेश पर सुशोभित पीले रंग के रेशमी वस्त्र की विचित्र कान्ति से सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत कर देने वाली, सुमेरु पर्वत के शिखर पर मदोन्मत्त गर्जना करनेवाले हाथियों के गण्डस्थल के समान वक्षस्थल वाली और आपको प्रणाम करनेवाले देवताओं तथा दैत्यों के मस्तक पर स्थित मणियों से निकली हुई किरणों से प्रकाशित चरणनखों में चन्द्रमा सदृश कान्ति धारण करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतनेवाले और सहस्र किरणोंवाले भगवान सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय, देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करनेवाले, तारकासुर से संग्राम करनेवाले तथा संसार सागर से पार करनेवाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से प्रणाम की जाने वाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों में सम्यक जपे जानेवाले मन्त्रों में प्रेम रखने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे ! हे कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा । हे शिवे ! आपका चरण ही परमपद है, ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात सब कुछ प्राप्त हो जायेगा । हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है, वह इन्द्राणी के समान विशाल वक्षस्थलों वाली सुन्दरियों का सान्निध्य सुख अवश्य ही प्राप्त करता है । हे सरस्वति ! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ, मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो । हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित होनेवाले आपके मुखचन्द्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है, क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहने वाली चन्द्रमुखी सुन्दरियाँ सुख से वंचित रख सकती हैं । भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझने वाली हे भगवति ! मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता । हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
हे उमे ! आप सदा दीन-दुःखियों पर दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझपर कृपालु बनी रहें । हे महालक्ष्मी ! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ । हे शिवे ! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें । हे देवि ! मुझपर दया करें । हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
जो मनुष्य शान्तभाव से पूर्णरूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
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