Tuesday, July 2, 2013

Ten Commandments of Love







One
जन्म से हमारी वृति गलत तरीके से प्रशिक्षित हुई है हमें लगता है की हम बचपन से ही प्रेम की कला में निपूर्ण हैं और यह वृति हमें स्वाभाविक तौर से जन्म से मिली हुई है मात्र पैदा होने से कोई प्रेमी नहीं हो जाता है हाँ प्रेमी होने की एक सम्भावना एक बीज हममें उपस्तिथ है जो प्रशिक्षण और अनुशासन के माध्यम से एक पुष्प वाटिका बन सकती है

Two

अगर किसी को प्रेम देने से आपको लगे की आपमें कोई कमी हो गई है , तो समझ लेना चाहिए की प्रेम का अनुभव ही नही हुआ है अगर आप किसी को प्रेम देते हैं और भीतर लगता है की कुछ खाली हुआ है , तो समझ लेना चाहिए की जो आपने दिया है वह कुछ और होगा , प्रेम कदापि नहीं होगा अगर आपको लगे की आपके प्रेम करने से कुछ प्रेम कम हो रहा है तो आप प्रेम की अनुभूति से कोसों दूर हैं   

Three

प्रेम जितना भी दो , घटेगा नहीं जितना भी मिले बढेगा नहीं अगर पूरा सागर भी प्रेम का हमारे ऊपर टूट जाए तो भी रत्ती भर बढेगा नहीं और पूरा सागर लुटा दू प्रेम का तो भी रत्ती भर कम नही होगा  

Four

जिस दिन हमें ऐसा अनुभव होता है की मेरे पास ऐसा प्रेम है , जो में दे डालू , तो भी उतना ही बचेगा जितना था, उसी दिन हमारी दूसरों से प्रेम की मांग कमजोर हो जाती है  

Five

आजीवन हम सब दूसरों से प्रेम की भिक्षा मंगाते चले जाते हैं बचपन में जवानी में और बुढ़ापे में भी हमारी प्रेम की मांग बनी रहती है क्योंकि हमें गलतफहमी होती है की दूसरों से मिला प्रेम , हमरे अन्दर के प्रेम को बड़ा देगा लेकिन जो चीज़ मिलने से बढ़ जाए वह कुछ और होगा प्रेम नहीं  

Six

जो बांटने और देने से घट जाता है वह वासना है उसे भूलकर भी प्रेम नहीं समझना काम और वासना को नापा जा सकता है केवल प्रेम ही एक ऐसी immeasurable unit है जिसको नापा नहीं जा सकता है , यह अमाप है  

Seven

प्रेम जितना घनीभूत होगा , जितना गहरा होगा उतना ही पवित्र होता चला जाता है जिस व्यक्ति के जीवन में जितना अधिक प्रेम होगा , उतना ही उसके जीवन में sexuality कम होती चली जाती है व्यक्तिविशेष की कामेच्छा की अत्यंत प्रबल और अनियंत्रित वृति दर्शाती है की जीवन में प्रेम का आभाव है  

Eight

प्रेम प्रार्थना है एक सच्चा प्रेमी वही है जो प्रताड़ना, ईर्ष्या , दोषारोपण, माल्कियत की भावना से मुक्त होता है   मैंने  तुझे प्रेम किया इतना ही काफी है बदले में कुछ भी प्रतिकार चाहने वाला कुछ और कर सकता है लेकिन सच्चा प्रेम नहीं कर सकता है  

Nine

अधितर प्रेम का अर्थ लोग एक प्रकार के एकाधिकार या माल्कियत से लेते हैं जिस क्षण तुम प्रेम के नाम पर किसी भी जीवित चीज़ पर अपना अधिकार जमाते हो , तुम उसे मार डालते हो तब तुम चिंतित होगे , तुमें लगेगा की तुमने तो प्रेम किया लेकिन सामने वाले ने तुमें धोखा दिया याद रखना यदि तुमें सच्चा प्रेम होगा तो तुम कभी भी असुरक्षित, भयभीत और ईर्ष्यालु नहीं महसूस करोगे  

Ten 

जो व्यक्ति प्रेम को समझ लेता है वह परमात्मा को समझने की फ़िक्र छोड़ देता है प्रेम और परमात्मा एक ही डायमेंशन की चीजें हैं । प्रेम चरम नियम है


 

द्वारा

गीता झा 

1 comment:

  1. Waah waah. Eyeopening article. It reminds me of Saint Kabir's sakhi.

    "Pothi Padh Padh Kar Jag Mua, Pandit Bhayo Na Koye Dhai Aakhar Prem Ke, Jo Padhe so Pandit Hoye"

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