हमारा खुश रहना हमारी मर्ज़ी है | या हमारी प्रसन्नता और हमारी ख़ुशी खुद हमारी मर्ज़ी और पसंद के अधीन है। यह केवल एक मुहावरा मात्र ही नही है वरन जीवन के संघर्षों, दुखों , मुसीबतों और अवसादों की आंधियों के थपेड़े खाने वालों के लिए एक व्यवाहरिक और सकारात्मक उपाय भी है।
अभी तक अनेक शोधकर्ता विभिन्न अनुसंधानों से रोगों का इलाज ही खोजते थे। लेकिन अब जीवन की समस्याओं को सुलझाने की तकनीक विकसित की गई है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी खोज या विचार या सिद्धांत के प्रतिपादन के मार्ग में आने वाली बाधा को ---फंक्शनल फिक्स्ड नेस [functional fixedness ] कहा जाता है । यह बाधा किसी भी व्यक्ति की समस्याओं को सुलझाने की ताकत को कम कर देता है।
मनोवैज्ञानिकों द्वारा समस्याओं को सुलझाने के लिए विकसित तकनीक को जेनेटिक पार्ट्स तकनीक का नाम दिया गया है। इस तकनीक के मुख्य दो केंद्रबिंदु है ...
1. क्या समस्या को कई हिस्सों में बांटा जा सकता है ?
2. क्या समस्या के किसी हिस्से या अंश को अनदेखा किया जा सकता है ?
उपरोक्त बिन्दुओं को एक साधारण से उदहारण द्वारा समझा जा सकता है।
यदि आपको दो छल्ले [rings ] देकर उन्हें आपस में जोड़ने के लिए दिए जायें , और साथ में समाधान के रूप में एक मोमबत्ती और एक माचिस दी जाए तो आप उन छल्लों को कैसे जोड़ेंगें ?
यह सभी कॉम्बिनेशन अतार्किक और विषयवस्तु से दूर-दूर तक सम्बन्ध नहीं रखने वाले लगेंगे। अक्सर हम छल्लों, मोमबत्ती और माचिस इन सभी की उपयोगिता का आंकलन उनकी पूर्वनिर्धारित उपयोगिता के अनुसार करेंगें।
पहला समाधान अपनाइए .......जैसे इस समस्या को अलग अलग भागों/हिस्सों में बाँट कर सोचें ....... @ छल्ले @मोमबत्ती@माचिस@जोड़
1. केवल माचिस से छल्ले नहीं जोड़े जा सकते हैं।
2. माचिस से मोमबत्ती की मोम पिघाल सकते हैं , लेकिन उस पिघले मोम से भी छल्ले नहीं जोड़े जा सकते हैं
3.मोमबत्ती प्रकाश दे सकती है लेकिन उससे छल्ले कैसे जुडेंगें ? यह समझ से परे है।
अब दूसरा समाधान अपनाइए ......कुछ चीजों को अनदेखा करे
1.मोमबत्ती और माचिस को अनदेखा करे।
2.केवल मोमबत्ती की बत्ती और छल्लों पर ध्यान केन्द्रित करे।
3. मोमबत्ती की बत्ती की सूत का धागा दो छल्लों को जोड़ने में मदद कर सकता है।
जेनेटिक पार्ट्स टेक्नीक एक बहतरीन तकनीक है । इन दो अनमोल सिद्धांतों पर अमल कर आप अपने जीवन की अधिकतर समस्याओं को सुलझा सकते हैं। मॉडर्न खोजकर्ता भी इसी तकनीक की मदद से अधिकतर खोज और अनुसन्धान कार्य करते है।
जीवन के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे स्वास्थ्य, समृद्धि और रिश्तों पर हम जेनेटिक पैटर्न तकनीक के नियम सफलतापूर्वक अप्लाई कर सकते हैं|
अक्सर संबंधों में हम उन्हीं लोगों को प्यार करते है जो बदले में हमें प्यार कर सके है। किसी भी एक रिश्ते को हम अपमान, अहम, दुःख और धोखा जैसी भावनाओं के साथ ही ख़तम कर देते है। शादी या किसी भी रिश्ते को बचाने का एकमात्र तरीका है की आप सामने वाले को वही प्यार दें, जो वह आपको देता है। एक-दुसरे के प्रति संवेदनाओं, आभार और सम्बन्ध को बनाये रखें। अपने से पूछे की क्या वह इंसान आपके लिए मायने रखता है।यदि वह आपके लिए वाकई मायने रखता है तो उससे होने वाली तकलीफ को ज्यादा बड़ा न बनाये।एक-दुसरे के साथ बिताये सुन्दर पलों के बारे में सोचें, एक दुसरे का आभार प्रगट करें।आपसी रिश्ते में कोई परेशनी है तो उसे अधिक लम्बा न खिंच कर एक दुसरे से बात कर जितना जल्दी हो सके ख़तम करने की कोशिश करें।
जेनेटिक पैटर्न तकनीक के स्वर्णिम नियमों के अनुसार रिश्तों में दो बातें ध्यान में रहे:
1. @ किनके साथ रिश्ते खराब है @ जीवन पर इसका असर @ कारण @ बांकी लोगों का रवैया @ समाधान|
2. हमेशा दूसरों की की गई बुराइयों को रेत पर और उसकी की गई अच्छाइयों को पत्थर पर लिख कर रखें। अपने अवगुण और सामने वाले के गुण जरुर याद रखें।
इसी प्रकार किसी भी रोग की स्थिति में
1. @ रोग @ शरीर-मन का सम्बन्ध @ आहार @ उपचार @ आर्थिक पहलू @ अन्य लोगों का भावनात्मक रवैया @ पारिवारिक-सामाजिक माहौल
2. किसी भी रोग के स्थाई या लाइलाज होने की सदियों से चली आ रही धारणाओं से न बंधें। हमें बस रोग के बने रहने की सोच को छोड़ना है और खुद को बदलने के लिए तैयार करना है।बनावटी सहानुभूति दर्शाने वालों , अपनी या फलां-फलां की बिमारियों के किस्से सुनाने वालों और बड़ी भयंकर बीमारी है जैसे वाक्यों से चिंता जाहिर करने वालों और नीम-हकीम के नुस्खे सुझाने वालों से दूर रहे। अपने रोग को सदेव अस्थाई और उपचार की परिधि में समझें .
जब हमारे लिए एक द्वार बंद होता है तो दूसरा द्वार खुल जाता है।यह हम पर निर्भर करता है की हम अपना ध्यान उस दरवाजे पर दे जो बंद हो चूका है , की खुले दरवाजे से आगे की संभावनाओं की तलाश करें। किसी ने ठीक ही कहा है की अगर हम बंद दरवाजे को ही देखते रहेंगें तो हमारा ध्यान खुले दरवाजे पर कैसे जा पायेगा।
BY
Geeta Jha