Friday, September 19, 2014

7 Planes of Existence



उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्व है। ब्रह्म ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है और विश्व का आधार है। इसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और नष्ट होने पर विश्व उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ एक ही है। वही विश्व है और विश्व से परे भी हैं। वही सर्वशक्तिमान , सर्वत्र ,सर्वज्ञ ,कालातीत, नित्य व शाश्वत है.

ब्रह्मोन सृष्टि की सूक्ष्मतम और अंतिम इकई हैं. ब्रह्मोन सम्पूर्ण जगत का सार भी हैं और आधार भी हैं, यह शाश्वत हैं, बिंदू और पूर्ण दोनों हैं, सदैव  पूर्ण संतुलन और सुव्यवस्थित समरूपता की स्थिति में रहता हैं.

कम्पन:
                                                                                           
सम्पूर्ण सृष्टी के प्रत्येक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कण हमेशा कम्पन करते हुए लहरों या तरंगों की परिस्थिति में रहतें  हैं.

वैज्ञानिक नियम इन विभिन्न प्रकार के कम्पनों को एक व्यवस्थित ज्ञान पर आधारित करतें हैं . ध्वनि तरंगे, रेडियो तरंगें, माइक्रो तरंगें, इन्फ्रारेड तरंगें, दृश्य  प्रकाश की तरंगें, पराबैंगनी तरंगें, क्ष- किरणें , गामा-किरणें, विद्युत चुम्बकीय किरणें इत्यादि विभिन्न तरंगें हैं जो एक दूसरे से प्रकृति और वेव्लेंगथ की भिन्नता के कारण अलग -अलग वर्गों में आती हैं.

प्रत्येक तरंग एक विशिष्ट प्रकार की अनवरत कम्पनों के वेव्लेंथ  की एक श्रंखला हैं जिनकी उर्जा और गुणवत्ता अलग-अलग होती हैं.

 माध्यम या आकाश :

तरंगें किसी भी तत्व के किसी माध्यम में तालबद्ध कम्पन्न करने  से  पैदा होती  हैं. यह तरंगें अपनी उर्जा को किसी लचीले माध्यम / आकाश / आयाम के द्वारा स्थान्तरित करतीं हैं.

ब्रह्माण्ड वभिन्न प्रकार के माध्यमों, आयामों, परतों में विभाजित हैं, सभी इसी  आकाश में अवस्थित हैं और एक दूसरे के साथ अंतर – प्रभावित करतें हैं.

सृजन का प्रत्येक आयाम एक विशिष्ट प्रकार के एकीकृत कम्पनों के समन्वय से बना हैं. जिससे निम्न आयामों की विशेष तरंगों को विशिष्टीकरण के आधार पर प्राप्त किया जा सकता हैं.

प्रत्येक आयाम के एकीकृत कम्पनों में एक विशिष्ट प्रकार का लचीलापन[elasticity ], आवृति [frequency ] ,उर्जा [energy ], तरंगदैर्ध्य [wavelength] होती हैं. प्रत्येक माध्यम को उप-विभाजित करने से हमें और अधिक सूक्ष्म माध्यम की प्राप्ति होती हैं. जिसके आधारभूत -कण अधिक लचीले एवं और अधिक सूक्ष्म होतें हैं.

जितना सूक्ष्म माध्यम होगा उतना ही उसके आधारभूत कणों की आवृति एवं उर्जा अधिक होगी.

कम्पनों के आधार पर समस्त प्रकृति को हम मुख्य 4 आयामों में विभाजित कर सकतें हैं.  पदार्थ आयाम [ अणु और ईथर ], उर्जा आयाम [ऐस्ट्रल और मेंटल ], चेतना आयाम [बौद्धिक और निर्वानिक ], परमचेतना आयाम [ God -Particle या ब्रह्मोन]

प्रकृति के विभिन्न आयाम

भौतिक या अणविक आयाम :

अणु प्रत्येक प्रदार्थ की मूल इकाई हैं. प्रत्येक अणु के केंद्र में एक धनात्मक नाभिक होती हैं जो ऋणात्मक इलेक्ट्रान से गिरी रहती हैं. प्रत्येक भौतिक अणु ईथर के आयनों के आयाम में कम्पन करता हैं.

ईथर आयाम :

ईथर एक अत्यंत लचीला, आयनों से युक्त माध्यम हैं .यह सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त हैं. विद्युत चुम्बकीय तरंगें इसी माध्यम में गति करती हैं.

ऐस्ट्रल आयाम:

ईथर के कण और अधिक सूक्ष्म आयाम में कम्पन्न करतें हैं जो ऐस्ट्रल के कणों से निर्मित होता हैं. ऐस्ट्रल आयाम भावनाओं ,आवेगों, अनुभूतियों एवं चित्तवृतियों के प्रकंपन्न करने का माध्यम हैं. भावनाओं की उच्च या लघु  तरंग-आवृति होती हैं. सकारात्मक या नकारात्मक मनोभावों के साथ इस आयाम में परिवर्तन्त आतें हैं.

मेंटल आयाम :

ऐस्ट्रल कण और अधिक सूक्ष्म और महीन कणों से निर्मित माध्यम में कम्पन्न करतें हैं. यह मानसिक या मेंटल -आयाम कहलाता हैं. इस माध्यम में विचार की तरंगें गति करती हैं.विचारों के बदलने के साथ ही इस आयाम में परिवर्तन आ जाता हैं.

बौद्धिक आयाम:

विचार के कण या तरंगें बौद्धिक आयाम में गति करती हैं.इस आयाम में इच्छाशक्ति [will ] , अन्तर्ज्ञान[intuition ] , प्रज्ञा [psyche] की तरंगें प्रकम्पित होती हैं.

निर्वाणिक आयाम:

बौद्धिक तरंगें कम्पन्न करने के लिए निर्वाणिक माध्यम का सहारा लेती हैं.निर्वाणिक आयाम, अध्यात्मिक तरंगों की लहरें हैं .ये तरंगें अतिसूक्ष्म होती हैं और इनके तरंगों की आवृति और उर्जा पराकोटि की होती हैं. इस आयाम की उपस्थिति का अनुभव भक्ति,योग,ध्यान,ज्ञान या आन्तरिक रूपांतरण की किसी भी प्रक्रिया से गुज़रने के बाद ही किया जा सकता हैं.

God -Particle या ब्रह्मोन आयाम:

निर्वाणिक तरंगें सृष्टी के अंतिम उप-विभाजन God -Particle या ब्रह्मोन में प्रकाम्म्पित होती हैं. ब्रह्मोन पदार्थ , उर्जा एवं चेतना का अंतिम विभाजन हैं. ब्रह्मोन के तरंगों की उर्जा एवं आवृति अनन्त होती हैं.

ब्रह्मोन कण सम्पूर्ण व्यक्त और अव्यक्त सृष्टी के आधारभूत और मूल इकाई हैं. ये कण स्व- निर्धारित, स्व - निर्देशित,एकीकृत एवं मुक्त होतें हैं.ये अपने अन्दर से असीमित मात्रा में पदार्थ, उर्जा और चेतना उत्पन्न कर सकतें हैं.

भौतिकी के कोई भी नियम, परिसीमा और तथ्य ,ब्रह्मोन कणों पर लागू नहीं होतें हैं.

By
Geeta Jha

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