Tuesday, September 23, 2014

पेप्टिक अल्सर और ड्यूडेनल अल्सर



आहार  नली  में गैस्ट्रो -ड्यूडेनल का स्थान

हमारी आहार नाल के सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है आमाशय [स्टमक ] और ग्रहणीड्यूडेनल ]   स्टमक  आहार नली  का सबसे चौड़ा भाग है जो अन्न नलिका [ इसोफेगस ] के अंत  से लेकर छोटी आंत के प्रारंभ तक यानि  ग्रहणीड्यूडेनल ] के मध्य स्थित रहता है स्टमक भोजन को ग्रहण करता है , उसकी पेशियां भोजन का मंथन करती हैं और स्टमक में  मौजूद पाचक रस भोजन से मिलते  हैं , फिर भोजन  C आकार वाले लगभग  2 2 . 5 cm  लम्बाई वाले   ग्रहणी  या  ड्यूडेनल  में धकेल दिया जाता है  ड्यूडेनल स्टमक के निचले द्वार और  छोटी आंत  के आरम्भिक द्वार के मध्य की कड़ी है   ड्यूडेनल में ही  गॉल  ब्लैडर और पैंक्रियास के रस  आकर मिलते हैं

पेप्टिक  अल्सर और ड्यूडेनल अल्सर 

स्टमक और  ड्यूडेनल आपस में जुड़े हुए आहार  नली  के दो भाग हैं जिनकी आंतरिक संरचना भी समान है जब स्टमक की आतंरिक भित्ति में घाव [व्रण  ]  बन जाता है तो उसे गैस्ट्रिक  अल्सर कहते है जब घाव या व्रण  ग्रहणी में बनते  है तो उसे ड्यूडेनल अल्सर कहते हैं जब घाव या व्रण   स्टमक और ड्यूडेनल दोनों की भित्ति में बनते   है तो गैस्ट्रो - ड्यूडेनल अल्सर कहा जाता है इन तीनों प्रकार  के  अल्सर में रचनात्मक विविधता होती है लेकिन तीनों के कारण  और उपचार एक जैसे होते हैं अतःइन्हें साधारण  बोलचाल की भाषा में एक ही नाम पेप्टिक अल्सर या परिणाम शूल  के नाम से जाना जाता है

पेप्टिक अल्सर
पेप्टिक अल्सर अक्सर स्टमक के लघु  वक्रता , ड्यूडेनल के आरम्भ में , Meckel's diverticulum में पाये जाते हैं पेप्टिक अल्सर तीव्र [ एक्यूट ] और चिरकारी [क्रॉनिकल ] होते हैं   कभी कभी पेप्टिक अल्सर Gastrointestinal perforation [ स्टमक और  ड्यूडेनल की भित्ति में छेद होना ] का भी कारण  बन जाता है

मानसिक तनाव और पेप्टिक अल्सर

मानसिक तनाव, स्ट्रेस, डिप्रेशन , anxiety हार्ट बीट और ब्लड-प्रेशर को बड़ा देते हैं जिसके कारण   मेटाबोलिक रेट काफी बड़  जाता है तनाव से hypothalamus gland द्वारा संचालित  sympathetic  और parasympathetic नर्वस सिस्टम उत्तेजित हो जाते हैं जिससे स्टमक -ड्यूडेनल के क्षेत्र में गैस्ट्रिक - इंटेस्टिनल जूस और एसिड  का अत्याधिक स्राव होता है जो पेप्टिक अल्सर का कारण  बन सकता है

पेप्टिक अल्सर - कुछ तथ्य
  1.  स्टमक -ड्यूडेनल की आंतरिक  भित्ति में superficial -erosion के कारण गहरे जख्म  बन जाते हैं जो व्रण  या घाव का रूप  लेकर  पेप्टिक अल्सर बन जाते हैं ।यह व्रण  10 से 25 cm के आकार के हो सकते हैं कभी कभी छोटे व्रण  मिलकर एक बड़े घाव में बदल जाते हैं
  2. स्टमक अल्सर की तुलना में  लोग  ड्यूडेनल अल्सर से अधिक  पीड़ित होते हैं पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में  पेप्टिक अल्सरगुना कम होता है इंडिया में तमिलनाडु,केरल आंध्रप्रदेश और जम्मू - कश्मीर  राज्यों में  अधिक पाया जाता  है पंजाब, उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश में इसके रोगी कम  मिलते हैं  
  3. अमेरिका यूरोप जैसे विकसित देशों में  पेप्टिक अल्सर businessmen, industrialist आदि संपन्न लोगों में डिप्रेशन और मानसिक तनाव  के कारण  पाया जाता है जबकि भारत जैसे विकासशीलदेशों में यह अधिकतर गरीब , मजदूर इत्यादि में अधिक देखने को  मिलता है यह रोग 20 से 40 आयु के व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है
पेप्टिक अल्सर के कारण
  1. पेप्टिक अल्सर के असली कारणों का अभी तक  पता नही चल पाया है
  2. स्टमक की अधिक एसिडिटी इसका प्रमुख कारण  हो सकती है  
  3. कभी  कभी यह रोग वंशानुगत भी पाया जाता है  
  4. कुछ दवाइयों के लम्बे समय तक सेवन करने  से यह रोग हो सकता है
  5. कई बार एक्सीडेंट्स में अंदरुनी चोट लगने  से या सर्जरी से आंतरिक  भित्ति के सेल्स छतिग्रस्त हो जाते हैं  
  6. कुपोषण , वायरल इन्फेक्शन ,रक्त -विकार और हार्मोनल -असंतुलन से भी पेप्टिक अल्सर होने की सम्भावना बनी रहती है
पेप्टिक अल्सर की  उत्पत्ति
  1. स्टमक में उपस्थित गैस्ट्रिक -जूस में अचानक जब हाइड्रोक्लोरिक एसिड की सक्रियता बढ़ जाती है तब वह स्टमक-ड्यूडेनल की आंतरिक mucous membrane [श्लैष्मिक झिल्ली ] को पचाने लगता है जिससे उस स्थान पर घाव या अल्सर हो जाते हैं या यह भी कह सकते हैं की गैस्ट्रिक -जूस के पेप्टिक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड द्वारा म्यूकस -मेम्ब्रेन के पच  जाने की क्रिया से पेप्टिक अल्सर की शुरुवात होती है
  2. अल्सर तभी संभव  है जब एसिड और पेप्टिक की मौजूदगी होगी
  3. zollinger ellison   सिंड्रोम में पैंक्रियास या अन्य भाग  में  ट्यूमर बन जाने के कारण गैस्ट्रीन नामक हार्मोन अधिक स्रावित होता है जिससे  एसिड का स्राव अधिक हो जाता  है    इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति  के गैस्ट्रिक - जूस में  हाइड्रोक्लोरिक एसिड सदैव अधिक मात्र में पाया जाता  है इसलिए इस सिंड्रोम वाले अधिकतर लोग  पेप्टिक अल्सर से पीड़ित रहते हैं
गैस्ट्रिक  म्यूकस- मेम्ब्रेन
अक्सर गैस्ट्रिक -म्यूकस मेम्ब्रेन अपने आप को 3 -5  दिन के अंतराल में बदल कर नई  बन जाती है   अर्थात mucous membrane तीब्रता से बनती और निर्मित होती  रहती है

गैस्ट्रिक  म्यूकस- मेम्ब्रेन के सेल्स में bicarbonate नामक  पदार्थ उपस्थित रहता है जो म्यूकस- मेम्ब्रेन के ऊपर एक क्षारीय [ अल्काइन ] परत बना देता है ,साथ ही इस मेम्ब्रेन में म्युसिन नामक  ग्लाइकोप्रोटीन की परत भी होती है जो  एसिड के साथ  अतिशीघ्र क्रिया करती है और एसिड की मात्रा कम कर उसे  अधिक समय के लिए  उदासहीन  बना कर रखती है ।  ये कारक  म्यूकस- मेम्ब्रेन  की गैस्ट्रिक -जूस और एसिड से  रक्षा करते हैं

गैस्ट्रिक म्यूकस- मेम्ब्रेन और दवाइयों का लम्बा सेवन

कई बार दर्दनिवारक या अन्य दवाइयों के  लम्बे सेवन से स्टमक म्यूकस- मेम्ब्रेन क्षति ग्रस्त हो जाते हैं ये दवाइयाँ ग्लाइकोप्रोटीनम्युसिन के स्तर को नष्ट कर देते हैं , और prostaglandin नामक  रसायन के स्राव को कम  करके म्यूकस- मेम्ब्रेन में bicarbonate की मात्रा को कम कर देता है जिससे गैस्ट्रिक एसिड्स को मेम्ब्रेन पर हमला कर उसे पचाने का मौका मिल जाता है   एस्प्रिन के अधिक सेवन  से अधिकतर लोगों में gastroduodenal  में आंतरिक रक्तस्राव के साथ पेप्टिक अल्सर भी देखने को मिलता है

पेप्टिक अल्सर और मानसिक तनाव

अत्याधिक मानसिक तनाव , स्ट्रेस, डिप्रेशन  और anxiety  शरीर में मौजूद sympathetic और  parasympathetic नर्वस सिस्टम को उत्तेजित  कर गैस्ट्रो  -ड्यूडेनल में एसिड और gastro - intestinal juice के स्राव को बड़ा देते हैं , अनतः यह पेप्टिक अल्सर का कारण बनता है

पेप्टिक अल्सर की प्रकृति

गैस्ट्रो  -ड्यूडेनल में superficial -erosion  के कारण जख्म या व्रण बन जाते हैं अक्सर यह घाव खुद बा खुद ठीक होते रहते हैं कई कारणों  से जब ये  व्रण ठीक नहीं हो पाते तब पेप्टिक अल्सर का रूप धारण कर लेते हैं ये  अल्सर 2. 5 से 12 cm  साइज तक के हो सकते हैं कभी कभी छोटे छोटे व्रण मिलकर एक बड़ा अल्सर बना देते हैं इन व्रणों के किनारे फूले हुए लाल रंग के  रहते हैं  और ये स्पर्श में कठोर होते हैं

पेप्टिक अल्सर लक्षण
  1.  यदि अल्सर स्टमक में है तो खाना खाने के आधे से डेढ़ घंटे में स्टमक के क्षेत्र में दर्द होगा और यदि अल्सर ड्यूडेनल में है तो दर्द की शुरुवात खाना  खाने से 2 से  3 घंटे बाद होती है सुबह नास्ते से पहले पेप्टिक अल्सर का दर्द नहीं होता है अल्सर का दर्द  एक से डेढ़    घंटे में खुद ठीक हो जाता है आहार के बाद एसिड निराकरण के बाद दर्द कम हो जाता है लेकिन स्टमक के खाली होते ही दर्द पुनः आरम्भ हो जाता है  
  2. स्टमक अल्सर का दर्द मध्य रेखा के लेफ्ट साइड में होता है जबकि ड्यूडेनल अल्सर का दर्द मध्य रेखा के राइट साइड पर प्रतीत होता है  
  3. पेप्टिक अल्सर का दर्द एक निश्चित स्थान पर होता है उसे रोगी अपनी उंगली से पिन-पॉइंट कर सकता है  
  4. यह दर्द काटने , चुभने या जलन के रूप में हो सकता है   
  5. कभी कभी पेप्टिक अल्सर में उल्टी भी हो सकती है जिससे थोड़ा बहुत एसिड वमन से बाहर  जाता  है और  दर्द से  थोड़ी राहत  मिलती है ।कभी कभी रोगी के वामन में खून भी सकता है   
  6. रोगी के मुंह में  पानी भर जाता है  
  7. काले रंग का स्टूल [black -stool ] का होना , व्रण से अत्यधिक रक्त स्राव के कारण स्टूल काले रंग का  हो सकता है  इससे एनीमिया का खतरा भी रहता है
  8. रोगी को कमजोरी लगती है
पेप्टिक अल्सर का निदान
  1.  कोई भी दर्द निवरक दवाई लेते ही 24 घण्टे के अंदर epigastric-एरिया में तीव्र जलन या दर्द महसूस हो तो  पेप्टिक अल्सर  हो सकता है यह दर्द एक ही स्थान पर रहता है भोजन करने के बाद कुछ  समय के लिए दर्द बंद हो जाता है  
  2. यदि वोमिट या स्टूल  में ब्लड आये , पाचन शक्ति खराब हो , पेट में गैस भरी हो और अक्सर कब्ज की शिकायत हो तो पेप्टिक अल्सर होने की सम्भावना रहती है    
  3. बेरियम  मील परिक्षण और एंडोस्कोपी से  रोग का  शीघ्र और सरलता से पता चल जाता है  
पेप्टिक अल्सर  का उपचार
  1. antacids दवाइयों  से gastroduodenal में एसिड के स्राव को कम करने  की कोशिश की जाती है हिस्टामिन शामक H -2 रिसेप्टर दवाइयाँ स्टमक में एसिड के स्राव की गति को धीमा कर देते हैं यह दोनों प्रकार की दवाइयाँ पेप्टिक अल्सर  के उपचार में कारगर हैं  
  2. रोगी को स्ट्रांग पेनकिलर और स्टेरॉयड्स को छोड़ना  होता है  
  3. रोगी को स्मोकिंग,ड्रिंकिंग और गुटका तम्बाकू की लत को छोडना होता है चाय-कॉफी का भी अधिक सेवन नहीं करना चाहिए  
  4. रोगी को बहुत गर्म , बासी ,गरिष्ट,तले -भुने,चटपटे , बहुत खट्टे ,तीखे , मिर्च मसाले  वाले भोजन से परहेज रखना चाहिए  
  5. भोजन में गेहूं जौ  की रोटी ,पका केला ,पका पपीता , दूध ,जौ का सत्तू , नारियल पानी मसूर की पलती दाल ,संतरे अनार  का जूस  लेना लाभकारी है  
  6. पत्ता गोभी का रस [आधा कप ]  दिन में तीन चार पीने  से पेप्टिक अल्सर चमत्कारिक रूप से ठीक हो जाते हैं  
  7. आंवले के  रस का सेवन करने  से भी अल्सर जल्दी ठीक होते हैं  
  8. सुबह सुबह आधा कप ठंडे दूध में आधा कप पानी मिला कर खाली  पेट पीने से भी पेप्टिक अल्सर ठीक होते हैं  
  9. पेट के ऊपर ठन्डे पानी की पट्टी रहने से भी आराम मिलता है
  10. प्रतिदिन दस से बारह गिलास पानी पियें  
  11. प्रतिदिन 1 से 3  किलोमीटर तक टहलना चाहिए  

BY
Geeta Jha
India


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