पहले हमने जाना की किसी भाव में चार या उससे अधिक ग्रह एकत्रित हो तो सन्यास योग बनता है । लेकिन जिनकी कुंडली में चार या उससे अधिक ग्रह एकत्रित न हो ऐसे भी बहुत से जातक सन्यासी होते हैं । कुंडली में लग्न से शरीर का और चन्द्रमा से मन का विचार होता है । यदि शनि का सम्बन्ध शरीर और मन यानी लग्न और चन्द्रमा से हो तो जातक दीक्षा लेता है और सन्यासी बनता है । लेकिन जातक दीक्षा लेगा या नहीं इसकी विवेचना दीक्षा लेने वाले ग्रह की स्थिति पर निर्भर करती है । जैसे दीक्षा लेने वाल ग्रह सूर्य से अस्त हो तो मनुष्य दीक्षा ग्रहण न कर केवल धर्मिक -आध्यात्मिक प्रवृति वाले मनुष्यों की संगत पसंद करता है ।यदि दीक्षा लेने वाला ग्रह गृहयुद्ध में पराजित हुआ हो तो ऐसा जातक आजीवन दीक्षा ग्रहण करने की सोचता है लेकिन कर नही पाता है ।
सन्यास योग बनने के कुछ संयोग
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द्वारा
गीता झा
सन्यास योग बनने के कुछ संयोग
- यदि लग्नाधिपति पर अन्य किसी ग्रह की दृष्टि न हो लेकिन लग्नाधिपति की दृष्टि शनि पर हो तो सन्यास योग बनता है ।
- यदि शनि पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो और शनि की दृष्टि लग्नाधिपति पर पड़ती हो तो सन्यास योग होता है ।
- यदि शनि की दृष्टि निर्बल लग्न पर पड़ती हो ।
- चन्द्रमा जिस राशि पर हो उस राशि के स्वामी पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो लेकिन उसकी दृष्टि शनि पर हो तो जातक शनि या जन्म राशि में से जो बली हो उसकी दशा -अन्तर्दशा में दीक्षा ग्रहण करता है ।
- चन्द्रमा जिस राशि में हो ,उसका स्वामी निर्बल हो और उसपर शनि की दृष्टि पड़ती हो तो सन्यास-योग होता है ।
- यदि शनि नवम भाव में हो उस पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक यदि राजा भी हो तो भी सन्यासी हो जाता है ।
- यदि चन्द्रमा नवम भाव में हो और उसपर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक राजयोग होते हुए भी सन्यासियों में राजा होता है ।
- यदि शनि /लग्नेश की दृष्टि चन्द्रमा पर पड़ती हो तो भी जातक सन्यासी होता है ।
- यदि लग्नेश वृहस्पति , मंगल या शुक्र में से कोई एक हो और लग्नेश पर शनि की दृष्टि हो तो और वृहस्पति नवम भाव में बैठा हो तो जातक तीर्थनाम का सन्यासी होता है ।
- यदि लग्नेश पर कई ग्रहों की दृष्टि हो और दृष्टि डालने वाले ग्रह किसी एक राशि में ही हों तो भी सन्यास योग बनता है ।
- यदि दशमेश अन्य चार ग्रहों के साथ केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक को जीवन-मुक्ति होती है ।
- यदि नवमेश बली होकर नवम अथवा पंचम स्थान में हो और उस पर वृहस्पति और शुक्र की दृष्टि पड़ती हो या वह वृहस्पति और शुक्र के साथ हो तो जातक उच्च स्तर का सन्यासी होता है ।
- यदि दशम स्थान पर तीन ग्रह बली हों और दशमेश भी बली हों तो जातक उच्च स्तर का सन्यासी होता है । लेकिन यदि दशमेश बली न होकर सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक के दुराचारी छद्म सन्यासी होने की सम्भावना बनी रहती है ।
- यदि सन्यास देने वाले ग्रह के साथ सूर्य,शनि और मंगल हों तो जातक दुनियादारी से घबराकर और जीवन से निराश होकर सन्यासी बन जाता है ।
- यदि बली शनि केंद्र में स्थित हो और चन्द्रमा जिस राशि में हो उसका स्वामी दुर्बल होकर शनि को देखता हो तो जातक अभागा सन्यासी होता है ।
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