फंडामेंटल पार्टिकल्स
मनुष्य की संभावनाएं असीम हैं । इसके बाबजूद भी वह अपने निरिक्षण, परीक्षण और विश्लेषण करने के सीमित ज्ञान के चलते प्रकृति के रहस्यों को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ रहा है । विगत दो सौ साल में विज्ञान ने काफी उन्नति की है , फिर भी यह ज्ञान इस दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियों और इसके अदृश्य संचालन सूत्रों को समझने में नाकाफी साबित हुआ है । एक अणु से लेकर सौरमंडल तक और ब्रह्माण्ड में व्याप्त पदार्थ और प्रकृति के रहस्य की गहराइयों को समझना आज भी दुरूह है और इसके विषय में हमारी जानकारी केवल उतनी ही है जितनी पुरे शरीर की तुलना में एक बाल का ज्ञान ।
प्रयोगशालाओं में किये जाने वाले कई परीक्षण अभी भी प्रारंभिक जानकारियां ही दे रहे हैं । ऐसी स्थिति में ईश्वर का अपनी सीमित बुद्धि से प्रयोग शाला में निरिक्षण, परीक्षण और विश्लेषण करने में मनुष्य कितना सफल रहता है यह भविष्य के गर्भ में है ।
फंडामेंटल पार्टिकल्स ।
इस रहस्मय ब्रह्माण्ड को देख कर लगता है की यह किस मूलभूत पदार्थ से बना होगा । जैसे एक इमारत को बनाने वाली ईंटें बिल्डिंग ब्लॉक्स कहीं जाती है वैसे ही इस ब्रह्माण्ड के संरचना की आधरभूत बेसिक यूनिट क्या है ? मानव जीवन में दिखाई पड़ने वाले पदार्थ कुछ निश्चित मूलभूत इकाइयों से बने हैं वे क्या हैं ? सर्वप्रथम मूलभूत इकाई का क्या अर्थ है यह जान लेते हैं । मूलभूत इकाइयों का अर्थ है कि जो सरल और संरचनाहीन हो, जो किसी अन्य छोटी ईकाई से निर्मित न हो ।अर्थात मूलभूत इकाइयों का विभाजन नहीं हो सकता है वे अविभाज्य इकाइयाँ होती हैं ।
प्राचीन काल मे भी मानव ने विश्व को कुछ मूलभूत तत्वों मे बांटा था, वे थे पृथ्वी, वायु, अग्नि और जल। भारतीय विचारक इसमे एक पांचवे तत्व आकाश का भी समावेश करते है।
अभी तक यही कहा जाता था की सभी पदार्थ अणुओं से बने होते हैं । कालांतर ज्ञात हुआ की अणु भी परमाणुओं से बने होते हैं । परमाणु का अर्थ है परम अणु अर्थात ऐसा कण जो अविभाज्य हो। तो क्या परमाणु इस ब्रह्माण्ड के मूलभूत कण हैं ? नहीं !! वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह पता चला की परमाणु की भी अपनी एक आंतरिक संरचना होती है और वे गेंद की तरह ठोस नहीं होते हैं । इन प्रयोगो से वैज्ञानिको ने पाया कि परमाणु का एक छोटा लेकिन घना धनात्मक केन्द्र होता है और उसके चारो ओर ऋणात्मक इलेक्ट्रानो का बादल।
परमाणु केन्द्र छोटे, ठोस और घने थे, इसलिये वैज्ञानिको ने सोचा की केन्द्र मूलभूत कण होना चाहीये। लेकिन बाद की खोजो से पता चला की वह धनात्मक आवेश वाले प्रोटान (p+) तथा उदासीन न्युट्रान (n) से बना है ! फिर माना गया की प्रोटान तथा न्युट्रान मूलभूत कण होंगें । लेकिन शीघ्र ही भौतिकशास्त्रीयों ने अपने अनुसंधानों में पाया कि प्रोटान और न्युट्रान और भी छोटे कणों ’क्वार्क’ से बने है।
भौतिकी की अबतक की जानकारी के अनुसार क्वार्क ज्यामिती मे बिंदु के जैसे है और वे और किसी और यूनिट से नही बने होते है।
इस सिद्धांत की कड़ी जांच के बाद वैज्ञानिक मानते है कि क्वार्क तथा इलेक्ट्रान कुछ अन्य कणों के साथ मूलभूत कण है ।
इलेक्ट्रान केन्द्र के चारो ओर गतिशील रहते है, प्रोटान और न्युट्रान केन्द्र के अंदर हिलते डुलते रहते हैं, वही क्वार्क प्रोटान और न्युट्रान के अंदर हिलते डुलते रहते है। भौतिक विज्ञानी हमेशा नये कणो की खोज मे रहते हैं। जब वे एक नया कण पाते है तब वे उसे वर्गीकृत करते है और एक ऐसे पैटर्न को ढुंढते है जिससे वे ब्रह्माण्ड की मूलभूत इकाइयों की प्रक्रियाओं को समझ सके। अभी तक भौतिकी में 200 से ज्यादा कण खोजे जा चुके है जिनमे से अधिकतर मूलभूत नही है। जिस तेजी से विज्ञान उन्नति कर रहा है उससे यही लगता है की कल क्वार्क और इलेक्ट्रान भी मूलभूत कण न रहे । तो आखिर इस रहस्यमय ब्रह्माण्ड का रहस्यमय मूलभूत कण कौन सा है ? क्या हिग्स बोसॉन मूलभूत कण है ?
क्वांटम भौतिकी और मूलभूत कण
क्वार्क पदार्थ कणो का एक मूलभूत प्रकार है, इसे और तोड़ा नही जा सकता है। अधिकतर पदार्थ जो हम अपने आसपास देखते है वह प्रोटान और न्युट्रान से निर्मित है। और ये प्रोटान तथा न्युट्रान क्वार्क से बने होते है। हमारे आस पास का समस्त पदार्थ इन्ही क्वार्को से निर्मित है।क्वार्क शब्द का कोई अर्थ नही है, इस शब्द को जेम्स जायस(James Joyce ) के उपन्यास ’फ़ीनेगन्स वेक(Finnegan’s
Wake)’ के एक वाक्य से लिया गया है।
“Three quarks for Muster
Mark!”
क्वांटम फिजिक्स के अनुसार विश्व जिन मूलभूत कणों से बना हैं वे हैं : क्वार्क और लेप्टान । आकाशगंगा से लेकर पर्वत से लेकर अणु तक सब कुछ क्वार्क और लेप्टान से बना है ? यह तो सही है लेकिन यह भी एक मूलभूत प्रश्न है की विश्व एक साथ कैसे बंधा है ? क्यों क्वार्क मिलकर प्रोटान/न्युट्रान बनाते है ? कैसे प्रोटान न्युट्रान से परमाणु, परमाणुओं से अणु, अणुओं से पदार्थ, पदार्थ से ग्रह, तारे, आकाशगंगा और ब्रह्माण्ड बने है ? यह भी एक रहस्य है ।
सामाजिक प्राणियों की तरह क्वार्क हमेशा समूह मे रहते है, वे कभी भी अकेले नही पाये जाते है। क्वार्क से बने यौगिक कण हेड्रान कहलाते है। हेड्रान के भी दो प्रकार होते है : बारयान और मेसान ।
दूसरी तरह के पदार्थ कणो को लेप्टान कहा जाता है। लेप्टान 6 तरह के होते है । ये बिंदु के जैसे लगते है जिनकी कोई आंतरिक संरचना नही होती है। सबसे प्रमुख लेप्टान (e-) है, जिसे हम इलेक्ट्रान कहते है। अन्य दो आवेशीत लेप्टान म्युआन(μ) और टाउ(τ) है जो कि इलेक्ट्रान के जैसे आवेशीत है लेकिन इनका द्रव्यमान बहुत अधिक होता है। अन्य तीन लेप्टान तीन तरह के न्युट्रीनो(ν) है। इनमे कोई आवेश नही होता है, बहुत कम द्रव्यमान होता है और इन्हे खोजना कठिन होता है।
क्वार्क हमेशा समूह मे होते है और हमेशा यौगिक कणो मे अन्य क्वार्क के साथ होते है लेकिन लेपटान एकाकी कण है।पदार्थ का निर्माण करने वाले बारयान तथा लेप्टान को संयुक्त रूप में फर्मीयान कहा जाता है।
भौतिक वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सिद्धांत विकसीत किया है जो यह बताता है कि विश्व किससे निर्मित है और इसे कौन बांधे रखता है। इस सिद्धांत का नाम है स्टैंडर्ड माडेल (मानक प्रतिकृति)। यह एक सरल और व्यापक सिद्धांत है जो सैंकड़ो कणो और जटिल प्रक्रियाओं की कुछ ही कणो से व्याख्या करता है। ये कण निम्नलिखित है:
6 क्वार्क
6 लेप्टान – लेप्टान कणो मे सबसे ज्यादा जाना माना कण ’इलेक्ट्रान’ है।
बोसान कण बलवाहक कण, जैसे फोटान।
सामाजिक प्राणियों की तरह क्वार्क
हमेशा समूह मे रहते है, वे कभी भी अकेले नही पाये जाते है। क्वार्क से बने यौगिक कण
हेड्रान कहलाते है।हेड्रान के भी दो प्रकार
होते है :बारयान और मेसान ।
दूसरी तरह के पदार्थ कणो को लेप्टान कहा जाता है। लेप्टान 6 तरह के होते है । ये बिंदु के जैसे लगते है जिनकी
कोई आंतरिक संरचना नही होती है। सबसे प्रमुख लेप्टान इलेक्ट्रान है। अन्य दो आवेशीत
लेप्टान म्युआन (μ) और टाउ(τ) है जो कि इलेक्ट्रान के जैसे आवेशीत है लेकिन इनका द्रव्यमान बहुत अधिक
होता है। अन्य तीन लेप्टान तीन तरह के न्युट्रीनो(ν) है। इनमे कोई आवेश नही होता है, बहुत कम द्रव्यमान होता है और इन्हे खोजना
कठिन होता है।
भौतिकी के अनुसार यह संसार केवल
पदार्थ और ऊर्जा से बन हुआ है । आइंस्टीन की
इक्वेशन के अनुसार
ऊर्जा और पदार्थ एक दूसरे रूप में
परिवर्तित हो सकते हैं । पदार्थ का निर्माण फर्मीयान कणों से और ऊर्जा का निर्माण बोसोन कणों से होता है ।
फर्मीयान कणों का द्रव्यमान होता है
लेकिन बोसान कण का द्रव्यमान नही होता है,इसमे फोटान भी है। फोटान बोसान का एक प्रकार
है जो विद्युत-चुंबक बल का वाहक कण है।.
क्वांटम फिजिक्स के अनुसार सभी ज्ञात पदार्थ कण क्वार्क और लेप्टान से बने होते है और वे आपसी प्रतिक्रिया बलवाहक कणो या बोसोन के आदान-प्रदान से करते हैं।
प्राचीन भारतीय विज्ञान और फंडामेंटल पार्टिकल्स
कपिल मुनि ने कहा है की मूलभूत कण या फंडामेंटल पार्टिकल्स वे कण है जो समस्त सृष्टि में व्याप्त है । इन मूलभूत कणों का विभाजन नहीं हो सकता है । प्रत्येक मूलभूत कण के तीन गुण होते हैं । इनके नाम हैं सत्व , रजस् और तमस् । मूलभूत कण में उपस्थित ये तीनों गुण मूलावस्था में साम्यावस्था यानी सुषुप्त या इनर्ट स्थिति में रहते हैं । अर्थात मूलभूत कण के भीतर के तीनों गुण एक दूसरे के प्रभाव को विलीन कर देते हैं । साम्यावस्था को ही बैलेंस्ड स्टेट कहा जाता है ।
सत्त्व रजस् तमसाम् साम्यावस्था प्रकृतिः (सांख्यदर्शन -१-६१)
अर्थात् सत्व, रजस और तमस की साम्यावस्था को प्रकृति कहते है। फंडामेंटल पार्टिकल्स या मूलभूत कणों
में गुणों की साम्यावस्था को वर्तमान के वैज्ञानिक नहीं मानते हैं । उनके अनुसार ब्रह्माण्ड
में कोई भी निष्क्रिय अवस्था संभव नहीं होती है ।
प्रकृति मूल रूप में सत्व,रजस्,रजस् तमस की साम्यावस्था को कहते है। तीनो आवेश परस्पर एक दूसरे को मूलभूत कण के अंदर ही नि:शेष (neutralize)
कर रहे होते हैं।
लध्वैदि धर्मैः साधर्म्यं च गुणानां । सांख्यसूत्र-१.१२८ ।
छोटे होने में तीनों गुण समान हैं परन्तु प्रभाव परस्पर विरोधी है । आगे इन गुणों की विशेषता बताते हुए वे लिखते हैं
प्रीत्यप्रीतिविषादाद्यैः गुणानां अन्योन्यं वैधर्म्यं । सांख्यसूत्र-१.१२७ ।
(कार्यकारणयोः साधर्म्यवैधर्म्ये)
अर्थात विभिन्नता है । एक आकर्षण [अट्रैक्शन ] करता है दूसरा विकर्षण [ रिपल्शन ] करता है और तीसरा विषाद गुण [न्यूट्रल ] वाला है ।
जब जब मूलभूत कण की यह साम्यावस्था भंग होती है तब तब सृष्टि रचना आरंभ होती है । वेदों के अनुसार प्राण ही मूलभूत कणों की साम्यावस्था को भंग कर सकने का समर्थ रखता है ।
प्रकृति की सुप्त अवस्था में मूलभूत कण के गुण भीतर ही परस्पर विलीन हो जाते हैं ये अंतर्मुखी होते हैं । प्राण के प्रभाव से मूलभूत कणों में क्षोभ होता है और वे कार्योन्मुख हो जाते हैं अर्थात कार्यरूप में परिणिति होने के लिए तत्पर हो जाते हैं । मूलभूत कण के गुण बहिर्मुखी हो जाते हैं , जिसके कारण उन गुणों के प्रभाव की दिशा कण से बाहर हो जाती है ।तब उनकी अवस्था साम्य न रह कर वैषम्य की और अग्रसर होती है। कणों का यही बहिर्मुखी गुण बाहर पड़ोस के अन्य कणों को आकर्षित -विकर्षित करता है और उनका जो प्रथम परिणाम है वह महत् होता है ।
महत् तरालवस्था होती है इसे आपः भी कहा जाता है । महत् मूलभूत कणों को लड़ियाँ होती हैं लेकिन इनमें अभी रूप, रंग, संस्कार उत्पन्न नहीं होते हैं । वर्तमान में महत् को क्वार्क , लेप्टान या बोसान के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
वायु [ उपनिषद के अनुसार गति प्रदान करने वाली एक शक्ति ] के प्रभाव से महत् की लड़ियों में रूप और संस्कार उत्पान होते हैं । महत् के कणों की लड़ियों के परस्पर आकर्षण विकर्षण से कभी कभी कणों के छोटे या कभी कभी बड़े समूह बन जाते हैं या कभी कोई समूह ही नहीं बन पाता है । महत् से बनने वाले समूहों को अहंकार कहते हैं । गुणों के आधार पर अहंकार तीन प्रकार के माने जाते हैं । वैकारी अहंकार जो सतोगुण प्रधान है , तमोगुण प्रधान भूतादि अहंकार होता है और रजोगुणी प्रधान को तेजस अहंकार कहा जाता है । कभी कभी इन अहंकारों के परस्पर ऐसे समूह बन जाते हैं की वैकारी और भूतादि अहंकार बीच में आ जाते हैं और तेजस् अहंकार इनके चारों ओर चक्कर काटते हैं ।
आज कल की वैज्ञानिक परिभाषा में अहंकार को परमाणु कहा गया है , विकारी अहंकार [प्रोटोन ] , भूतादि अहंकार [ न्यूट्रॉन ] और तेजस अहंकार [ इलेक्ट्रान ] के नाम से जाना जाता है ।कालांतर में अहंकार के कण मिलकर परिमंडल [अणु या एटम ] की संरचना करते हैं ।
सांख्य का एक अन्य सूत्र है-
सत्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृति: प्रकृतेर्महान,
महतोSहंकारोSहंकारात् पंचतन्मात्राण्युभयमिनिन्द्रियं
तन्मात्रेभ्य: स्थूल भूतानि पुरूष इति पंचविंशतिर्गण:।।
अर्थात् सत्व, रजस और तमस की साम्यावस्था को प्रकृति कहते है। साम्यावस्था भंग होने पर महत् बनता हैं । महत् अव्यक्त से उत्पन्न होता है और अहंकार को उत्पन्न करता है, तथा तन्मात्राएँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं तथा महाभूतों को उत्पन्न करती हैं । मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेद्रियाँ तथा पाँच महाभूत, ये सोलह विकार हैं- पच्चीसवां तत्व पुरुष है जो न प्रकृति है न विकृति है अर्थात् पुरुष न किसी को उत्पन्न करता है और न किसी से उत्पन्न ही होता है । यह कार्य कारण रहित है ।
द्वारा
गीता झा
क्रमशः
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