Tuesday, November 21, 2017

प्रेम का आरम्भ होता है अंत नहीं ।



 प्रेम एकांगी होता है इसलिए इसका आदि होता है अंत नहीं । कलम टूट जाने से भी मस्तिष्क में भरी विद्या का अंत नही होता है ।  प्रेम का आरम्भ होता है अंत नहीं । क्योंकि न उससे निवृति मिलती है और न उसकी पूर्ति होती है । इसलिए प्रेम को नित्य कहा जाता है । आज जिसे लोग प्रेम कहते  हैं , वह किसी दूसरे के साथ खुद को बाँधने का,खुद की पहचान बनाने का एक तरीका है , एक आर्ट है , एक तकनीक है । आसक्ति प्रेम नहीं है । आसक्ति का प्रेम से कोई लेना देना भी नही है ।

आसक्ति काफी सुविधाजनक है जैसे सजावटी प्लास्टिक के फूल । आपके अहंकार को यह पुष्टि देता है , मैं कितना  महान  हूँ मैंने इसे चाहा  ! अगर आप किसी के प्रति आसक्त होंगें  तो उसके व्यवहार, स्वभाव और  प्रतिक्रिया से आपके मन में बैचनी, डर , आशंका और पागलपन धीरे धीरे घर करने लगेंगें । आसक्ति आपको  भावनाओं के एक ऐसे हाई वे पर ले जाती है  जिसका आखिरी पड़ाव पागलपन ही होता है ।  आपकी आसक्ति जिसके प्रति है आप उसके साथ एक होना चाहेंगें। ...... वह उपस्थित है तो आप प्रसन्न होते हैं और अगर अनुपस्थित है तो आप दुखी होते हैं । यह विशुद्ध गणित है निज़ी लाभ -नुकसान का ,प्रेम नहीं  ।सारी शर्तें ,चालाकियां, स्वार्थ , प्रपंच, गणित आसक्ति के  लिए होते है ,प्रेम के लिए नहीं ।

जीवन में कई व्यक्ति प्रेम की असफलता का रोना रोते हैं, कहते हैं हमने तो मन से प्रेम  किया था और बदले में हमें बेवफाई ही मिली । बदले के लिए किया गया प्रेम विशुद्ध व्यापार है , एक बाज़ी है जिसमें  हार भी हो सकती है और जीत भी । सामने वाला यदि अधिक उस्ताद हुआ तो अपना दांव  चलकर अलग हो सकता है ।  आसक्ति जड़ चीज़ों या शरीर से की जाती है  लेकिन प्रेम आत्मा से ही किया जा सकता है । इसलिए जिनके प्रेम के पीछे चाहे  कितनी भी चालाकी से छुपाई हुई भोग की इच्छा होती है उनमें चुभन, पीड़ा , बैचनी ,बेबसी ,निराशा,विरह,वेदना के दर्शन होने आम बात हैं । मतलब के लिए गधे को बाप बनाने की नीति आजकल हर  कोई जानता है । खुशामद , चापलूसी , भुलावा देने वाली मीठी बोली बोलने की कला का अब काफी लोग इस्तमाल करते हैं ।  मछुवारे जिस प्रकार आटे की गोलियां दिखा कर मछलियों को जाल में फांस लेते  हैं उसी प्रकार नकली प्रेम का प्रलोभन दिखा कर कितने ही ठग  दूसरों का सर्वस्व ठग लेते हैं । बंधन में केवल शरीर बंधता है आत्मा नहीं ।  इसलिए जिनसे प्रेम करना हो उसके शरीर पर घात न लगाईं जाए,और  जिसका शरीर भोगना हो उसके साथ प्रेम का नाटक न किया जाए यही उचित है । शाहरुख़ खान का ऐ-दिल-है-मुश्किल में एक बेहतरीन डायलॉग था ...मुझे सबा से बेइंतहा मोहब्बत करने के लिए सबा की ही ज़रूरत नहीं , हो सकता है इससे कोई बेहतर इश्क़ ?   

मोह,वासना , आसक्ति और आत्मीयता में परिणाम और प्रतिदान की अपेक्षा की जाती है । प्रेम इससे ऊँची चीज है । यह न किसी पर अहसान करने के लिए किया जाता है और न ही प्रतिदान के लिए । प्रेम में न शिकायत की गुंजायश है, न ही असफलता की । 

लिप्सा , तृष्णा, और वासना आमतौर से प्रेम का आवरण ओढ़कर सामने आती हैं । जिस पदार्थ या व्यक्ति की आज बहुत उत्कंठा थी वह मिल जाने के बाद अरुचिकर बन जाता है । यही कारण है की न तो भोग से तृप्ति मिलती है और न भोग्य पदार्थों की एकरूपता से । न मिलने तक वस्तु के केवल गुण दिखाई देते हैं पर मिलने के बाद कल्पना का नशा समाप्त हो जाता  है और उसके  विकार, दोष, दृष्टि में आते हैं और प्रेम  का सारा नशा काफ़ूर हो जाता  है । दूर से जो चीज़ जितनी प्रिय लगती है वे जैसे ही जितनी समीप आती है उतना ही अपना आकर्षण खो देती हैं । विवाह से पूर्व प्रेमिका या मंगेतर जितनी सुहावनी और आकर्षक लगती हैं , विवाह होने के बाद पत्नी बन जाने के बाद सारा आकर्षण रफ्फूचक्कर हो जाता है । इसी कारण पुरुष और स्त्रियां प्रेम के नाम पर नई नई आकृतियों की खोज करते रहते हैं क्योंकि शरीर में रुचिकर लगने वाले तत्वों से अरुचिकर लगने वाले तत्वों की मात्रा कम नहीं ,अधिक ही है । 

आजीवन हम सब दूसरों से प्रेम की भिक्षा मंगाते चले जाते हैं  बचपन में जवानी में और बुढ़ापे में भी हमारी प्रेम की मांग बनी रहती है  क्योंकि हमें गलतफहमी होती है की दूसरों से मिला प्रेम , हमरे अन्दर के प्रेम को बड़ा देगा लेकिन जो चीज़ मिलने से बढ़ जाए वह कुछ और होगा प्रेम नहीं 

अगर किसी को प्रेम देने से आपको लगे की आपमें कोई कमी हो गई है , तो समझ लेना चाहिए की प्रेम का अनुभव ही नही हुआ है 
 अगर आप किसी को प्रेम देते हैं और भीतर लगता है की कुछ खाली हुआ है , तो समझ लेना चाहिए की जो आपने दिया है वह कुछ और होगा , प्रेम कदापि नहीं होगा  अगर आपको लगे की आपके प्रेम करने से कुछ प्रेम कम हो रहा है तो आप प्रेम की अनुभूति से कोसों दूर हैं   

 प्रेम में आपको भौतिकता की सीमा को तोडना होगा , प्रेम  निजी फायदे किए लिए नहीं है,सच्चा प्रेम खुद को मिटाने का एक तरीका है  । हम खुद के मैं को मिटाने से  डरते हैं इसलिए आसक्ति की तरफ सहज आकर्षित हो जाते हैं । इससे अपना  अहम भी बना रहता है ,  और झूठी तसल्ली भी बनी रहती है कि  हम प्रेम करने के महारथी हैं ।


जब आप प्रेम में होते हैं वह भी सच्चे तो आपके भौतिक शरीर की सीमाएं टूट  जाती हैं । प्रेम आपके शरीर को स्पंदनों से भर  देता है  और हो सकता है आपकी आँखों में आँसू भर जाएँ या आपका गला रुंध जाए । प्रेम एक मनोदशा है,  एक मनोवृति है, जो मिटने की कला जानते हैं वही  सच्चा प्रेम कर सकते हैं । 


कभी कभी लगता है मैंने उसे इतना चाहा ,  बदले में मुझे कम मिला या कुछ भी नहीं मिला या मेरे  धोखा हुआ , तो निश्चिन्त रहिये आप आसक्ति की गिरफ्त में हैं प्रेम की नहीं । जो बांटने और देने से घट जाता है वह वासना है,आसक्ति है  । उसे भूलकर भी प्रेम नहीं समझना ।आसक्ति , काम और वासना को नापा जा सकता है केवल प्रेम ही एक ऐसी immeasurable unit है जिसको नापा नहीं जा सकता है , यह अमाप है । 


प्रेम प्रार्थना है । एक सच्चा प्रेमी वही है जो प्रताड़ना, ईर्ष्या , दोषारोपण, माल्कियत की भावना से मुक्त होता है ।  मैंने  तुझे प्रेम किया इतना ही काफी है । बदले में कुछ भी प्रतिकार चाहने वाला कुछ और कर सकता है लेकिन सच्चा प्रेम नहीं कर सकता है । 


अधितर प्रेम का अर्थ लोग एक प्रकार के एकाधिकार या माल्कियत से लेते हैं । जिस क्षण आप  प्रेम के नाम पर किसी भी जीवित चीज़ पर अपना अधिकार जमाते हैं , आप  उसे मार डालते हैं । तब आप  चिंतित होंगें  , आपको  लगेगा की आपने  तो प्रेम किया लेकिन सामने वाले ने आपको   धोखा दिया । याद रखिये  यदि आपको  सच्चा प्रेम होगा तो आप  कभी भी असुरक्षित, भयभीत और ईर्ष्यालु नहीं महसूस करेंगें  । 


प्रेम अध्यात्म की पहली और आखिरी सीढ़ी है । जो व्यक्ति प्रेम को समझ लेता है वह परमात्मा को समझने की फ़िक्र छोड़ देता है । प्रेम और परमात्मा एक ही डायमेंशन की चीजें हैं । प्रेम चरम नियम है ।  

1 comment:

  1. Hi there! is there a way to chat with you? its regarding astrology. please reply!

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