Friday, December 15, 2017

Who was Suhasini ? सुहासिनी कौन थी ?





हमेशा तुम सफ़ेद कोर की साड़ी में लिपटी रहती , जीवन के अंतिम पड़ाव में भी तुम काफी सुन्दर थी और तुम्हरे चेहरे पर काफी तेज़ था , तुम एक भरे पूरे  परिवार की मालकिन थी , बेटे ,बेटियां , नाती, पोतों से घिरे तुम्हारे जीवन को देख कर कोई भी स्वाभाविक रूप से तुम्हें सौभाग्यशाली ही समझता , एक प्रतिष्ठित परिवार की तुम गृहस्वामिनी थी , लेकिन पता नहीं क्यों तुम्हरी आँखें ,दिल कोई साथी खोजती थी जिससे तुम अपने दिल की बात कर सको , शानो शौकत , मान प्रतिष्ठा , धन धान्य ...........के बीच एक बेचैनी थी , एक नीरवता थी जिसे तुम बांटना चाहती थी ,.....शायद इस जीवन से रुखसत होते समय तुम थोड़ी हल्की होना चाहती थी , तुम्हारी आत्मा अपने आठ बच्चों और अनेकों नाती पोतों के बीच सकून न पा सकी और तुमने न  जाने किन पलों में मुझे अपना सखा  जान कर अपने दिल पर पड़ी कोहरे की परतों को उकेरा ...................सुहासिनी ...हाँ यही नाम बतया था तुमने ...........तब तुमने  कहा सुहासिनी तुम्हरे पति की दूसरी पत्नी है जिसे कभी सामाजिक दर्जा नहीं मिल सका ....तुम्हारे  पति ने उसके माथे पर सिन्दूर  लगा कर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाया जो हमेशा समाज से छुपी रही और तुम्हारी परिवार की मान -प्रतिष्ठा पर कभी आंच नहीं आने दी ..................इसके साथ तुमने खुलासा किया की तुम्हारे आठ बच्चों के आलावा तुम्हारे पति का एक  नाजायज़ बेटा भी है जिसकी उम्र तुमने उस समय ५०-५२ साल की बताई थी , जो सुहासिनी से नहीं  था .............तुम्हारी शादी के इतने सालों के बाद तुम्हारा यह सब बताना , वह भी मुझे हैरान करता है की इतने लम्बे शादी शुदा जीवन में तुमने कभी भी एक पल भी अपने पति से प्रेम किया ?

अंतिम बार जब मैंने तुम्हें देखा था , तुम्हारे इस दुनिया से जाने से महज़ ५-६ महीने पहले ही , एक पारिवारिक समारोह में तुम्हारे  पोपले मुँह में मैं मोतीचूर के लड्डू डाल रही थी , मेरे कंधे से टिकी  हुई  तुम एक छोटी सी बच्ची की तरह अपना मुँह खोलती और में उसमें मोतीचूर के लड्डू का एक कोर डाल देती .....उस समय ,तुम एक असहाय ,शरीरिक और मानसिक रूप से टूटी हुई वृद्धा थी , अपने ही खड़े किये सम्राज्य में तुम्हारी बहुओं और पोते की बहुओं  ने तुम्हें  डायन कहना शुरू कर दिया थी ...........पति को खाने वाली, बेटों को खाने वाली , दामाद को खाने वाली . .....फिर तुम उस स्थिति में चली गई जब तुम्हारे अपने ही बच्चे तुम्हारी मृत्यु की कामना करने लगे तुम्हारी  अमीर बेटियों ने  चालाकी से तुमसे अपन मुंह मोड़ लिया .....यह से तो बेटों का अधिकार है माँ -बाप की सेवा करना .............काश तुम्हारे अपनों की मन की दरिद्रता तुम्हारी अकूत संपत्ति खरीद पाती . ...अपनों की बेरुखी ,सुहासिनी और उस नाजायज़ बेटे के बारे में जानकार एक प्रतिष्ठित , आन-बान और झूठी शानों - शौकत वाली  जीवन में शायद तुम्हें दो  पल का क़रार न मिला हो लेकिन में दिल से दुआ करती हूँ की तुम्हारी आत्मा में सकून आये तुम शांत हो सको और अपने अगले जन्म में ह्रदय में करुणा और माफ़ी ले कर पैदा हो सको .......अनंत ब्रह्माण्ड की तरंगों में तुम समां गई , मेरी दोस्त , मेरी सखी तुम अपनी वेदना से मुक्ति पा सको ..........तुमने जो हरे रंग का शॉल मुझे दिया था वह आज भी मेरे दिल के करीब है , आज भी  सर्द रातों में उसे  ही ओढ़ती हूँ .....

By
Geeta Jha 

No comments:

Post a Comment