दरिद्र -योग में जन्म
लेने वाला वाला जातक कठिन परिस्थिति में रहने वाला , अप्रिय बोलने वाला ,
व्यसनी, निम्न सोच रखने वाला , कटु भाषी, निम्न वृति से धन कमाने वाला , परस्त्री लोलुप
होता है । इस योग के रहते कभी कभी जातक के अंगों में विकार आ जाता है , वह कलह-प्रिय
, कृतघ्न , उत्तम लोगों से जलने वाला , दूसरों
के कार्य में विघ्न डालने वाला होता है ।
दरिद्र -योग होने की सम्भावना
लग्न द्वारा
- यदि लग्न चर राशि का हो , लग्न का नवमांश भी चर राशि का हो और लग्न पर शनि या नीच के वृहस्पति की दृष्टि हो तो दरिद्र योग बनता है । ऐसी सम्भावना केवल कर्क लग्न में बनती है ।
- यदि लग्न स्थिर राशि में हो और सभी पाप ग्रह केंद्र और त्रिकोण में हों तथा शुभ ग्रह केंद्र के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर हो तो जातक भिक्षा मांग कर जीवन यापन करता है ।
- यदि लग्न स्थिर राशि का हो और सभी पाप ग्रह केंद्र एवं त्रिकोण में हों तथा शुभ ग्रह केंद्र और त्रिकोण में हों लेकिन निर्बल हों और पाप ग्रह केंद्र के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर हो तो भिक्षुक -योग बनता है ।
चन्द्रमा द्वारा
- यदि लग्न व चन्द्रमा से चतुर्थ स्थान पर पाप ग्रह बैठा हो तो जातक निर्धन होता है ।
- यदि चन्द्र - ग्रहण के समय का जन्म हो और चन्द्रमा किसी ग्रह -युद्ध में पराजित होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि केंद्र या त्रिकोणवर्ती चन्द्रमा शत्रु या नीच वर्ग का हो और चन्द्रमा से वृहस्पति , बुद्ध आठवें या बारहवें घर में हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि यदि राहु या केतु ग्रस्त चन्द्रमा पाप दृष्ट या पाप संयुक्त हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि रात्रि का जन्म हो और कमजोर चन्द्रमा से अष्टम भाव पाप दृष्ट /युक्त हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि चन्द्रमा पाप नवमांश में हो और राहु के साथ हो तथा किसी पाप ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि चन्द्रमा तुला राशि में स्थित हो और नवमांश में शत्रु-राशि में स्थित हो और किसी नीच या शत्रु ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि चन्द्रमा चर राशि में स्थित हो , पाप नवमांश में रहते हर शत्रु /पाप ग्रह से दृष्ट हो और चन्द्रमा पर वृहस्पति की दृष्टि न पड़ती हो तो दरिद्र योग बन जाता है ।
- यदि चन्द्रमा सूर्य के नवमांश में हों सूर्य चन्द्रमा के नवमांश में हो लेकिन कुंडली में सूर्य और चन्द्रमा की युति हो तो दरिद्र योग बनता है ।
अन्य योग
- शुभ ग्रह केंद्र में हों पाप ग्रह धन भाव में हों तो जातक सर्वदा दरिद्र रहता है ।
- यदि वृहस्पति अष्टम /लग्न का स्वामी हो और नवमेश का बल उससे कम हो तो तथा एकादश भाव का स्वामी केंद्र में न होकर अस्त /निर्बल हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि वृहस्पति , मंगल , शनि या बुद्ध नीच होने के साथ अस्त भी हो और ५/६/८/११/१२ भाव में स्थित हो तो जातक दरिद्र होता है ।
- यदि शनि नवम भाव में हो और पाप ग्रह द्वारा दृष्ट हो और सूर्य और बुद्ध लग्न में बैठे हों , बुद्ध नीच नवमांश में हो तो दरिद्र-योग बनता है ।
- यदि शुक्र ,वृहस्पति , चण्द्रमा और मंगल नीच राशि में होते हुए लग्न/५/७/९/१०/११ इन छह भाव में किसी चार भाव में बैठे हों तो दरिद्र योग होता है । यह योग केवल कन्या और मकर लग्न में ही लागू हो सकता यही ।
- यदि वृहस्पति ६/१२ वे भाव में स्थित हो , पर स्वगृही न हो तो दरिद्र योग बनता है ।
- यदि पाप ग्रह नीच हों तो जातक पाप कर्म करता है यदि शुभ ग्रह नीच हों तो जातक गुप्त तरीके से पाप कर्म करता है ।
- नीच का वृहस्पति दशम स्थान पर बैठा हो तो जातक गुप्त तरीके से पाप करने वाला होता है ।
- उच्चस्थ ग्रह नीच नवमांश में होने पर बुरा फल देते हैं और जातक को कुकर्म करने के लिए प्रेरित करता है ।
- आत्मकारक या लग्न से अष्टम भाव के स्वामी की दृष्टि आत्मकारक या लग्न पर हो तो दरिद्र योग बनता है ।
द्वारा
गीता झा
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