ह्रदय मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है । ह्रदय की बनावट कार्य प्राणी या वाल्वों में रक्त संचार की रुकावट या शिराओं संचार व्यवस्था में गड़बड़ी होने से ह्रदय के कार्य करने में रुकावट पैदा होती है फलस्वरूप ह्रदय रोग उत्पन्न हो जाते हैं ।
धूम्रपान , शराब का सेवन करना , चिंता, शोक , उच्च रक्त चाप , चर्बी का बढ़ना , मानसिक तनाव , अपुष्ट भोजन, वात -रोग, गठिया , भय, वंशानुगत कारणों , प्रमेह आदि कारणों से ह्रदय रोग होते हैं । ह्रदय रोग कई प्रकार के होते हैं जैसे जन्म से ह्रदय में छेद होना, ह्रदय शूल, खून के थक्के ज़माने से ह्रदय घात होना , वाल्व में खराबी आना , उच्च/निम्न रक्त चाप आदि ।
ज्योतिष की दृष्टि से ह्रदय रोग को प्रभावित करने वाले कारक
- कुंडली में चतुर्थ स्थान ह्रदय का स्थान है ।
- पंचम भाव /पंचमेश मनोस्थति को दर्शाता है ।
- छठा भाव रोग का कारक है ।
- सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है ।
- बुद्ध स्नायु - मंडल पर प्रभाव रखता है ।
- चन्द्रमा रक्त और मन का प्रतीक है ।
- मंगल रक्ताणु और रक्त-परिभ्रमण पर प्रभाव रखता है ।
ह्रदय रोग सम्बन्धी योग
- कुंडली में पंचम भाव में पाप ग्रह बैठा हो और पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हुआ हो ।
- पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रह के साथ बैठा हो अथवा पाप गृह से देखा जाता है ।
- पंचम भाव का स्वामी नीच राशि अथवा शत्रु राशि में स्थित हो या अष्ठम भाव में बैठा हो ।
- यदि पंचमेश बारहवे घर में हो या बारहवे भाव के स्वामी के साथ 6 /8 /12 स्थान पर हो तो ह्रदय रोग होता है ।
- सूर्य छठे भाव का स्वामी हो कर चतुर्थ भाव में पाप ग्रहों के साथ बैठा हो ।
- चतुर्थ भाव में मंगल के साथ शनि या गुरु स्थित हो और पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो ।
- सूर्य और शनि चतुर्थ भाव में साथ बैठे हों ।
- सूर्य कुम्भ राशि में बैठा हो ।
- सूर्य वृश्चिक राशि में बैठा हो और पाप ग्रहों से प्रभावित हो ।
- सूर्य, मंगल ,गुरु चतुर्थ स्थान पर स्थित हो ।
- चतुर्थ स्थान में शनि हो तथा सूर्य एवं छठे भाव के स्वामी पाप ग्रहों के साथ हो ।
- चतुर्थ भाव में केतु और मंगल स्थित हों ।
- यदि शनि , मंगल और वृहस्पति चतुर्थ भाव में हो तो जातक ह्रदय रोगी होता है ।
- यदि तृतीयेश , राहु या केतु के साथ हो जातक ह्रदय रोग के कारण मूर्च्छा में जाता रहता है ।
ह्रदय-शूल होने के कारक
- चतुर्थ भाव,चतुर्थ भाव के स्वामी और सूर्य की स्थिति से ह्रदय शूल का ज्ञान होता है ।
- चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो और लग्नेश निर्बल और पाप ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो ।
- द्वादश भाव में राहु हो तो गैस वायु से ह्रदय प्रदेश में दर्द होता है ।
- पाप ग्रहों के साथ सूर्य वृश्चिक राशि में हों ।
- यदि पंचमेश और सप्तमेश छठे स्थान पर हो तथा पंचम अथवा सप्तम स्थान पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो जातक ह्रदय-शूल से पीड़ित होता है ।
ह्रदय कम्पन
घबराहट और बेचैनी से ह्रदय कम्पन होता है । जब गुरु या शनि षष्ठेश होकर चतुर्थ स्थान पर बैठें हों और पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो यह रोग होता है ।
द्वारा
गीता झा
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