वजन कम करने और चुस्त दुरुस्त रहने के लिए बड़ी संख्या में लोग दौड़ लगाते हैं । दौड़ना एक बहुत अच्छी exercise है , जहां इससे पूरे शरीर की कसरत होती है वहीं प्राणायाम को फेफड़ों की कसरत माना जाता है ।
अब यह सवाल बार बार उठता है की प्राणायाम और दौड़ने में क्या क्या समानता या असमानता है ? दोनों के लाभ समान है या अलग अलग ? या दोनों में से कौन ज्यादा फायदेमंद है ?
प्राणायाम श्वास-प्रश्वास क्रिया को क्रमबद्ध,लयबद्ध करना है वहीं दौड़ना अनुशासन ,दृढ़ संकल्प, ध्यान पर आधारित पूरे शरीर को स्वस्थ रखने की व्यायाम की एक तकनीक है । प्राणायाम और दौड़ना दोनों की एक विशिष्ट तकनीक है , यदि उसका सावधानी से पालन किया जाए तो दोनों के अद्भुत लाभ मिलते हैं ,लेकिन तकनीक के गलत प्रयोग से दोनों से हानि होने की सम्भावना अधिक रहती है ।
प्राणायाम- दौड़-सांस
हम दिन भर में 16-18 सांस लेते हैं और लगभग आधा लीटर वायु एक सांस में फेफड़ों में भरते हैं यानि एक मिनट में हम लगभग 8-9 लीटर वायु अंदर भरते हैं । लेकिन हमारे फेफड़ों की क्षमता इससे 10-12 गुना अधिक होती है यानि एक सांस में 5-6 लीटर और एक मिनट की सांस में 50-80 लीटर वायु हम ले सकते हैं । विश्राम में हम एक मिनट में 9 लीटर,बैठे हुए 18 लीटर, चलते हुए 27 लीटर और दौड़ते हुए 45-50 लीटर और प्राणायाम करते हुए 50-80 लीटर वायु ग्रहण करते हैं ।
एक गहरी सांस में दोनों फेफड़ों में जितने आयतन की वायु समा सकती है उस सम्पूर्ण आयतन को टोटल लंग कैपेसिटी TLC कहते हैं । सांस निकलने के बाद भी कुछ वायु फेफड़ों में बची रहती उसे फंक्शनल रेसिडुअल कैपेसिटी FRC कहते हैं । इसके अलावा अगर वायु की अधिकतम मात्रा को प्रश्वास द्वारा निष्काषित कर फेफड़ों को खाली किया जाता है तो भी फेफड़ों में अल्प मात्रा में वायु शेष रह जाती है उसे रेसिडुअल वॉल्यूम RV कहते हैं ।
प्राणायाम में हम एक मिनट में 50-80 लीटर वायु ग्रहण कर लेते हैं और साथ ही साथ सांस का पूरा निष्काशन भी कर देते हैं इसी कारण से फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड जमा नहीं हो पता और हमें थकान नहीं होती जबकि दौड़ने में ,सीढियाँ चढ़ने या vigorous व्यायाम करने में भी हम अपने फेफड़ों को लगभग प्रति मिनट 50 लीटर वायु से तो भर लेते हैं लेकिन उसी अनुपात से उसका निष्काशन नहीं कर पाते हैं अधिक ऑक्सीजन लेने से उसके जलने से जो कार्बन डाइऑक्साइड और लैक्टिक एसिड बनता है वह फेफड़ों में जमा होता चला जाता है इसलिए दौड़ने से या सीढियाँ चढ़ाने से हमारा दम फूलने लगता है और हमें थकान महसूस होती है |
प्राणायाम की पूरी प्रक्रिया साँसों को लयबद्ध,तालबद्ध और क्रमबद्ध करने की है जबकि दौड़ना एक व्यायाम है जिसमें साँसों के ऊपर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है । प्राणायाम में साँसों के आने -जाने दोनों पर ध्यान रखा जाता है इसलिए इससे फेफड़ों का रेसिडुअल वॉल्यूम RV घटता है और वाइटल कैपेसिटी बढ़ती है , जबकि दौड़ने में साँसों का कोई निश्चित नियमन नहीं होता है इसलिए फेफड़ों की निष्क्रियता समाप्त करने में प्राणायाम दौड़ने से अधिक कारगर है ।
प्राणायाम-दौड़-कार्बन डाइऑक्साइड
सांस लेते समय ऑक्सीजन,नाइट्रोजन आदि का रासयनिक का सम्मिश्रण हमारे भीतर प्रवेश करता है उसमें से जो आवश्यक है उसे शरीर सोख लेता है और भीतर उत्पन्न विषाक्त कचरे को कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में बाहर बहा देता है । सांस द्वारा फेफड़ों में जो शुद्ध वायु पहुंचती है वह अपने साथ इस विष को लेकर बाहर उड़ा लेती है | 24 घण्टों में मनुष्य के शरीर से सांस द्वारा इतना विष निकलता है की उससे 12 हाथियों की मौत हो सकती है । शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ स्तर ही विभिन्न्न रोगों को जन्म देता है | प्राणायाम में साँसों को पूरा पूरा लिया जाता है और पूरा पूरा छोड़ा जाता है इसलिए दौड़ लगाने के मुकाबले इस तकनीक से शरीर की गन्दगी अधिक मात्रा में बाहर निकलती है ।
हर सामान्य सांस के द्वारा एक आम आदमी 21% ऑक्सीजन की मात्रा ग्रहण करता है और 12 %विषाक्त कार्बन डाइऑक्साइड को निष्काषित करता है | प्राणायाम के अभ्यास से इस अनुपात को कई गुणा बढ़ाया जा सकता है ।प्राणायाम करते समय बाहर निकलने वाली वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है ।
यदि दौड़ते समय भी सांसों के ऊपर नियंत्रण रखा जाए तो इसके पूर्ण लाभ मिल सकते हैं | अक्सर जब दौड़ने में गति बढ़ती है तो साँसों की भी गति बढ़ती है हम उथली सांस लेना शुरू कर दते हैं जिसके कारण थकान आना और दम फूलना स्वाभाविक हो जाता है । यदि दौड़ते समय लम्बी सांस लेना और छोड़ना दोनों के ऊपर ध्यान रखा जाए तो दौड़ने का वास्तविक लाभ मिल सकेगा ।
प्राणायाम -दौड़ - रक्त शुद्धि
शरीर की कोशिकाओं को स्वस्थ रहने के लिए रक्त,वायु और विद्युत की जरुरत होती है । इन तीनों में से एक में भी कमी आ जाए तो शरीर र्निर्बल, रोगी ,निस्तेज रहने लगता है । फेफड़ों से ली गए सांस में उपस्थित ऑक्सीजन सीधे रक्त से मिलकर रक्त कोशिकाओं को लाल,चमकीला और जीवन शक्तिदायक बनाता है । ऑक्सीजन युक्त सांस में जितनी कमी पड़े उतना ही घाटा शरीर को उठाना पड़ता है ।
मांसपेशियों में होने वाले रासायनिक क्रियाओं के कारण रक्त में अम्ल रूपी विष-ब्लड लेक्टेट काफी बढ़ जाता है जिसके कारण मानसिक तनाव,डिप्रेशन,चिंता थकान ,एंग्जायटी जैसे विकार उत्पन्न होते हैं | प्राणायाम के द्वारा रक्त में उपस्थित लैक्टेट को 33 % तक कम किया जा सकता है । जिसके चलते रक्त चाप और हार्ट अटैक जैसे रोगों का शमन होता है |
जबकि दौड़ने से पैर की मांसपेशियों के ऊपर अधिक जोर रहता है ,और कभी कभी शरीर का पोस्चर ठीक न होने के कारण एड़ी ,पाँव,कंधे ,पीठ के ऊपरी और निचले हिस्से की मांशपेशियों में लैक्टिक एसिड तीब्रता से बनता है जो उस हिस्से में तनाव और दर्द उत्पन्न करते हैं इसलिए दौड़ने का पोस्चर हमेशा ठीक रखना चाहिए । इसी प्रकार प्राणायाम करते समय यदि शरीर का पोस्चर ठीक नहीं होगा तो लाभ की जगह हानि होने की अधिक सम्भावना रहती है । इस प्रकार ब्लड -लैक्टेट को कम करने या रक्त को शुद्ध करने के लिए प्राणायाम दौड़ने से अधिक प्रभाव शाली है ।
प्राणायाम-दौड़- कैलोरी
प्राणायाम और दौड़ने से व्यय होने वाली कैलोरी व्यक्ति विशेष के वजन और उसके मेटाबोलिज्म रेट के अनुसार अलग अलग होगी । समान्यता एक 68 किलो के भार वाला व्यक्ति एक मील दौड़ने पर 100-120 कैलोरी व्यय करता है जबकि एक 90 किलो की वजन वाला व्यक्ति एक मील दौड़ने में 135-155 कैलोरी व्यय करता है ।जबकि प्राणायाम में एक औसत वजन वाला व्यक्ति 30 मिनट के प्राणायाम में 120-180 कैलोरी व्यय करता है ।
प्राणायाम-दौड़- मस्तिष्क
प्राणायाम के माध्यम से मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध में ऊर्जा का उत्पादन लगभग बराबर होता है और दोनों के क्रिया कलापों के मध्य सामंजस्य स्थापित होता है । प्राणायाम करने से व्यक्ति के मस्तिष्क से अल्फा तरंगें बहुलता से निकलती हैं जो मस्तिष्क को संतुलित करती हैं । इससे बौद्धिक और भावनात्मक क्षमताओं को असाधारण रूप से बढ़ाया जा सकता है । दौड़ने से भी मस्तिष्क में रक्त की अच्छी आपूर्ति होती है शरीर में एंड्रोफिन जैसे रसायन उत्पन्न होते हैं, जिनसे खुशी का अहसास होता है और हम खुद के बारे में अच्छा महसूस करते हैं। तनाव में कमी आती है। लेकिन दौड़ने का असर मस्तिष्क पर इतना नहीं होता जितना प्राणायाम से होता है ।
अतः दोनों मस्तिष्क विभागों में एकरूपता लाने और मस्तिष्क की क्रियाशीलता को बढ़ने के लिए प्राणायाम दौड़ने से अधिक कारगर है ।
प्राणायाम - दौड़ -शारीरिक लाभ
उचित तकनीक का प्रयोग करने पर प्राणायाम और दौड़ने दोनों से लाभ मिलते है । दौड़ने से शरीर का निचला हिस्सा मजबूत होता है, लिगामेंट्स और स्नायुतंत्र में मजबूती आती है , रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है , रक्तचाप नियंत्रित रहता है,फेफड़े मजबूत होते हैं ,हड्डियां मजबूत होती हैं, शरीर से चर्बी भी कम होती है, इंसुलिन बनने की प्रक्रिया में सुधार होता है , पाचन में सुधार होता है और बॉडी मेटाबोलिज्म रेट बढ़ता है साथ ही इससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है । यह भी देखने में आया है कि जो पेशेवर लंबी दूरी के धावक होते हैं, उनके दिल पर बुरा असर पड़ता है। इसका मतलब है कि दौड़ने से जो भी फायदा होता है, उसका कुछ अंश दिल पर पड़ने वाले जोर की वजह से कम हो जाता है। सांस और दिल की धड़कन में एक विशेष अनुपात रहता है, उथले सांस ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए जल्दी जल्दी सांस लेने पड़ते हैं इस तरह जल्दी जल्दी सांस क्रिया दिल की धड़कन की संख्या को बढती है और उसे अधिक कार्य करना पड़ता है जिससे दिल अपना संतुलन खो देता है और उसमें विकृति पैदा हो जाती है |
जबकि प्राणायाम से मोटापा, मधुमेह ,पेप्टिक अलसर , कोलाइटिस, आर्थराइटिस ,दमा, कैंसर, हाइपर टेंशन , बॉडी-इंफ्लेमेशन , कमजोरी,कारोनरी अथरोकलोरिसिस आदि से मुक्ति मिलती है ।इसके साथ ही प्राणायाम शरीर में स्थित स्टेम सेल्स को भी प्रभावित करता जो शरीर को दुःसाध्य रोगों से मुक्ति दिला सकते हैं ।
प्राणायाम -दौड़ -मानसिक लाभ
शरीर का ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम स्व-संचालित होता है जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है | भावनाओं के नियंत्रण में ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम का ही हाथ होता है । प्राणायाम के माध्यम से ही इस ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम को प्राभावित किया जा सकता है क्योंकि यह सिस्टम प्राण के प्रभाव को शीघ्रता से ग्रहण कर लेते है । ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम और एंडोक्राइन ग्लैंड्स को मानसिक एकाग्रता और मानसिक शिथिलीकरण द्वारा ठीक किया जा सकता है जो प्राणायाम द्वारा संभव है ।
प्राणायाम स्नायु मंडल और ज्ञान तंतुओं की उन्नति करता है तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर अधिक पड़ता है हमारी चेतना और बुद्धि उन्नत होने लगती है । व्यक्ति में उदारता, परोपकार,दया ,क्षमा और करुणा आदि गुण जागृत होने लग जाते हैं स्नायु दुर्बलता, अनिद्रा, चिंता,खिन्नता , तनाव , निराशाजनक और निषेधात्मक दृष्टिकोण से मुक्ति मिलती है ।
जबकि दौड़ने से enkephalins और एंडोर्फिन नामक रसायन के कारण फ़ील गुड फैक्टर जुड़ा होता है लेकिन मस्तिष्क को यह प्राणायाम के भाँती प्रभावित नहीं कर पाता है ।
प्राणायाम स्नायु मंडल और ज्ञान तंतुओं की उन्नति करता है तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर अधिक पड़ता है हमारी चेतना और बुद्धि उन्नत होने लगती है । व्यक्ति में उदारता, परोपकार,दया ,क्षमा और करुणा आदि गुण जागृत होने लग जाते हैं स्नायु दुर्बलता, अनिद्रा, चिंता,खिन्नता , तनाव , निराशाजनक और निषेधात्मक दृष्टिकोण से मुक्ति मिलती है ।
जबकि दौड़ने से enkephalins और एंडोर्फिन नामक रसायन के कारण फ़ील गुड फैक्टर जुड़ा होता है लेकिन मस्तिष्क को यह प्राणायाम के भाँती प्रभावित नहीं कर पाता है ।
प्राणायाम -दौड़-आध्यात्मिक लाभ
प्रत्येक मनुष्य में स्थूल शरीर के साथ साथ सूक्ष्म और कारण शरीर का भी अस्तित्व होता है | जहां दौड़ने से स्थूल शरीर के ऊपर अधिक प्रभाव पड़ता और सूक्ष्म और कारण शरीर अल्प अंशों में ही प्रभावित हो पाते हैें ,वहीँ प्राणायाम तीनों शरीर का सर्वांगीण विकास करता है और तीनों को स्वस्थ रखता है । प्राणायाम से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है , मनोबल और संकल्प बल में वृद्धि होती है और प्राणायाम की अल्फा -स्टेट व्यक्ति में धैर्य, स्थिरता एवं गहन शांति उत्पन्न करती है । 20 मिनट प्रतिदिन प्राणायाम करने से मात्र 3 महीनों में हमारा औरा [Aura] जो साधारणतया 2 से 8 इंच तक फैला होता हैं वह 6 फीट तक विस्तार पा लेता है.
इस प्रकार हमने देखा की सही वातावरण , सही पोस्चर और सही तकनीक का प्रयोग किया जाए तो प्राणायाम और दौड़ने दोनों के अपने अपने फायदे हैं केवल अंतर इतना ही है की दौड़ने से जहां स्थूल शरीर पर अधिक असर पड़ता है वहीं प्राणायाम स्थूल-सूक्ष्म-कारण तीनों शरीरों का पोषण और सम्वर्द्धन करता है ।
कृपया ये ब्लॉग भी पढ़ें ....
द्वारा
गीता झा
प्रत्येक मनुष्य में स्थूल शरीर के साथ साथ सूक्ष्म और कारण शरीर का भी अस्तित्व होता है | जहां दौड़ने से स्थूल शरीर के ऊपर अधिक प्रभाव पड़ता और सूक्ष्म और कारण शरीर अल्प अंशों में ही प्रभावित हो पाते हैें ,वहीँ प्राणायाम तीनों शरीर का सर्वांगीण विकास करता है और तीनों को स्वस्थ रखता है । प्राणायाम से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है , मनोबल और संकल्प बल में वृद्धि होती है और प्राणायाम की अल्फा -स्टेट व्यक्ति में धैर्य, स्थिरता एवं गहन शांति उत्पन्न करती है । 20 मिनट प्रतिदिन प्राणायाम करने से मात्र 3 महीनों में हमारा औरा [Aura] जो साधारणतया 2 से 8 इंच तक फैला होता हैं वह 6 फीट तक विस्तार पा लेता है.
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गीता झा
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