Saturday, April 23, 2016

प्राणायाम :प्राणायाम और मस्तिष्क



मानव-मस्तिष्क 

मनुष्य शरीर में सबसे अधिक संवेदनशील एवं सक्रिय अंग मस्तिष्क है ।  तीन पाउंड [१. ३ किलोग्राम ] से भी कम वजन का अखरोठ जैसी आकृति वाला दो गोलार्द्धों में बंटा  हुआ मानव  मस्तिष्क भानुमति का पिटारा है ।मस्तिष्क का बायां गोलार्द्ध बुद्धि और वाणी का और दायां गोलार्द्ध भाव संवेदनाओं का संचालन करते हैं । 

मस्तिष्क के सामने वाला भाग   सेरिब्रम संवेदनाओं और इच्छाओं का केंद्र है,बुद्धि,विचारशीलता और भावनाएं भी  यहीं उत्पन्न होती हैं । मस्तिष्क  का पिछला  हिस्सा सेरिबेलम है जो शरीर  संतुलन बनाने और विभिन्न अवयवों की गतिविधियों को  स्वसंचालित करने की  भूमिका निभाता है । रिफ्लैक्स -एक्शन का नियंत्रण भी यही हिस्सा करता  है । मस्तिष्क का तीसरा भाग मेडुला ऑब्लांगेटा अंगों के स्वसंचालित प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है जिसमें सांस लेना, दिल का धड़कना ,रक्त संचार,मांसपेसियों का  फैलाना- सुकडना ,निद्रा,जागरण ,शरीर की कोशिकाओं का निर्माण-मृत्यु  आदि शामिल है । 

मस्तिष्क में भूरा  पदार्थ बुद्धि का और सफ़ेद पदार्थ क्रिया का संचालन करता है |  मस्तिष्क का दाहिना भाग शरीर के बायें  भाग और बायाँ भाग शरीर के दाहिने भाग का संचालन करता है ।

चेतन-अचेतन मस्तिष्क 

इसके अतिरिक्त मस्तिष्क का एक और विभाजन है भौतिक जानकारी का संग्रह करने वाला  चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी संस्थान को प्रभावित करने वाला  अचेतन मस्तिष्क ।  चेतन मस्तिष्क तर्क-वितर्क विश्लेषण, हिसाब-किताब सूचनाएं एकत्र करने जैसा काम करता है। अवचेतन मस्तिष्क सूक्ष्म मस्तिष्क है जहां हमारी सारे यादें, बचपन की यादें और इस जन्म की यादें दबी रहती हैं।शरीर के हार्मोन एवं रसायन को संतुलित या असंतुलित कर सकते हैं। चेतन मस्तिष्क की सीमाएं हैं अवचेतन मस्तिष्क असीमित है। चेतन भौतिक जगत और भौतिक शरीर तक ही काम कर सकता है। अवचेतन मस्तिष्क सूक्ष्म जगत में कहीं भी यात्रा कर सकता है।

वैज्ञानिकों  ने स्वीकार किया है की शरीर की क्षमता से चेतन मस्तिष्क की क्षमता 10 गुनी  अधिक होती है और चेतन मस्तिष्क की क्षमता से अचेतन मस्तिष्क की क्षमता 10 गुनी अधिक होती है । यानि शरीरिक क्षमता से अचेतन मस्तिष्क की क्षमता  1 00 गुनी अधिक होती है । अचेतन मस्तिष्क शरीर के ऑटोनॉमस  नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करता है । 

न्यूरॉन्स 

मस्तिष्क के क्रियाकलापों को  करने के लिए मस्तिष्क में 10  अरब नर्व सेल्स [न्यूरॉन्स] होते हैं ।ये न्यूरॉन्स आपस में नर्व फाइबर से जुड़े रहतें हैं जिनकी संख्या खरबों में होती है । नर्व सेल्स से सम्बंधित नाड़ी तन्तु समस्त शरीर में फैले हुए हैं  जिन्हें दो भागों में बांटा जाता है ,सेंसरी  नर्वज जिनका सम्बन्ध ज्ञानेन्द्रियों जैसे देखना, सुनना,चखना,सूंधने स्पर्श करना से है तो दूसरा भाग मोटर नर्वज का है जो कर्मेन्द्रियों जैसे चलना,खाना ,नहाना,पढ़ना आदि को नियंत्रित और संचालित करता है । 

मस्तिष्क-विद्युत 

मस्तिष्क केवल सोचने विचारने के ही काम नहीं आता है बल्कि उसमें पैदा होने वाली विद्युत पूरे शरीर का संचालन करती है    मस्तिष्क की कुछ   कोशिकाएं डायनमो का कार्य करती हैं वे ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन का रासायनिक ईंधन जलाकर  उसकी ऊर्जा को विद्युत में बदलती हैं ।लगभग 20  वाट की शक्ति वाली यह विद्युत धारा मस्तिष्क और  शरीर की अन्य कोशिकाओं का क्रिया संचालन करती है ।

मस्तिष्क तरंगें 





मस्तिष्क में उपस्थित न्यूरॉन  परिस्थितियों  के अनुसार अल्फा ,बीटा ,थीटा    एवं डेल्टा तरंगें उत्सर्जित करते रहते  हैं ।हमारे  ब्रेन में चार प्रकार की तरंगें होती हैं। जिस तरह हृदय की तरंगों को ECG  द्वारा मापा जाता है, उसी तरह ब्रेन की तरंगों को मापने का यंत्र है EEG  (इलेकट्रो-एंसफलोग्राफी  )। ब्रेन की चार तरह की तरंगें होती हैं जिन्हें हम बीटा, अल्फा, थीटा एवं डेल्टा कहते हैं। बीटा तरंगों में हमारा ब्रेन पूरी तरह सक्रिय रहता है जिसमें हमारी दिमागी तरंगें 13-50  साइकिल/सेकंड तक चल रही होती हैं। यह पूर्ण जागरूक अवस्था है। अल्फा तरंगों में हमारा चेतन मन थोड़ा शांत हो जाता है, इस समय हमारी दिमागी तरंगें 8 -12 साइकिल/सेकंड  चल रही होती हैं। इसे हम आधी जागी और आधी सोई हुई अवस्था कहते हैं यानी अर्धसुप्त अवस्था। थीटा तरंगों में हमारा चेतन मन पूरी तरह शांत होकर निद्रा में चला जाता है। इसमें हमारी दिमागी तरंगें 4 - 8  साइकिल/सेकंड  हो जाती हैं। इसे हम पूर्ण निद्रा की अवस्था कह सकते हैं। इस अवस्था में हम खूब सपने देखते हैं। इस अवस्था में हम अपने गहरे अवचेतन मन के नजदीक होते हैं। डेल्टा तरंगों में हम गहरी निद्रा या गहरी समाधि जैसी अवस्था में पहुंच जाते हैं जहां हमारे दिमाग की तरंगें पूरी तरह शांत होकर 1 - 4 के साइकिल/सेकंड  चल रही होती हैं। इस अवस्था में हम पूर्ण रूप से बेहोश होते हैं।हमारे दिमाग में विचार दो ही अवस्था में होते हैं। या तो बीटा लेवल में चिंता की सक्रिय अवस्था में या फिर थीटा लेवल में जहां हमारे विचार सपनों के रूप में बहने लग जाते हैं। अल्फा अवस्था ध्यानस्थ निर्विचार की अवस्था है। गहरी कल्पना में हम अल्फा अवस्था में होते हैं। आपने कई बार अनुभव किया होगा कि जब भी आप किसी गहरी कल्पना में डूब जाते हैं, तब कौन आया, कौन गया, आस-पास से क्या आवाजें आ रही हैं, आपको बिल्कुल पता नहीं चलता। जब आपको कोई जोर-जोर से पुकारता है या आपको हिलाता है, तब जाकर आप कहीं चौकते हैं और होश में आते हैं। इस अवस्था को एक प्रकार से अल्फा स्थिति कहते हैं क्योंकि इसमें आपका चेतन मस्तिष्क और सक्रिय होते हुए भी सक्रिय नहीं था, गुम था। अल्फा तरगें मस्तिष्क को विश्राम की स्थिति में ले जाती हैं । 

प्राणायाम और न्यूरॉन्स 

मानवीय बुद्धिमता का रहस्य इस बात पर निर्भर है की मस्तिष्क के न्यूरॉन्स कितने हैं और वे कितनी सघनता से एक दूसरे से जुड़े हुए  हैं । प्राणायाम के  प्रभाव से न्यूरॉन्स की सक्रियता और सक्षमता बढ़ती है और अधिक से अधिक  संख्या में न्यूरॉन , न्यूरॉन फाइबर द्वारा एक  दूसरे से सघनता  से सम्बंधित होते जाते हैं । इससे मस्तिष्कीय क्षमता को कई गुणा बढ़ाया जा सकता है । बुद्धिमता को असाधरण रूप से विकसित किया जा सकता है । 

प्राणायाम मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध 

मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध  कार्पस कैलोजम के माध्यम से आपस में जुड़े रहते हैं इसी  के कारण उनमें जानकारी और भावनाओं का आदान-प्रदान होता है ।   दोनों गोलार्द्धों की अपनी अपनी प्रबल क्षमता है | सामान्य  स्थितियों में  मस्तिष्क के दांये-बायें गोलार्द्धों में से एक भाग  अधिक सक्रिय और प्रबल रहता है और दूसरे भाग पर अपना वर्चस्व बनाये रखता है । 

बायां भाग बौद्धिक चिंतन को और दाहिना भाग भावना और संवेदना की वृद्धि करता है । मनुष्य का सर्वांगीण विकास तभी संभव है जब उसकी बुद्धि और भावनाओं के मध्य संतुलन और सामंजस्य हो । अक्सर एक भाग की सक्रियता और दूसरे भाग  की निष्क्रियता के चलते कई प्रकार के मनोविकार उत्पन्न  हो जाते हैं जैसे खंडित मानसिकता, मंदबुद्धि, अवसाद, चिंता,तनाव,खिन्नता , आत्महीनता ,आदि । 

प्राणायाम करने से दोनों गोलार्द्धों  के क्रिया-कलापों में संतुलन और सामंजस्य स्थापित होता है ।प्राणायाम मानसिक संतुलन को साधने और सुस्थिर रखने के लिए  रामबाण है । अनगिनत शरीरिक रोग मानसिक असंतुलन या मानसिक व्याधियों के चलते उत्पन्न होते हैं । जिन्हें साइको -सोमेटिक रोग कहते हैं ,शरीर के 80  % रोग इसी की श्रेणी में आते हैं । शरीर और मन का अविछिन्न सम्बन्ध है , प्राणायाम द्वारा मन संतुलित और स्वस्थ होता है तो शरीर के रोग भी नष्ट होने लग जाते हैं , सशक्त  मस्तिष्क शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत करता है और शरीर को निरोगी और तेजवी बनाता है ।  

प्राणायाम और चेतन-अचेतन मस्तिष्क 

ऑटोनॉमस  नर्वस सिस्टम को किसी भी प्रकार  प्रभावित करना काफी मुश्किल काम है लेकिन यह ऑटोनॉमस सिस्टम प्राण के प्रभाव को सहजता से स्वीकार कर लेता है । इस प्रकार प्राणायाम के द्वारा अचेतन मस्तिष्क की सुप्त शक्तियों को जागृत और नियंत्रित किया जा सकता है । ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टम के क्रियाकलापों में नई चेतना  आती है और उनके सभी कार्य नियमित एवं स्थाई रूप से होने लग जाते हैं । एंडोक्राइन ग्लण्ड्स सही प्रकार से कार्य करने लगते हैं और मानसिक और शरीरिक रोग दूर होने लगते हैं ।  

प्राणायाम और मस्तिष्क तरंगें 

 मानव मस्तिष्क में दाएं और बाएं  गोलार्द्धों से निकलने वाली तरंगें अनियमित होती हैं , प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क की तरंगों के क्रम में आपसी सामंजस्य होता जिसके फलस्वरूप नर्वस सिस्टम की क्रियाशीलता बढ़ती है और वह सुचारु रूप से कार्य करने लगता है । 

प्राणायाम के समय मस्तिष्क के दायें -बाएं दोनों भागों के मस्तिष्क तरंगों की सक्रियता अत्यधिक बढ़ जाती है और प्राणायाम के बाद भी यह  तरंगें कुछ समय तक  इसी  स्थिति में रहती हैं , जिसके चलते दोनों गोलार्द्धों के मध्य समंजस्य का पता चलता है ।इस प्रकार साधक अपनी मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास कर सकता है ।

EEG द्वारा प्राणायाम के बाद साधक में अल्फा तरंगों की बहुलता देखी  गई है  । प्राणायाम के बाद मस्तिष्क से अल्फा  तरंगें 8-12  साइकिल /सेकंड निकलती | 


सामान्तया मानसिक सक्रियता की स्थिति में मस्तिष्क  से बीटा  तरंगें निकलती हैं जिनकी फ्रीक्वेंसी 13 -50 साइकिल/सेकंड एवं इससे अधिक होती है । पूर्ण विश्राम युक्त जागृत अवस्था में अल्फा तरंगें 8-12  साइकिल /सेकंड से निकलती हैं  । ये अल्फा तरंगें  मस्तिष्क को शांत और शिथिल करती हैं और उसके  कार्यक्षमता को बढ़ाती हैं  जिसके फलस्वरूप ह्रदय गति कम होती है  और कार्डिओ -वैस्कुलर की कार्य क्षमता बढ़ती है । 

प्राणायाम और मस्तिष्क के क्रियाकलाप 

प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क और शरीर में ऑक्सीजन की खपत की मात्रा काफी कम हो जाती है जिसके परिणाम स्वरूप मेटाबॉलिक रेट भी काफी कम हो जाता है । इसके चलते शरीर की  कोशिकाएं गहरे विश्राम में चली जाती हैं , शरीर में ब्लड लैक्टेट का स्तर काफी कम हो जाता  है  इससे रोग दूर होने लगते हैं ।  

इस प्रकार हम देखते हैं की प्राणायाम शरीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा और वृद्धि के लिए एक उपयोगी विधान है । 

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