औरा :
मनुष्य के शरीर से सदैव एक प्रकार की प्राण विद्युत निकलती रहती है । इस बायो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विद्युत धारा का निर्माण सूक्ष्म शरीर के निर्माण में भाग लेने वाले न्यूट्रॉन कणों की तीब्र गति के कारण होता है । जड़ अणुओं की गति एक प्रकार की विद्युत उत्पन्न करती है । विद्युत का प्रवाह आपने चारो और एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है [इलेकट्रोड्यनमिक्स ]। इसी प्रकार शरीर की कोशिकाओं में उन धातुओं और रसायनों की समुचित मात्र रहती है जो उत्तेजित होकर विद्युत धारा का निर्माण करते हैं । कालांतर में यह विद्युत धारा अपने चारो और एक चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण करते जिसे औरा कहते हैं । वैज्ञानिक इसे बायो प्लाज्मा , कॉस्मिक एनर्जी, बायो इलेक्ट्रिसिटी ,वाइटल फ़ोर्स,लाइफ फील्ड , एनर्जी मैट्रिक्स आदि नामों सम्बोधित करते हैं । यह प्राण विद्युत स्थूल शरीर से कुछ इंचों से लेकर 3 फ़ीट की दूरी तक फैला रहता है । एनर्जी मैट्रिक्स को ही आभा मंडल या बोलचाल के रूप में औरा कहा जाता है ।
हमारी आँखों की देखने की एक निश्चित सीमा है , हमारे नेत्र केवल उन्हीं प्रकाश तरंगों को पकड़ पाते हैं जिनकी वेव लेंथ 380 -760 मिली माइक्रोन के बीच में होती है । इससे कम या अधिक वेव लेंथ के प्रति नेत्रों के ज्ञान तन्तु असंवेदनशील रहे हैं जिनके कारण हम उन्हें नहीं देख पाते हैं । औरा इसी सीमा के अंतर्गत आता है जिसे सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है । वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा इसका मापन और फोटोग्राफी अंकन संभव है इसी दिशा में में किर्लियन फोटग्राफी विकसित की गई जिसके द्वारा औरा का छायाचित्र लेना आसान हो गया है ।
व्यक्ति की स्थिति,स्वास्थ्य ,आयु,थकावट,मूड और भावनाओं के अनुरूप औरा परिवर्तित होता रहता है ।
हरेक व्यक्ति का औरा उसके विचार और व्यक्तित्व के अनुरूप होता है। विचारवान ,चरित्रवान ,प्रभावशाली और संकल्पवान व्यक्तियों के औरा चमकीले - दीप्तिमान होते हैं जबकि साधारण मनुष्य का औरा क्षीण और धुंधले होता हैं | व्यक्तित्व की औरा पर भारी छाप होती है ।
औरा केवल प्रकाश ही नहीं है उसमें ताप, विद्युत और चुम्बक के भी गुण हैं । यानि यह सशक्तों से प्रभावित होता है और दुर्बलों को प्रभावित करता है । औरा अपने निकटवर्ती क्षेत्र को,संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को , स्पर्श में आने वाले पदार्थों को सुनिश्चित रूप प्रभावित करता है ।
कई व्यक्तियों का साथ रुचिकर,सुखद , प्रेरणादायक प्रतीत होता है | या राह चलने वाले एक अपरिचित को देख कर अनुभव होता है की वह चिरपरिचित है और अनायास ही उससे आकर्षण हो जाता है इसका कारण दोनों के औरा की समानता होती है । जबकि कई बार किसी से अकारण घृणा, अरुचि, अप्रसन्नता ,खीज जैसी प्रतिक्रिया होती है और उनकी समीपता कष्टकारी लगती है इसका कारण दोनों के औरा की आपस में विषम प्रतिक्रिया होती है ।
आभामंडल स्थूल,सूक्ष्म और कारण शरीर के अणुओं के स्पंदन से निर्मित होता है । तीनों शरीर से निकलने वाला प्रकाश एक दूसरे से मिल जाते हैं और एक मिश्रित आभामंडल बनाते है ।
औरा को 5 भागों में विभाजित किया जाता है ।
हेल्थ औरा :
यह स्वास्थ्य औरा है जो रंगहीन होता है और शरीर के चारो और इंच के चौथाई भाग तक फैला रहता है । त्वचा से समकोण बनाती हुई अनेक नाड़ियां होती हैं ।इन नाड़ियों से थोड़े थोड़े समय पर सर्च लाइट की भाँती तेज़ प्रकाश की किरणें निकलती हैं जो शरीर से बाहर निकल कर तिरोहित हो जाती हैं । हेल्थ औरा में घनी घनी प्रकाश किरणों की समानांतर रेखाएं होती हैं । यह आवरण मुख्य रूप से भौतिक शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है यदि इस आवरण में थोड़ी भी असमान्यता आ जाए तो शरीर की प्राण-ऊर्जा बाहर निकल जाती है और व्यक्ति बीमार पड़ जाता है ।
वाइटल औरा :
यह औरा सूक्ष्म शरीर से विकरित होता है और इसे एक्टिव औरा भी कहा जाता है । सूक्ष्म शरीर से निकलते समय इसका रंग हल्का गुलाबी होता है और शरीर से बाहर आते ही यह नीले रंग का हो जाता है । यह औरा इच्छा शक्ति द्वारा नियंत्रित और प्रभावित होता है ।
कॉस्मिक औरा :
इस औरा में मनुष्य की भावनाएं और इच्छाएं प्रतिबिंबित होती हैं । यह अभिव्यक्ति या जीवन दर्पण का क्षेत्र है ।इस आभामंडल में मनुष्य की ईर्ष्या, द्वेष,काम,क्रोध और दूसरे मनोभावों के अनुसार औरा का रंग बदलता रहता है ।
औरा ऑफ़ करैक्टर या चरित्र का औरा :
यह औरा स्थाई लक्षणों वाला होता है । मनुष्य के वर्तमान और भूतकाल चरित्र के विशेषताओं को दर्शाता है ।
स्पिरिचुअल औरा या आध्यात्मिक औरा :
यह औरा शुभ प्रकाश किरणों से निर्मित होता है । इसमें पवित्रता का अंश विद्यमान रहता है ।साधू,संत,ऋषि,मुनि,साधक ,मास्टर, हीलर्स में यह औरा चमकीले दैदीप्यमान रूप में पाया जाता है ।
प्राणायाम और औरा
औरा जन्म जन्मांतरों के प्रयास ,अभ्यास और संस्कारों के आधार पर निर्मित होता है । मनुष्य आपने प्रयास और संकल्प द्वारा इसे बदल और बढ़ा सकता है । एक समान्य व्यक्ति इस बने बनाये औरा के अनुरूप अपने स्वभाव और कर्म को बनाये रखता है जबकि एक दृढ निश्चय का स्वामी अपने अभ्यास द्वारा इसमें भारी परिवर्तन ला सकता है ।
सामान्य रूप से सांस लेने से हम उतनी की प्राण शक्ति खींच पाते हैं उससे बस शरीर का काम चलता रहे । पर प्राणायाम से विधिवत सांस लेने से हम उचित मात्रा में प्राण शक्ति अपने में खींच सकते हैं और उसका शरीर में भण्डारण कर सकते हैं । शरीर में उपस्थित प्राण शक्ति ही हमारे औरा को सबलता प्रदान करती और हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है ।
वायु में प्राण तत्व प्रचुरता में विद्यमान रहते हैं जिसे हम साँसों द्वारा सरलता से ग्रहण कर सकते हैं ।प्राणायाम केवल सांस लेना या छोड़ना भर ही नहीं है बल्कि अपने दृढ संकल्प द्वारा वायु में उपस्थित प्राण तत्व को धारण करना उसका भंडारण करना और उसका सम्यक वितरण करना होता है ।
प्राणायाम द्वारा औरा को उभारा और मजबूत किया जा सकता है । इसके इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रभाव को बढ़ा कर मनुष्य ही नहीं वृक्ष-वनस्पति और जड़ पदार्थों पर भी प्रभाव डाला जा सकता है । एकाग्रता और संकल्प के बल पर आपने औरा के प्रभाव से हज़ारों मील दूर बैठे व्यक्ति को प्रभावित किया जा सकता है ।
मनुष्य अपनी अज्ञानता के चलते प्राण का अधिकांश भाग व्यर्थ के क्रियाकलापों में , व्यर्थ की कल्पनाओं में , व्यर्थ के चिन्तन में , तनाव,अनिद्रा,चिंता में व्यय कर देता है | प्राण-तत्व के क्षरण से प्राण तत्व की न्यूनता हो जाती है जिसके चलते कई प्रकार के मानसिक और शारीरिक विकार जन्म लेते हैं , और मनुष्य समय से पहले ही काल का ग्रास बन जाता है ।
प्राणायाम में प्राण का व्यवस्थित विकास किया जाता है । प्राण का अनावश्यक क्षरण रोका जाता है , क्षरण की क्षति पूर्ति की जाती है और प्राण को अधिकाधिक मात्रा में खींचा जाता है ।
विचार और भावनाओं के सतत प्रवाह से स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर के सूक्ष्म अणुओं में स्पंदन होता है और उसी से आभामंडल का निर्माण होता है । औरा का प्रभाव क्षेत्र प्राणायाम के माध्यम से दूर दूर तक फैलाया जा सकता है जिससे वातावरण को प्रभावित किया जा सकता है । कहते हैं महावीर और गौतम बुद्ध के आभामंडल का प्रभाव 100 मील तक रहता था जिसके कारण उनके प्रभाव में आये हुए विपरीत स्वभाव के प्राणी जैसे सिंह और हिरण पास पास बैठे रहते थे ।
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