ज्योतिष में आयु विचार के लिए आयु का निम्न वर्गीकरण किया गया है
बालारिष्ट --8 वर्ष तक
अल्पायु ---8 -32 वर्ष तक
मध्यायु ---32 -64 वर्ष तक
दीर्घायु
---64 -100 वर्ष तक
आयु का विचार करने के प्रमुख कारक
- लग्न और चन्द्र लग्न
- लग्नेश और अष्टमेश
- अष्टम भाव में स्थित ग्रह
- अष्टम भाव पर दृष्टि वाले ग्रह
- मारक ग्रह
- मारकेश [ दूसरा और सप्तम भाव ]
- होरा लग्न
- शनि की लग्न और चन्द्रमा से स्थिति
दीर्घायु के कुछ प्रमुख योग
लग्न /लग्नेश द्वारा
- लग्नेश बलवान हो कर केंद्र में स्थित हो |
- लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव का स्वामी जिस राशि में स्थित हो उस राशि का स्वामी और लग्नेश केंद्र में स्थित हो तो लम्बी आयु होती है ।
- लग्नेश केंद्र में बैठा हो और शुक्र या गुरु से युक्त या दृष्ट हो ।
- लग्न द्विस्वभाव राशि का हो और लग्नेश उच्च राशि/मूलत्रिकोण राशि का केंद्र में स्थित हो तो लम्बी आयु होती है ।
- लग्न द्विस्वभाव राशि का हो और लग्नेश जिस स्थान में हो उससे केंद्र में दो पापग्रह हो तो दीर्घायु योग होता है ।
- लग्न द्विस्वभाव राशि हो और लग्नेश केंद्र /त्रिकोण में स्थित हो ।
- चर लग्न में चन्द्रमा चर राशि में हो दीर्घायु योग बनता है ।
- मेष लग्न में शनि मकर राशि में ,मंगल तुला राशि में और चन्द्रमा कुम्भ राशि में हो ।
- वृष राशि के लग्न में शुक्र बैठा हो , गुरु केंद्र में हो और अन्य ग्रह 3 /6 /11 भाव में हो तो रसायन या मन्त्र के प्रयोग से लम्बी आयु पाता है ।
- कर्क लग्न में चन्द्रमा हो और शेष ग्रह शुभ राशि में बैठे हों ।
- कर्क लग्न में गुरु और चन्द्रमा हो ,शुक्र केंद्र में हो और 8 वां भाव खाली हो जातक की लम्बी आयु होती है ।
- कर्क लग्न में गुरु और चन्द्रमा हो ,शुक्र और बुद्ध केंद्र में हो और बाँकी ग्रह 3 /6 /11 वें भाव में हों ।
- कर्क लग्न हो ,शनि तुला राशि में हो गुरु मकर राशि में हो ,चन्द्रमा वृष राशि में हो तो जातक रसायन या मन्त्रों के प्रभाव से दीर्घजीवी होता है ।
- तुला लग्न में शुक्र बैठा हो , गुरु एवं मंगल उच्च के हों और जन्म अश्वनी नक्षत्र का हो ।
- द्विस्वभाव लग्न में चन्द्रमा स्थिर राशि में हो तो दीर्घायु योग बनता है ।
- लग्न स्थिर राशि तथा चन्द्रमा द्विस्वभाव राशि में हो भी दीर्घायु योग बनता है ।
- लग्नेश केंद्र में ,पाप ग्रह 3 /6 /11 वें भाव में हों या दशमेश उच्च हो तो भी लम्बी आयु होती है ।
- गुरु लग्न में हो और चन्द्रमा,शुक्र और मंगल तीनों परमोच्च हो तो लम्बी आयु होती है ।
- लग्न में स्वगृही गुरु बैठा हो ,शुक्र केंद्र में हो और मिथुन राशि में कोई ग्रह ना हो तो जातक इन्द्रतुल्य एवं रसायन के प्रयोग से दीर्घजीवी होता है ।
अष्टम भाव /अष्टमेश
- जन्म लग्न से अष्टमेश अपनी उच्च राशि में हो तो लम्बी आयु होती है ।
- अष्टमेश अष्टम में अपनी राशि में हो |
- अष्टमेश स्वगृही हो और अष्टमेश स्थान से केंद्र या त्रिकोण में कोई शुभ ग्रह हो ।
- अष्टमेश जिस स्थान पर हो उस स्थान का स्वामी और लग्नेश केंद्र में स्थित हो |
- अष्टमेश 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो और अष्टमेश जिस स्थान पर हो उसका स्वामी लग्न से अष्टम बैठा हो ।
शनि
- शनि अष्टम में हो और अष्टमेश स्वराशि में हो |
- शनि या अष्टमेश किसी उच्च ग्रह के साथ या दृष्ट हों ।
- लग्नेश या अष्टमेश शनि पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो |
- शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो लम्बी आयु होती है ।
- शनि केंद्र में स्थित हो तो जातक कम से कम 75 साल तो जीता ही है ।
- शनि या अष्टमेश किसी उच्च ग्रह से युक्त या दृष्ट हों ।
- अष्टमेश अपनी राशि में हो शनि की भी मित्र राशि हो तथा शनि अष्टम भाव से त्रिकोण [8 ,12 ,4 भाव ] में हो |
- कोई एक ग्रह उच्च राशि में बैठा हो और उसके साथ अष्टमेश और शनि हो |
- शनि लग्नेश या अष्टमेश हो और उसके साथ एक या अधिक शुभ ग्रह हो तो जातक दीर्घजीवी होता है ।
- गुरु या शुक्र में से कोई भी केंद्र में हो और शनि 5 /6 /8 /11 वें भाव में हो तो जातक दीर्घायु होता है |
अन्य योग
- गुरु और शुक्र दोनों केंद्रवर्ती हों तो लम्बी आयु का योग बनता है ।
- सभी ग्रह 3 या 8 वें भाव में स्थित हो तो जातक लम्बी आयु पाता है ।
- पांच ग्रह मिलकर 5 /9 वें भाव में हो और उनमें से कोई अष्टमेश न हो ।
- केंद्र स्थान शुभ ग्रहों से युक्त हो , लग्नेश शुभ ग्रह के साथ बैठा हो और गुरु द्वारा देखा जाता हो तो दीर्घायु योग बनता है ।
- तीन ग्रह उच्च हों और उनमें किसी के साथ लग्नेश एवं अष्टमेश हों और पाप युक्त /दृष्ट ना हों ।
- चन्द्रमा 5 वें भाव में गुरु 9 वें भाव में और मंगल 10 वें भाव में हो तो लम्बी आयु होती है ।
- 6 ठें और 12 वें भाव के स्वामी लग्न में हों और लग्नेश और दशमेश केंद्र में हो |
- चन्द्रमा उच्च ,मित्र राशि अथवा मूल त्रिकोण राशि में स्थित हो और गुरु या शुक्र से दृष्ट हो ।
- सभी ग्रह 3 ,4 ,8 ,9 वें भाव में हों तो दीर्घायु योग बनता है ।
- तीन ग्रह उंच्च राशि में हों और लग्नेश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में स्थित हो तथा सप्तम भाव पाप ग्रह से रहित हो|
- सप्तम भाव में तीन ग्रह हों या तीन ग्रह उंच्च राशि के मित्र स्थान के तथा अपने ही वर्ग में हो और लग्नेश बलवान हो तो लम्बी आयु होती है ।
- लग्नेश बली हो और पाप ग्रह 3 ,6 ,11 भाव में स्थित हो और शुभ ग्रह केंद्र 1 ,4 ,7 ,10 भाव या त्रिकोण 5 ,9 भाव में स्थित हो |
- लग्नेश ,अष्टमेश और दशमेश लग्न से केंद्र / त्रिकोण में हों और लग्न से 6 ठे , 8 वें अथवा 11 वें स्थान पर शनि बैठा हो ,लेकिन शनि का इन तीनों ग्रहों से कोई सम्बन्ध नहीं चाहिए तो जातक दीर्घायु होता है ।
- शुभ ग्रह 6 ,7 ,8 वें भाव में हों और पाप ग्रह 3 ,6,11 वें भाव में हो |
- यदि गुरु ,बुध और शुक्र केंद्र त्रिकोण में हों और पापग्रहों से युक्त या दृश्य न हों तो जातक दीर्घायु होता है ।
- सूर्य ,मंगल और शनि की युति 3 /6 /11 वें भाव में हो और पाप ग्रह से दृष्ट/युक्त ने हो तो जातक लम्बी आयु पाता है ।
- बुद्ध ,गुरु और शुक्र 5 /9 वें भाव में हो शनि उच्च हो पाप दृष्ट/युक्त न हो तो लम्बी आयु होती है ।
- 5 /8 /9 वें भाव में कोई पाप ग्रह न हों और केंद्र में भी कोई शुभ ग्रह न हो तो जातक देव तुल्य होता हुआ दीर्घजीवी होता है |
- गुरु और चन्द्रमा कर्क राशि में हो , बुद्ध और शुक्र केंद्र में हों एवं अन्य ग्रह 3 /6 /11वें भाव में हों तो जातक दीर्घायु होता है ।
- शुक्र,मंगल शनि और राहु 3 /6 /11 वें भाव में हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक दीर्घायु होता है ।
द्वारा
गीता झा
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