Thursday, June 4, 2015

पीलिया या जॉन्डिस



पीलिया रोग क्या है ?

लीवर की कोशिकाओं में बाइल या पित्त का निर्माण होता है , इस बाइल  का भण्डारण पित्ताशय या  गॉलब्लेडर में होता है । जब आहार स्टमक से गुजरता हुआ ग्रहणी [डयूडेनल ] में प्रवेश करता है तो उसी  समय पित्त भी गॉलब्लेडर  से निकल कर पित्त प्रणाली द्वारा   ग्रहणी में पहुंचकर आहार से मिलता है और उसके पाचन  में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । परन्तु किसी कारण वश पित्त पित्ताशय से निकल कर भोजन में न मिलकर सीधे रक्त में मिल कर रक्त परिसंचरण के द्वारा समस्त शरीर में फ़ैल जाता है , तो पित्त में मौज़ूद  बिलिरुबिन नमक रंजक पदार्थ सूक्ष्म रक्त वाहिनियों से निकल कर त्वचा,श्लेष्मिक कला तथा आँखों की कंजेक्टाइवा आदि में फ़ैल जाता है । इससे शरीर की त्वचा , नाख़ून, आँखें तालु ,यूरिन आदि पीले दिखने लग जाते हैं । रक्त में जैसे जैसे बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ती है किडनी उसे छान  कर रक्त को साफ़ करने में असमर्थ हो जाते हैं  तो यूरिन का रंग गाढ़ा पीला होने लग जाता है ।

शरीर का पीलापन इस रोग का प्रमुख लक्षण है इसलिए इसे हिंदी में पीलिया कहा जाता है | संस्कृत में इस रोग को कमला अंग्रेजी में जॉन्डिस या हिपेटाइटिस और यूनानी में यरक़ान कहा जाता है ।

पीलिया रोग के प्रमुख कारण

  • लीवर की कोशिकाओं की विकृति से उत्पन्न होने वाला पीलिया [हिपेटो सेल्यूलर जॉन्डिस]
  • पित्त के अवरुद्ध होने से होने वाला पीलिया [कोलिस्टेटिक जॉन्डिस ]
  • रक्त के क्षय से होने वाला पीलिया [हिमोलायटिक  जॉन्डिस ]



लीवर कोशिकाओं की विकृति से होने वाला पीलिया

लीवर की कोशिकाओं की क्षति या उसमे सूजन आ जाने से के कारण जब लीवर बिलिरुबिन को पित्त में मिश्रित नहीं कर पाता है तो यह बिलिरुबिन सीधे ही रक्त में मिल जाता है जिससे शरीर में पीलिया के लक्षण प्रगट होने लग जाते हैं ।

 मुख्यतः दो कारणों से लीवर की कोशिकाओं में विकृति उत्पन्न होती है

  • विषाणु से होने वाला पीलिया [हिपेटाइटिस ]
  • दवाइयों और विषाक्त पदार्थों से होने वाला पीलिया



विषाणु से होने वाला पीलिया

भारत में पीलिया का सबसे प्रमुख कारण  विषाणु - संक्रमण से लीवर  की कोशिकाओं  का क्षति ग्रस्त होना है । पीलिया उत्पन्न करने वाले विषाणु परिवार  के सात सदस्य हैं हिपेटाइटिस ए ,बी, सी ,डी ,इ ,एफ और जी ।

पीलिया उत्पन्न करने वाले कारक विषाणु दूषित खान-पान के माध्यम से आहार के साथ आंत्र संस्थान में पहुंच जाते हैं फिर वहां से रक्त संचरण के द्वारा लीवर में पहुँच जाते हैं । आहार के अलावा ये विषाणु संक्रमित व्यक्ति से ब्लड ट्रांसफ्यूजन ब्लड प्रोडक्ट्स ट्रांसफ्यूजन ,इन्फेक्टेड सिरिंज के प्रयोग  से भी लीवर  में पहुँच कर उसे  प्रभावित कर सकते  हैं । कई बार संक्रमित व्यक्ति से सेक्स करने पर भी पीलिया के विषाणु का संक्रमण हो सकता है ।

पीलिया के विषाणु लीवर में पहुँच कर लीवर की गतिविधियों में अवरोध उत्पन्न करते हैं जिससे उसमें सूजन आ जाती है और उसकी मेटाबोलिक प्रक्रिया बाधित हो जाती है । लीवर   के रक्त संचरण में में बाधा पहुँचने से बिलिरुबिन की मेटाबोलिक क्रिया बिगड़ जाती है और रक्त में उसकी मात्रा बढ़ने लग जाती है । पीलिया के ये विषाणु लिवर को जितना नुक्सान पहुंचाते हैं उसी अनुपात में बिलीरुबिन की मेटाबोलिक प्रक्रिया बिगड़ती है और रक्त में उसकी मात्रा बढ़ती है ।

अधिकतर मामलों में ख़ास कर बच्चों में पीलिया रोग का प्रमुख कारण हिपेटाइटस ए विषाणु है जो दूषित आनाज ,पानी,दूध, फल और सब्जियों के माध्यम  से पेट में पहुंचता है । वर्षा ऋतु के आस पास इस विषाणु से  संक्रमित होने के जयादा आसार होते हैं । हिपेटाइटस ए की तरह हिपेटाइटस इ भी दूषित भोजन और पानी से फैलता है लेकिन यह हिपेटाइटस ए की तरह खरतनाक नहीं होता है और न ही इससे पीलिया के तीव्र लक्षण पैदा होते हैं ।

हिपेटाइटस  बी  विषाणु अधिक घातक होता है  और यह  संक्रमित व्यक्ति के रक्त,रक्त प्रोडक्ट्स,इस्तमाल की गई  सिरिंज ,लार,आंसू,पसीने,और सेक्स फ्लुइड्स से फैलता है । यह विषाणु लम्बे समय के लिए लिवर को विकृत रख सकता है और लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर जैसी व्याधियों को भी पैदा कर सकता है । नवजात बच्चों में हिपेटाइटस बी के संक्रमण का अधिक खतरा  रहता है ।

हिपेटाइटस सी हिपेटाइटस बी की तरह रक्त,बॉडी फ्लुइड्स और इंजेक्शन से फैलता है और यह विषाणु भी गंभीर और घातक रोग उत्पन्न करता है ।

हिपेटाइटस डी विषाणु केवल हिपेटाइटस बी से संक्रमित हुए या हो चुके व्यक्ति हो ही प्रभावित करते हैं । हिपेटाइटस डी पीलिया फैलाने के लिए हिपेटाइटस बी के सहयोगी  की भूमिका निभाते हैं ।

Hepatitis प्रकार के पीलिया मेडिकल जॉन्डिस के नाम से भी जाने जाते हैं ।

विषाणु के कारण होने वाले पीलिया के लक्षण

यह पीलिया विषाणु के कारण होता है अतः यह एक व्यक्ति से दूसरे को हो सकता है यानि यह एक संक्रामक रोग है । विषाणु जनित पीलिया का प्रभाव संक्रमण के 3 से 4 हफ्ते बाद तक हो सकता है । एक मनुष्य की औसत आयु में यह 2 से 3 बार तक हो सकता है ,किन्तु 50 वर्ष की आयु के बाद यह बहुत कम देखने को मिलता है ।

सामान्यतः विषाणु जनित पीलिया की तीन अवस्थाएं देखी जाती हैं
 
प्रथम अवस्था

रोग के प्रारंभ में रोगी को मंद मंद ज्वर रहता है । भोजन के प्रति रूचि बिल्कुल  कम हो जाती है की भोजन को देखने का मन ही नहीं करता है या भोजन को देखते ही मतली आने लगती है । सुस्ती बनी रहती है किसी काम को करने का मन नहीं करता है और सर दर्द कर सकता है । शुरू के पहले हफ्ते में पीलिया के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं लेकिन दूसरा हफ्ता शुरू होते ही रोगी को यूरिन गहरे पीले रंग का आना शुरू हो जाता है । इस अवस्था तक रोगी का वजन 2 -3 किलो कम हो सकता है ।  पीलिया की प्रारंभिक अवस्था में  भूख न लगना , मध्यम ज्वर रहना , लीवर  के स्थान भारीपन लगना या लीवर के स्थान पर अन्य शरीर की अपेक्षा अधिक गर्म लगना  । इस अवस्था में बिलारुबिन की मात्रा परीक्षण  में बड़ी हुई मिलती है ।  विषाणु जनित पीलिया में लीवर  के स्थान पर दर्द नहीं होता है बल्कि भारीपन महसूस होता है ।

दूसरी अवस्था

इस समय पीलिया के लक्षण पुरे स्पष्ट हो जाते हैं  रोगी के अलावा  दूसरे लोग भी इन लक्षणों को देख सकते हैं । यूरिन के अतिरिक्त आँखों में भी पीलापन दिखाई देता है । मुंह के अंदर  तालु भी पीला  दिखने लगता है । त्वचा और नाखुन   भी  पीले पड़ने लगते हैं । ऐसे लक्षण रोगी में 3 हफ्ते तक बढ़ते हैं फिर उनमें कमी आने लग जाती है । पीलिया के लक्षण पूरी तरह से स्पष्ट होते ही ज्वर अपने आप ही कम हो जाता है ,भोजन में रूचि पुनः बढ़ने लगती है । ज्वर समान्य होने और पुनः भूख लगना से पीलिया  मुक्ति के संकेत मिलने लगते हैं ।  यध्यपि इस समय त्वचा का रंग पीला ही रहता है लेकिन लीवर अपना कार्य समान्य रूप से करने की पूरी कोशिश करता है ।

तीसरी अवस्था

रोगी काफी हद तक समान्य होने लग जाता है । और उसे सब कुछ खाने की इच्छा होने लगती है । उसका खोया वजन लौट आता है । पीलिया के लक्षण धीरे- धीरे समाप्त होने लगते हैं । अधिकतर रोगी  डेढ़ -दो महीने में पूर्ण स्वस्थ हो जाते है । लेकिन यदि पीलिया जटिल हो जाए तो मौत भी हो सकती है । विशेषकर गर्भवती औरतों को इससे सावधान रहना चाहिए । जटिल पीलिया में हिपेटिक -कोमा हो सकता है , रोगी की चेतना कम  होने लग जाती है ,उसका  स्वाभाव अत्यंत चिड़चिड़ा होने लग जाता  है और शरीर में या हाथों  में कम्पन होने लग जाता है |यह सब आपातकालीन स्थिति हैं  जिनसे सावधान रहना  चाहिए ।

रोग के डाइग्नोस के लिए कुछ टेस्ट कराये जाते हैं जैसे यूरिन और रक्त में बिलीरुबिन की मात्र ज्ञात करना, रक्त में SGOT,AGPT,एल्कलाइन फॉस्फेट की मात्रा  ज्ञात करना ।

औषधि और विषाक्त पदार्थ जनित पीलिया

अधिकतर औषधियां लीवर के ऊपर कुप्रभाव डालती ही हैं । दवाइयों के लम्बे सेवन से लीवर के कार्य करने की क्षमता घटने लगती है । लीवर के कम कार्य करने से कई तरह के विषाक्त हानिकारक और व्यर्थ तत्व रक्त में एकत्रित होने लगते हैं जिनमें बिलीरुबिन भी एक है । देखा गया है टीबी की दवाइयों  ,पीड़ाहारी  और शांति दायक दवाइयों के लम्बे सेवन से लीवर काफी प्रभावित होता  है ।

शराब ,ईथर ,आर्सेनिक [संखिया ]  ,tetrachloroethene, chloramphenicol,phosphorus,TNT (trinitrotoluol)  आदि जहरीले रसायनों से भी पीलिया के लक्षण दिखाई पड़  सकते हैं । 

औषधि और विषाक्त पदार्थ जनित पीलिया के लक्षण

पीलिया के इस प्रकार में लीवर और  गॉल ब्लैडर से कम मात्रा में ही सही लेकिन  बाइल  duodenum तक अवश्य पहुँच जाता  है अतः रोगी के stool  के रंग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता है । पीलिया  के अन्य लक्षण भी तीव्र नहीं होते हैं केवल रोगी की भूख  इस रोग में भी काफी कम  रह जाती है । रोगी में कमजोरी ,आलस्य ,थकावट और एनीमिया के लक्षण हो सकते हैं । औषधियों का सेवन बंद करने के 2 -3  दिन बाद ही रोगी को काफी राहत मिलती  है ।

अवरोध जनित पीलिया

  आहार में अधिक भारी और  गरिष्ठ  भोजन करने से शरीर में वसा का पूर्ण रूप से चयापचय नहीं हो पाता है जिसके कारण रक्त में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा  बढ़ने लगती है  । अतिरिक्त  कॉलेस्ट्रोल  के जमाव के कारण  रक्त धमनियों की अंदरुनी चौड़ाई  घटने लगती है और उनमें अवरोध उत्पन्न होने लगता है । पित्त में पहले ही काफी मात्रा में कॉलेस्ट्रोल रहता है उसकी और अधिक मात्रा से पित्त गॉल ब्लैडर में खुश्क होकर कभी कभी पथरी का रूप ले लेता है  । बाइल जब लीवर  से निकल कर गॉल ब्लड्डेर में जाता है तो उसके  जल का काफी भाग अवशोषित हो जाता  है जिसके कारण गॉल ब्लैडर  का पित्त या बाइल  काफी गाढ़ा हो जाता है  और कभी कभी यह गाढ़ा बाइल पथरी का रूप भी ले लेता है । गॉल ब्लैडर में कोई संक्रमण भी हो तो भी वहां पथरियां बन जाती हैं ।

अवरोध जनित पीलिया में लीवर की कोशिकाएं तो अपना कार्य सुचारू रूप से करती हैं लेकिन गॉल ब्लैडर में किसी अवरोध के कारण गॉल ब्लैडर  का  मूंह पूर्ण या आंशिक रूप से बंद  हो जाता है जिसके  कारण  पित्त duodenum तक नहीं पहुँच पाता  है और सीधे रक्त में जाकर मिलने है ।रक्त में बाइल के बढ़ने से पीलिया रोग हो जाता  है । इसे   ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस कहा जाता है अधिकतर मामलों में ऑपेरशन के द्वारा इस अवरोध को ठीक किया जाता है इसलिए इसे सर्जिकल  जॉन्डिस भी कहते हैं । खुश्क बाइल के अलावा राउंड वर्म  और किसी बाहरी वस्तु  द्वारा भी गॉल ब्लैडर का द्वार अवरुद्ध हो सकता है । साथ  ही pancreas ,स्टमक ,किडनी ,लिवर या गॉल ब्लैडर में शोथ ,ट्यूमर या कैंसर के  कारण भी पित्त प्रणाली की नलिका अवरुद्ध हो सकती है ।

अवरोध जनित पीलिया के लक्षण

पित्त नलिका में अवरोध के कारण पित्त या बिलुरुबिन आंत में पहुंच कर स्टूल में नहीं मिल पाता  हैं जिसे कारण स्टूल का रंग सफ़ेद, सलेटी या राख के रंग जैसा होता है । इसलिए इस  रोग को क्ले कलर जॉन्डिस भी कहा जाता है । इसमें यूरिन ,स्किन और आँखों का रंग पीला होता जाता है । पित्त या बाइल stool  में नहीं मिलने से रोगी को कांस्टीपेशन की शिकायत रहती है । वसा का समुचित रूप से पाचन नहीं हो पाता  है । जिसके  कारण रक्त में बिलुरुबिन के साथ ही कोलेस्ट्रोल की मात्रा भी बढ़ती चली जाती है । रोगी एनीमिया का शिकार हो सकता है । लीवर का साइज सामान्य से थोड़ा बहुत बढ़ सकता है और शरीर में खास कर रात के समय खुजली हो सकती है ।

रक्त क्षय जनित पीलिया

अत्यधिक मात्रा में रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने के कारण  रक्त-क्षय या हिमोलेटिक पीलिया होता है । डॉक्टर्स जॉन्डिस के नाम से जाना जाने वाला यह पीलिया अक्सर मलेरिया परजीवी, कालाजार ,streptococcus pyogenes संक्रमण , भीषण एनीमिया , गलत ग्रुप  के ब्लड को चढ़ा देने से ,विषैले पदार्थों के रक्त में मिलने से  ,विषैले जीवों के काटने से या जन्म-जात  विकारों के कारण होता है  | शरीर में  रक्त की लाल कोशिकाओं  का अधिक संख्या में नाश होने लग जाता है । जिसके  कारण  अधिक मात्रा मे हीमोग्लोबिन स्वतंत्र होने लग जाता  है | इसी  हीमोग्लोबिन के उप-पाचन से लीवर में बाइल या बिलुरुबिन का निर्माण होता है जो ऐसी स्थिति में काफी मात्रा में हो जाता है । बढे हुए  बिलुरुबिन की मात्रा आँतों के अतिरिक्त रक्त में भी पहुंच जाती है । किडनी सिमित मात्रा में ही बिलुरुबिन का उत्सर्जन कर पाते हैं अतः रक्त में इसकी मात्रा बढ़ने से पीलिया के लक्षण प्रगट होने लग जाते हैं ।

यह पीलिया अक्सर नवजात शिशुओं में जन्म के प्रथम हफ्ते में देखने को मिलता है । क्योंकि जन्म के उपरांत जैसे ही शिशु की प्रणालियां आपने आप स्वतंत्र कार्य करने लगती हैं तब काफी संख्या में RBC नष्ट होते हैं और हीमोग्लोबिन का भी ऑक्सीजिनेशन होता है फलस्वरूप पित्त का निर्माण अधिक मात्रा  में होने लग जाता है । शिशु की किडनी रक्त के बिलुरुबिन को छानने में अधिक सक्षम नहीं होती है जिसके कारण पीलिया के लक्षण उभरने लगते हैं ।अधिकतर  नवजात में पीलिया के लक्षण जन्म से दूसरे दिन से लेकर पांचवे या दसवें  दिन तक रह सकते हैं ।

रक्त क्षय जनित पीलिया के लक्षण 

यह रोग कभी कभी अचानक तीव्र रूप से होता है कभी कभी धीरे धीरे शुरू होता है । अचानक पीलिया होने से रोगी का पूरा शरीर पीला हो जाता है यूरिन भी गाढ़े
पीले रंग का आने लगता है । रोगी की प्यास एकदम बढ़ जाती है और उसका पाचन-तंत्र अस्त व्यस्त हो जाता है । अक्सर कब्ज रहती है और मुंह का स्वाद बिगाड़ा हुआ रहता है । कभी कभी दस्त भी लग सकती है ।  रोगी को बैचनी और कमजोरी लगी रहती है । पुरे शरीर में खास कर रात के समय खुजली होती है । कभी कभी शरीर पर छोटी छोटी फ़ुन्सियाँ निकल आती हैं । सर दर्द ,बदन दर्द रहता है । रोगी को सभी वस्तुएं पीले रंग की दिखाई देती है । रोगी का पसीना और थूक पीले रंग का हो सकता है ।  रोगी की भूख एकदम कम हो जाती है गरिष्ट और मसालेदार भोजन को देख कर ही उसे मिलती आने लग जाती है

पीलिया रोग का उपचार

  • रोग के प्रारम्भ में ही सादे  भोजन के साथ साथ  निम्बू-पानी,फलों सब्जियों का रस ,गन्ने का रस ,अनार का रस  ,ग्लूकोज़ ,मौसमी का रस,फैटफ्री दही ,लस्सी,छास इत्यादि लेना चाहिएसभी प्रकार के पीलिया में  रोगी को भारी, गरिष्ट , तले  ,भुने अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन ,शराब,अनावश्यक दवाइयों का सेवन   एकदम बंद कर देना चाहिए ।
  •  विषाणु जनित पीलिया में interferon नामक एंजाइम की मदद से विषाणुओं के विकास को काफी हद तक रोका जाता है ।
  • वैक्सीन इंजेक्शन को संक्रमण से पहले लगा कर पीलिया होने से रोक जा सकता है । hepatitis A ,B के प्रतिरोधी इंजेक्शन उपलब्ध हैं । hepatitis B  का टीका  लगाने से hepatitis D  से भी बचाव होता है ।
  • विषाणु  जनित पीलिया से बचने का सबसे अच्छा उपाय यह है की दूषित भोजन जल या संक्रमित व्यक्ति के सानिध्य  से बचा जाए ।
  • अवरोध जनित पीलिया में सर्जरी की जरुरत पड़ती है ।
  • इसके साथ  ही रोगी को मांस ,मछली अंडे का सेवन नहीं करना चाहिए । दालों और प्रोटीन की मात्रा भोजन  में कम होनी चाहिए ।
  • आहार में पॉलिश  रहित चावल की खिचड़ी , दलिया  ,दही ,  हरी सब्जी ,मूली ,टमाटर,खीरे  का अधिक प्रयोग  करना चाहिए ।
  • मूली के रस मे इतनी ताकत होती है कि वह खून और लीवर से अत्यधिक बिलिरूबीन को निकाल सकता है । रोगी को सलाद में  मूली  जरूर खानी चाहिए ।
  • धनिया के बीज को रातभर पानी में भिगो दीजिये और फिर उसे सुबह पी लीजिये। धनिया के बीज वाले पानी को पीने से लीवर से गंदगी साफ होती है।
  • टमाटर में विटामिन सी पाया जाता है, यह लाइकोपीन में रिच होता है, जो कि एक प्रभावशाली एंटीऑक्सीडेंट हेाता है। इसलिये टमाटर का सलाद या रस लीवर को स्वस्थ बनाने में लाभदायक होता है।टमाटर के रस /सलाद में काला नमक और कुटी हुई काली मिर्च डाल  कर खाने से पीलिया शीघ्र ठीक हो जाता है । 
  • तुलसी पत्ती   एक प्राकृतिक उपाय है जिससे  लीवर डिटॉक्सिफाइ होता है सुबह सुबह खाली पेट 4-5 तुलसी की पत्तियां सादे पानी के साथ लेनी चाहिए
  • नींबू का रस नींबू के रस को पानी में निचोड़ कर पीने से पेट साफ होता है। इसे रोज  सुबह पीना लाभदायक  होता है।
  • पीलिया से से पीड़ित होने पर गन्ने का रस जरुर पीना चाहिये। इससे पीलिया को ठीक होने में तुरंत सहायता मिलती है।
  • दही आसानी से पच जाती है और यह पेट को प्रोबायोटिक प्रदान करती है। यह एक लाभकारी बैक्टीरिया होता है जो जॉन्डिस से लड़ने में सहायक होता है।
  • रोगी लीवर वाले स्थान को गर्म-ठन्डे पानी के तौलिये के ३ मिनट के अंतराल पर  बदल बदल कर कम्प्रेशन दे । लीवर वाले स्थान पर हलके हाथों से मालिश करें । इससे लीवर की सूजन दूर होती है और विजातीय तत्व बाहर निकलते हैं । ऐसे में एनिमा देना भी लाभकारी है ।
  • कहा जाता है पीलिया में जुखाम होते ही पीलिया रोग ठीक  हो जाता है ।असल में पीलिया में जुखाम कदाचित ही होता है अतः रोगी को ठंडी का उपचार दे सकते हैं ।
  • पूर्ण विश्राम करने से पीलिया रोग जल्दी ठीक हो जाता है । 


द्वारा
गीता झा

1 comment:

  1. Remove jaundice naturally and safely with the use of herbal remedies. It delivers long lasting effects and prevents jaundice from coming back again.

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