अहं ब्रह्मास्मि | वेदांत के
अनुसार जीव और ईश्वर में भेद नहीं है । परन्तु
जब हम जीव में परमात्मा के गुणों का आभाव देखते
हैं हमें इस शास्त्र वचन पर सहज अविश्वास हो उठता है । लेकिन हमें यह समझना चाहिए की
वर्तमान स्थिति में मनुष्य एक बीज है और परमात्मा एक वृक्ष । मोटे
बाहरी तौर पर वृक्ष और बीज की बराबरी की तुलना
नहीं की जा सकती है , लेकिन तत्वतः दोनों एक
ही हैं । अपनी सुप्त क्षमताओं का ठीक प्रकार से
प्रयोग न कर पाने के कारण मनुष्य मलीन
, दीन हीन अवस्था में पड़ा रहता है और अपना पूरा विकास नहीं कर पाता है । लेकिन उसे
पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है की वह अपनी क्षमताओं
को जाने, उनका विकास करे और चाहे जिस दिशा
में उन्हें बढ़ाये ।
बरगद का एक बीज अपने अंदर विशाल वृक्ष को छुपाये रहता है । जब भी उसे अवसर
मिलता है वह अपनी छुपी संपत्ति को प्रगट कर देता है । बरगद के बीज में एक विशाल वृक्ष उत्पन्न की करने की सुप्त
शक्ति है , लेकिन कई बार बीज नष्ट हो जाते
हैं ,उनका अंकुर निकलते ही झुलस जाता है या कुछ बढ़ाने पर पौधा मुरझा जाता है, यह बीज की अयोग्यता नही बल्कि उत्पादन क्रिया की त्रुटि है । इसी प्रकार असंख्य जीव अपनी संभावनाओं से अनजान दुखी और नारकीय
जीवन बिताते रहते हैं ।
जीव चैतन्य है और उसका पोषण
अनंत चेतना करती है, इसलिए उसके अंदर वह सुप्त शक्ति है वह अपनी सम्भावना को सर्व शक्तिमान
के सत्तर तक उठा सके ।
जो जैसा बनना चाहता है वैसा बन जाता है । इसका रहस्य मन में उठने
वाली इच्छा से आरम्भ होता है । मन का धर्म
इच्छाएं उत्पन्न करना है । मन में कोई इच्छा उठी , शीघ्र ही मन की सेविका कल्पना शक्ति उस इच्छा का एक मानसिक चित्र रच देती है , एक
कल्पना चित्र मानस पटल पर बन जाता है । यदि
मन की इच्छा निर्बल हुई तो वह कल्पना चित्र
कुछ क्षणों बाद ही अवचेतन मन की परतों में
विलीन हो जाएगा, लेकिन यदि वह इच्छा बलवती
हुई तो मन की विद्युत धारा चारो और उड़ उड़ कर
अनुकूल वातावरण की तैयारी में लग जायेगी । बलवती इच्छा शक्ति अब बुद्धि को सक्रिय करेगी
। अब बुद्धि में उस कल्पना चित्र के प्रप्ति के लिए तरकीबें उठेंगीं , संकटों का मुकाबला
करने लायक योग्य शक्ति पैदा होगी और ऐसी ऐसी
गुप्त सुविधाएं उपस्थित होगी जिनसे अब तक हम
अनजान थे ।
जैसे एक इंसान ने सड़क पर एक BMW कार को देखा । अगर उसका देखना ऐसे
ही था जैसे एक कैमरे के लेन्स से देखना तो उस कार के बारे में उसकी इच्छा शक्ति बलवती
नहीं हो पाएगी, और कुछ ही समय के अंतराल पर उसे उस कार की विस्मृति हो जायेगी । लेकिन
यदि उस BMW कार को देख कर उसके मन में यह इच्छा उठी की उसके पास भी ऐसी कार हो , उसके
मन में उस कार का एक कल्पना बिम्ब बन जाएगा
, यदि उसकी इच्छा और तीव्र हुई की उसके पास वह कार होनी ही चाहिए , तो इच्छा शक्ति की खाद खुराक से वह चित्र कुछ ही समय में परिपुष्ट हो जाएगा और वास्तविक कार से
अपना घनिष्टता स्थापित कर लेगा ,बुद्धि में तरकीबें उठेंगीं की कैसे उस कार को प्राप्त किया जाए, यदि उस आकर्षण चित्र
को निरंतर पोषण मिलता रहा तो , बाहर की परिस्थितियां
कितनी भी प्रतिकूल हो , धीरे धीरे वह आकर्षण चित्र अपना काम करता रहेगा और परिस्थितियों को अनुकूल करने की
दिशा में कार्य आरम्भ कर देगा । इच्छा उठने
से लेकर वह कार मिलाने तक की मार्ग की असंख्य छोटी मोटी बाधाएं को साफ़ करने
में वह आकर्षण कितने काम करता है, कितने संघर्ष करता है यह हम नहीं जान पाते । यही
इच्छा शक्ति असंख्य प्रकार की शारीरिक, मानसिक और बाहरी परिस्थितियों की कितने बलपूर्वक चीर चीर कर
अपना रास्ता साफ़ करती है ,इसे हम देखा पाते
तो समझ पाते की हमारे अंदर अत्यंत प्रभावशाली
चुम्बक शक्ति भरी पड़ी है ।
यह नियम है की तत्व जितने जितने सूक्ष्म होते जायंगे उसमें निहित
शक्ति उतनी ही बढ़ती जायेगी । विचार से सूक्ष्म इच्छा है और इच्छा से अधिक सूक्ष्म और
शक्ति शाली संकल्प है । विचार शक्ति को इच्छा शक्ति और कालांतर में संकल्प शक्ति में
परिवर्तित करके जीव जो जो बनना चाहता है बन सकता है जो जो प्राप्त करना चाहता है प्राप्त
कर सकता है ।
विचार से इच्छा और इच्छा से संकल्प उत्पन्न करने का विज्ञान ही हुना
मिस्टिक है । हुना Philippines आइलैंड का वह गुप्त विज्ञान है जो गुप्त है लेकिन लुप्त
नहीं है । सर्वसाधारण की समझ में वाला और मनुष्य जीवन का वास्तविक लाभ उठाने की सम्भावना
देने वाला यह विज्ञान , प्रयोगकर्ता को चमत्कारी परिणाम देता है ।
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