Thursday, January 4, 2018

प्राणायाम : प्राणायाम और आयु


किस प्राणी की कितनी आयु होनी चाहिए ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शरीर विकास में जितना समय लगता है उससे छह गुने समय तक उस प्राणी को  जीना चाहिए। अमेरिका मेडिकल एसोसिएशन  ने इसकी पुष्टि में अनेक प्राणियों की आयु का प्रमाण सहित उल्लेख दिया है। वे कहते हैं कि मनुष्य 25 वर्ष की आयु में अपना पूर्ण विकास कर लेता है अस्तु उसे 150 वर्ष जीना चाहिए।लेकिन ऐसा होता क्यों नहीं ? 

आयु वृद्धि के साथ साथ थका मोटा हृदय शरीर में उतना रक्त नहीं फेंक पाता जितना कि उसे तरोताजा बनाये रखने के लिए आवश्यक है। 50 की आयु तक पहुंचते ही , पसलियाँ और छाती की हड्डियां कड़ी हो जाती हैं अस्तु लचीलापन घट जाने से फेफड़ों से उतनी साँस नहीं ली जाती जितनी कि आवश्यक हैं आयु वृद्धि के साथ-साथ गुर्दों की क्षमता ढलती उम्र में आधी रह जाती है। नसों और नाड़ियों के कम्पन 20 प्रतिशत घट जाते हैं। इस सबका निष्कर्ष यह है-आदमी साठ वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते सूखना आरम्भ कर देता है। उसमें पानी की मात्रा घट जाती है फलस्वरूप जीवित कोशिकाओं  में मुरझायापन बढ़ता जाता है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कठोर और कमजोर होती चली जाती है। यह सूखापन ही बुढ़ापा है। बुढ़ापा मृत्यु का सहोदर भाई है। बुढ़ापे के चिन्ह जितने ज्यादा स्पष्ट हों तो आदमी मौत के नजदीक उसी तेजी से बढ़ता चला जायगा।

डाo  सीo  वार्ड क्रेम्पटन का कथन है बुढ़ापा कैलेंडर के आधार पर नहीं ‘क्षति’ के आधार पर आता है। वैज्ञानियों के अनुसार बुढ़ापे और मृत्यु के प्रमुख कारण  हैं :

शरीर का तापमान :

सांसों की गति में तीव्रता  होने  पर  जीवन का  शक्ति कोष जल्दी समाप्त हो जाता है | सांस की चाल जितनी धीमी होगी शरीर उतने ही दिनों तक जीवित रह सकता है | प्रति मिनट सांस की चाल से जीवन अवधि जुड़ी रहती है जैसे प्रतिमिनट सांस के अनुसार  ख़रगोश सांस 38,आयु 8 साल ; कबूतर सांस 37 , आयु 8 साल ; कुत्ता सांस 28 आयु 13 साल; बकरी  सांस 24,आयु 14 साल ; घोड़ा सांस 18 आयु 50 साल ;  मनुष्य सांस 11  -15  आयु 100 साल ;  हाथी सांस 11आयु 100 साल ;  साँप  सांस 7 , आयु 120 साल ; कछुवा सांस 4 आयु 150 साल  ।   

पहले मनुष्य प्रति मिनट के हिसाब से 11-12 सांस लेता था तो उसकी आयु 100 साल के आस पास होती थी लेकिन अब सांसों की दर बढ कर 15-18 हो गई है तो आयु भी उसी अनुपात में में कम हो गई  है | सांसों की गति बढने से शरीर का तापमान बढ़ता  है जिसके चलते आयु कम हो जाती  है | जो जानवर हांफते है जैसे कुत्ते इत्यादि उनके शरीर का तापमान उसी के अनुसार बढ जाता है और उनकी जल्दी  मृत्यु हो जाती है | बुखार आने पर भी मनुष्य हांफने लग जाता है |  यानि हाँफना और तापमान में वृद्धि  दोनो एक दूसरे  से सम्बंधित है |  जिसकी सांस तेज़ चलेगी उसके शरीर का तापमान उसी अनुपात में बढेगा या जिसके शरीर का तापमान बढेगा उसके सांसों की चाल में तेज़ी आ जायेगी | दोनो ही परिस्थितियों में आयु कम होती है और मृत्यु जल्दी आती है  | 

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान में मनुष्य के  शरीर का तापमान 98.6°F रहता है इसे घटा कर   आधा  कर यदि 49.3 °F तक  लाया जाये तो मनुष्य  आराम से 1,000 साल तक जी सकता है | 

प्राणायाम  में गहरी सांस लेने का अभ्यास किया जाता है इससे सांसों का नियमन होता है शरीर का तापमान कम रहत है फलस्वरूप स्वस्थ्य और लम्बा जीवन मिलता है |सांस की दर में कमी आने से शरीर में मेटाबॉलिक गतिविधि घट जाती  है, दिल की धडकन में कमी और रक्त वाहिनियों में रक्त दवाब में कमी आती है ,  जिसके कारण मस्तिष्क को तनाव से मुक्ति और शरीर और मस्तिष्क को पूर्ण  विश्रांति मिलती है फलस्वरूप शरीर का तापमान स्वतः कम हो जाता है |   

कोशिकाओं का विभाजन :

शरीर की कोशिका का अपना एक जेनेटिक क्लॉक होता है । हर कोशिका का विभाजन अधिकतम 50 बार होता है ।बुढ़ापे  में कोशिका- विभाजन  के बीच का अंतराल  घट जाता है और जो क्रिया 100 साल में पूरी होनी चाहिए वह मात्र 50 -60  की आयु तक आते आते पूरी हो जाती है । इसके बाद कोशिकाओं के विभाजन और नवीनीकरण की गुंजाइश बिलकुल समाप्त हो जाती है और  शरीर अक्षम  बनते  बनते मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । 

विज्ञान के अनुसार यदि कोशिका विभाजन के बीच की अवधि को बढ़ाया जा सके तो जिस अनुपात में अवधि बढ़ेगी उसी  अनुपात में मनुष्य की आयु भी बढ़ेगी । वर्तमान में भी कई योगी, संत और हिमालय के योगी दिखाई देते हैं जिनकी उम्र सैकड़ों वर्ष होती है इसका कारण यही होता है  की कोशिका विभाजन की जो प्रक्रिया एक सामान्य मनुष्य में 50  वर्षों  में पूरी होती है वह प्रक्रिया योगियों में सैकड़ों वर्षों  में पूरी होती है ।

यदि मनुष्य के शरीर का तापमान घटा दिया जाये तो वह  शीत निद्रा  (हाइबरनेशन )में पहुंच जाता है इससे उसके थकी हुई कोशिकाएं  विश्राम पा कर पुनः सशक्त हो कर नव जीवन प्रारंभ करती है जिससे मौत और बुढापे को आगे धकेला  जा सकता है | 

प्राणायाम से कम ऑक्सिजन में ही शरीर का काम चल जाता है , दिल और नाड़ियों की गति मंद होने से रक्त विकार कम होते है | प्राणायाम से ऑक्सीजन की खपत और दिल की धड़कन की गति कम हो जाती  है ।सांस क्रिया शिथिल होने पर शरीर की ऑक्सीजन की पूर्ति में  20 % तक की कमी आती है इससे मेटाबोलिक प्रक्रिया में खपत होने वाली ऊर्जा की बचत होती है । प्राणायाम के माध्यम से कोशिकओं के विभाजन के मध्य के  अंतराल को बढ़ाया जा सकता है और लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है । 

मस्तिष्क क्षय :

बुढ़ापे में मस्तिष्क की कोशिकाएं  भी अकड़ जाती हैं और स्मरण शक्ति, निर्णय शक्ति और आत्म-नियन्त्रण शक्ति तीनों ही घट जाती है। सीखने की क्षमता चली जाती है और जो कुछ सीखा जाता है उसी का दुराग्रह स्वभाव का अंग बन जाता है। कृपणता, चिड़चिड़ापन, सन्देह स्वादेन्द्रिय और कामुकता सम्बन्धी विकृत भटकाव बुढ़ापे में अधिक उभरते हैं। युवावस्था में इन पर काबू पाना सरल हैं, पर बूढ़ा आदमी अपने को कदाचित ही सँभाल सुधार पाता है।

प्राणायाम से मस्तिष्क को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है । प्राणायाम से मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों  के बीच सामंजस्य स्थापित होता  है । मस्तिष्क से अल्फा तरंगें बहुलता से निकती हैं जो तनाव को कम करती  है । इससे अनिद्रा, चिंता,खिन्नता,अवसाद आदि रोग दूर होते हैं और मनुष्य लम्बी आयु प्राप्त करता है । 

अंतःस्रावी प्रणाली क्षय :

मनुष्य शरीर में 7  एंडोक्राइन ग्लैंडस या अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ होती हैं जो सीधे आपने स्राव रक्त में मिला  देती हैं । ये ग्रंथियां 12  से भी अधिक हार्मोन छोड़ती  | ये हार्मोन शरीर के प्रत्येक प्रक्रिया और सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं । जब शरीर पर किसी रोग या रोगाणु का आक्रमण होता है तो ये  ग्लैंड्स उस रोग से लडने के लिए रक्त में गाबा ग्लोबुलिंस नामक तत्व की वृद्धि करते हैं और शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति देते हैं । आयु बढ़ाने के साथ साथ अंतःस्रावी  ग्रंथियों की सक्रियता में कमी आती जाती है और शरीर  रोगों का घर बनता जाता है और मनुष्य मृत्यु के समीप पहुंच जाता है । 

मनुष्य में थाइरोइड ग्लैंड की खराबी से आँखें पीली हो जाती है , गाल बैठ जाते हैं, बाल सफ़ेद हो जाते हैं, मांसपेशियां कमजोर हो जाती और मनुष्य असमय बूढ़ा हो जाता  है । थाइरोइड ग्लैंड को ठीक करके पुनः यौवन अवस्था के चिंन्ह दिखाई  दे सकते हैं । 

प्राणायाम के द्वारा प्राण तत्व एंडोक्राइन ग्लैंड्स को प्रभावित करता है और उसकी क्रियाशीलता को संतुलित करता है जिसके कारण शरीरिक और मानसिक व्याधियां दूर होती हैं और मनुष्य निरोगी होकर लम्बी आयु प्राप्त करता है । 

प्रतिरक्षा तंत्र  क्षय :

शरीर को स्वस्थ रखने वाल तंत्र प्रतिरक्षा प्रणाली या इम्यून सिस्टम है ।आयु  बढने के साथ साथ प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ती जाती है और मनुष्य असमय मृत्यु को प्राप्त होता है । 

प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह मन के अधीन है ।  वैज्ञानिकों ने विभिन्न शोधों से यह निष्कर्ष निकाला है की  मन  के गड़बड़ाने  से शरीर भी गड़बड़ाने लगता है । मानसिक गड़बड़ी में प्रतिरक्षा तंत्र में दो प्रकार से खराबी आ जाती है - --   पहला प्रतिरक्षा प्रणाली  की क्रियाशीलता मंद पड़ जाती  है दूसरा  प्रतिरक्षा प्रणाली भ्रमित हो जाती है  । जैसे कैंसर के समय प्रतिरक्षा प्रणाली अत्यन्त मंद कार्य कर रही होती है और सन्धिवात  में प्रतिरक्षा प्रणाली भ्रम की अवस्था में होती है । चिंता, अवसाद, भय ,असंतोष,घबराहट, तनाव में शरीर में उत्पन्न होने वाले अड्रेनोकोर्टिको  स्टेरॉइड्स शरीर की  प्रतिरक्षा प्रणाली को अस्त व्यस्त कर देते हैं जिसके चलते शरीर अस्वस्थ हो जाता है । 

प्राणायाम से रक्त में नुट्रोफिल्स कोशिकाओं की सक्रियता में असाधारण वृद्धि होती है , जिसके कारण प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है । नुट्रोफिल्स  कोशिकाएं वाइट ब्लड सेल्स सम्बन्धी प्रतिरक्षा  प्रणाली के दो तिहाई भाग का निर्माण करती हैं । 

मानसिक तनाव : 

नकारात्मक विचार या भावनाएं  रक्त में विकार उत्पन्न करते हैं और तभी रोगाणुओं की वृद्धि होती है। यह विचार और भावनाओं के आवेश पर है कि उनका प्रभाव धीरे होता है या शीघ्र पर वह निश्चित है कि मन के भीतर अदृश्य रूप से जैसे अच्छे या बुरे विचार उठते रहते हैं, उसी तरह के रक्तकण शरीर को सशक्त या कमजोर बनाते रहते हैं, मनोभावों की तीव्रता की स्थिति में प्रभाव भी तीव्र होता है। यदि कोई विचार हल्के उठते है तो उससे शरीर की स्थूल प्रकृति धीरे-धीरे प्रभावित होती रहती है और उसका कोई दृश्य रूप कुछ समय के बाद देखने में आता है।रक्त का दबाव और धड़कन में वृद्धि के साथ ही शरीर की दूसरी सब ग्रन्थियाँ जीवन में काम आगे वाले शारीरिक रस निरर्थक मात्रा में पटक देती है। उससे शरीर की व्यवस्था और रचनात्मक शक्ति कमजोर पड़ जाती है और मनुष्य रोगी या बीमार हो जाता है। शरीरिक स्वास्थ्य मन के अधीन है । 

प्राणायाम के माध्यम से मस्तिष्क में अल्फा तरंगें बहुलता से निकलती हैं , ये तरंगें शरीर में ताज़गी और विश्रांति लाती हैं । अल्फा तरंगें शरीर को शिथिल और शांत करती हैं । ह्रदय गति, रक्तचाप ,नाड़ी की चाल और श्वसन गति में एक सकारात्मक  संतुलन होता है । मनुष्य तनाव से मुक्ति पाता  है और  लम्बी  आयु  प्राप्त करता है । 

 मुक्त कण या फ्री रेडिकल्स  :

शरीर में होने वाली विभिन्न चयापचय ( मेटाबोलिक ) क्रियाओं में कुछ व्यर्थ और हानिकारक अणु भी बन जाते हैं। इन अणुओं में इलेक्ट्रोन्स की संख्या प्रोटोन्स की अपेक्षा कम होती है जिससे ये अति सक्रिय तथा अस्थिर होते हैं। इन्हें हम “मुक्त कण” कहते हैं और ये मौका मिलते ही हमारे स्वस्थ अणुओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं, इस क्रिया को ऑक्सीडेशन कहते हैं। इलेक्ट्रोन खो कर हमारे स्वस्थ अणु भी मुक्त कणों की भांति व्यवहार करने लगते हैं। और अपने अंतःकरण में बैठे प्रोटोन्स की इलेक्ट्रोन-पिपासा शांत करने हेतु अपना मुख्य काम छोड़ कर इलेक्ट्रोन्स का जुगाड़ करने निकल पड़ते हैं। इस तरह निरंतर इलेक्ट्रोन चुराने का एक श्रंखला-बद्ध सिलसिला शुरू हो जाता है, जिससे हमारी आयुवृद्धि की गति तेज हो जाती है, त्वचा में झुर्रियां बनने लगती हैं और हम विभिन्न बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अस्थि-संध शोथ, पार्किंसन्स, कैंसर आदि का शिकार हो जाते हैं। मुक्त कण हमारे बाह्य वातावरण और भोजन द्वारा भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

मुक्त  कणों से रक्षा करने के लिए हमारे शरीर में अनेक अणु जैसे विटामिन-ई, विटामिन-सी, बीटा-केरोटीन, किण्वक आदि होते हैं, जिनमें कई अतिरिक्त इलेक्ट्रोन्स होते हैं और जो बिना अस्थिर हुए मुक्त कणों को इलेक्ट्रोन्स दान देकर उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं। इन्हें हम “प्रति-ऑक्सीकारक” या एंटीऑक्सीडेंट कहते हैं।एंटीऑक्सीडेंट आयुवर्धक और आरोग्यवर्धक होते हैं। ये डीएनए की संरचना में विकृति नहीं होने देते हैं, रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखते हैं और त्वचा को युवा बनाये रखते हैं। 

प्राणायाम से शरीर में ऑक्सीजन की खपत कम हो जाती है फलस्वरूप फ्री रेडिकल्स कम मात्रा में बनते हैं और एंटी ऑक्सीडेंट्स की मात्रा बढ़ जाती है  जिससे  शरीर और मन विघटन से बच जाते हैं । 

रक्त की विषाक्तता:

शरीर संचालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शुद्ध रक्त की होती है । यदि रक्त अशुद्ध हुआ तो स्नायु-मंडल और  एंडोक्राइन ग्लैंड्स अपना  काम ठीक से नहीं करेगें और शरीर निर्बल और अस्वथ्य होता चला जाएगा । शरीर की मांसपेशियों में होने वाले रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप रक्त में लैक्टेट की मात्र काफी बढ़ जाती यही । यह विष रूपी लैक्टेट मानसिक व्यग्रता, तनाव,चिंता, थकान ,अवसाद जैसे विकार उत्पन्न करता है और  असमय मनुष्य को मृत्यु की ओर धकेलता है ।

रक्त को शुद्ध  करने का आधार ऑक्सीजन है । प्राणायाम के द्वारा रक्त को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलता रहता है और निरन्तर रक्त शुद्धि होती रहती है । 

प्राणायाम के प्रभाव से रक्त में स्थित लैक्टेट का स्तर 33 % तक काम हो जाता है । लैक्टेट की मात्रा कम होने से उच्च रक्तचाप ,ह्रदय घात आदि रोगों की सम्भावना काफी कम हो जाती है । 

 भोजन का ठीक तरह हजम न होना : 

हमें जल्दी मौत के मुंह में धकेलने वाला सबसे अधिक दोष आहार सम्बन्धी नियमों के व्यतिक्रम का है। हम वह खाते हैं जो नहीं खाना चाहिए-उतना खाते हैं जितना पचा नहीं सकते। भूल देखने में जरा सी मालूम पड़ती है, पर उसके परिणाम बहुत ही घातक होते हैं। स्वाद के प्रलोभन में फंसकर आहार सम्बन्धी मर्यादाओं का उल्लंघन करना अन्ततः बहुत ही महँगा पड़ता है।पाचन क्रिया की खराबी से रक्त विषाक्त हो जाता  है और रक्त में  पोषक तत्वों की कमी हो जाती है  । बुढ़ापे में पाचन तंत्र की सक्रियता कम हो जाती  है ,जिसके कारण भोजन ठीक से न पचने के कारण काफी बेकार अंश आंतों में पड़े पड़े सड़ता रहता है और हानिकारक विषाक्त तत्वों का निर्माण करता रहता है | यह विषाक्त तत्व रक्त के द्वारा पूरे  शरीर के स्वास्थ्य और शक्ति का नाश करते हैं । शरीर में उपस्थित यह दूषित मल ही अनेकों रोगों को जन्म देता है और असामयिक बुढ़ापे  और मौत का कारण  बनता है । 

प्राणायाम के द्वारा शरीर के भीतरी अवयवों  का व्यायाम होता है ।प्राणायाम में फेफड़ों के नीचे  स्थित डायफ्राम श्वास-प्रश्वास के साथ  फैलता और सुकडता  है जिसके चलते उसके आस पास मौजूद अवयवों जैसे  आमाशय  , लिवर,पेंक्रियाज , सप्लीन की हलकी हलकी मालिश हो जाती है । इससे उनमें से निकलने  वाले पाचक - रसो में वृद्धि होती है भोजन ठीक तरह से पचता है और रक्त की शुद्धि होती है । इसलिए लम्बी आयु के लिए प्राणायाम आवश्यक है । 

शरीर एक सुकोमल यन्त्र है इसे सावधानी के साथ प्रयोग में लाया जाये तो देर तक सही काम देता रहेगा । प्राणायाम आसमयिक बुढ़ापे और मृत्यु से हमें बचाता है ।वर्तमान में आयु बढ़ाने और जवान रहने के जितने भी कायाकल्प के रसायन और विधियां हैं वे शरीर तक ही सिमित है जबकि प्राणायाम शरीर के साथ साथ मन की भी शुद्धि करता है और उन्हें विकार मुक्त  करता है । 


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1 comment:

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