संस्कृत प्राण शब्द जीवनी शक्ति या चेतना शक्ति का बोधक है | वह अनंत शक्ति जो सूक्ष्म तरंगों के रूप में अखिल सृष्टि में अनादि समय से उपस्थित है , जिसमें में सृष्टि बार बार उत्पन्न और विलीन होती है |
विश्व के समस्त पदार्थ या तत्व तरंग या वाइब्रेशन में हैं | छोटे से छोटे परमाणु से लेकर बड़े से बड़े खगोलीय पिंडों तक सभी वाइब्रेशन की दशा में हैं | यहां तक हमारे कल्पना ,विचार, भाव, संकल्प इत्यादि भी एक निश्चित वाइब्रेशन पर कम्पन करते हैं | इस सतत वाइब्रेशन से ही अखिल सृष्टि का सञ्चालन हो रहा है यदि सृष्टि का एक सूक्ष्म कण भी कंप से रहित हो जाय तो अखिल सृष्टि का विनाश हो जाएगा | यानी सतत कम्पन या वाइब्रेशन ही सृष्टि का नियम है | बस वाइब्रेशन, लगातार वाइब्रेशन , परिवर्तन , लगतार परिवर्तन यही सृष्टि का चक्र है |
अब सवाल यह उठता है की आखिर लहर, तरंग या वाइब्रेशन है क्या ?
इसका मतलब है की माध्यम के कणों के कम्पमान होने से तरंगें या वाइब्रेशन उठती हैं और यह तभी संभव है जब माध्यम के दो कणों के बीच कुछ न कुछ दूरी जरूर होगी , तभी कण अपनी जगह पर कम्पन कर सकते हैं |इसे एक सरल उदाहरण से समझे जैसे आप एक डिब्बे में काफी कांच की गोलियां डाल दे और डिब्बे को हिलाएं तो उसके अंदर गोलियां के हलचल से ध्वनि उत्पन्न होगी और आप फिर उसमें काफी गोलियां डाल दे तो गोलियों के बीच रिक्त स्थान न होने के कारण उनमें कोई हलचल नही होगी और डिब्बे को हिलाने पर कोई ध्वनि भी उत्पन्न नहीं होगी | अतः गोलियां के हलचल के लिए डिब्बे में रिक्त स्थान का रहना अनिवार्य है |
यानी वाइब्रेशन या तरंगों की चार मूल भूत आवश्यकता है
- एक माध्यम का होना
- उस माध्यम का छोटे छोटे सूक्ष्म कणों से निर्मित होना
- कणों के मध्य दूरी होना
- एक विक्षोभ या डिस्टर्बेंस
तो एक माध्यम और उसमें विक्षोभ के कारण उत्पन्न उसके सूक्ष्म कणों के कम्पन्न ही तरंगों की रचना कर सकते हैं |
क़्वांटम फिजिक्स के अनुसार जो वस्तु कण के रूप में है वह उसी प्रकार से तरंग के रूप में भी है , साधरणतया हम उसे तरंग रूप में नहीं देख पाते हैं क्योंकि हमारी बुद्धि पदार्थ से बंधी होती है जैसे हम एक कुर्सी को देखते हैं तो वह हमें एक ठोस आकार, भार वाली वस्तु लगाती है | वास्तव में कुर्सी का निर्माण छोटे छोटे कम्पन करने वाले अणुओं से हुआ है और अणु भी कम्पन करने वाले परमाणुओं से बने हैं | परमाणु इलेक्ट्रान, प्रोटोन , न्यूट्रॉन से बने हैं और यह सब फंडामेंटल पार्टिकल्स या मूलभूत कणों से बने हैं | विज्ञान के अनुसार मूलभूत कण भी अंतिम कण नहीं हैं वे भी अति सूक्ष्म कणों से बने हैं | वर्तमान में वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल की अवधारणा को विकसित किया उनके अनुसार गॉड पार्टिकल वे अंतिम कण हैं जो सृष्टि के पदार्थों को उनका आकार और भार देते हैं और समस्त शक्तियां उसी में उत्पन्न होती हैं |
यानी फंडामेंटल पार्टिकल्स या मूलभूत कणों से भी सूक्ष्म कण या माध्यम होते हैं जो मूलभूत कणों को आपस में बंधे रखते हैं ये फंडामेंटल पार्टिकल्स प्रोटोन / न्यूट्रॉन को बनाते हैं ; प्रोटोन , न्यूट्रॉन से परमाणु ; परमाणु से अणु ; अणुओं से पदार्थ और पदार्थ से ग्रह , तारे, आकाश गंगा और ब्रह्माण्ड बने हैं |
आइंस्टीन के अनुसार ऊर्जा का सम्मलित स्वरुप ही पदार्थों के रूप में दिखाई देता है | E = mc 2 के अनुसार पदार्थ ऊर्जा से ही बनते है | पदार्थ ऊर्जा द्वारा संचालित है जिनके कारण पदार्थों के अनगिनत रूप और भेद उत्पन्न होते हैं |
किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता उसकी ऊर्जा कहलाती है | फिजिक्स के अनुसार ऊर्जा या एनर्जी के 6 प्रकार हैं , ताप, प्रकाश, चुम्बकीय,विद्युत्, ध्वनि और घर्षण | और ये सभी तरंग स्वरुप में होते हैं | जैसे ध्वनि की तरंगें ,प्रकाश की तरंगें ,ताप की तरंगें या विद्युत् की तरंगें आदि | प्रकाश या ध्वनि भी छोटे छोटे कणों से निर्मित है तभी उनमें लहरों या तरंगों का उठना संभव होता है | अब सवाल यह उठता है की यदि एनर्जी तरंग स्वरूप है तो उसके संचरण के लिए एक सूक्ष्म कणों युक्त एक माध्यम की भी आवश्यकता पड़ती होगी | यही माध्यम जिसमें एनर्जी के कण कम्पमान होते हैं चेतना कहलाते हैं और यही चेतना प्राण है |
अर्थात प्राण एक ऐसा सूक्ष्तम पदार्थ का माध्यम है जिसके अंदर स्थूल (पदार्थ ) और सूक्ष्म (ऊर्जा ) की तरंगें उत्पन्न होती रहती हैं | स्थूल और सूक्ष्म जगत की समस्त शक्तियां प्राण की ही अभिव्यक्ति है | प्राण एक सर्वव्यापी माध्यम है उसके कणों में विकार या डिस्टर्बेंस उपन्न होने पर ही पदार्थ और उर्ज़ा उत्पन्न होते हैं |
प्राण ही पदार्थों के परमाणुओं को बांध कर रखती है जिससे उन्हें एक निश्चित आकार और भार मिलता है और प्राण ही ऊर्जा के संचरण का माध्यम भी बनता है | प्राण एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म और विश्वव्यापी मूलभूत तत्व है जो बड़े से बड़े पिंड से लेकर छोटे से छोटे कण में भी पाया जाता है और भांति भांति से निर्माण, गति और क्रिया के रूप में प्रगट होता है |
सृष्टि के समस्त पदार्थ (ठोस ,द्रव्य, गैस ) , समस्त ऊर्जाएं ( ध्वनि, प्रकाश, वैद्युत, ताप, चुम्बकीय और घर्षण ) समस्त बल (विद्युत - चुम्बकीय बल, गुरुत्वाकर्षण बल , नाभकीय बल ) प्राण में ही उत्पन्न होते हैं | प्राण वह प्रधान तत्व है जो समस्त जड़-चेतन , दृश्य -अदृश्य सत्ता में उपस्थित है फिर भी उन सबसे भिन्न है |
प्राण ही पदार्थों के परमाणुओं को बांध कर रखती है जिससे उन्हें एक निश्चित आकार और भार मिलता है और प्राण ही ऊर्जा के संचरण का माध्यम भी बनता है | प्राण एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म और विश्वव्यापी मूलभूत तत्व है जो बड़े से बड़े पिंड से लेकर छोटे से छोटे कण में भी पाया जाता है और भांति भांति से निर्माण, गति और क्रिया के रूप में प्रगट होता है |
सृष्टि के समस्त पदार्थ (ठोस ,द्रव्य, गैस ) , समस्त ऊर्जाएं ( ध्वनि, प्रकाश, वैद्युत, ताप, चुम्बकीय और घर्षण ) समस्त बल (विद्युत - चुम्बकीय बल, गुरुत्वाकर्षण बल , नाभकीय बल ) प्राण में ही उत्पन्न होते हैं | प्राण वह प्रधान तत्व है जो समस्त जड़-चेतन , दृश्य -अदृश्य सत्ता में उपस्थित है फिर भी उन सबसे भिन्न है |
पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु और आकाश पांच जड़ तत्व हैं जिनसे संसार के विभिन्न दृश्य पदार्थों की रचना होती है | इन पांच जड़ तत्वों से निर्मित निर्जीव संसार में हलचल, गति, विकास के जो भी दृश्य दिखाई देते हैं उसके पीछे पञ्च चैतन्य तत्व कार्य करते हैं जो विचार, प्राण, बुद्धि , आत्म और ब्रह्म तत्व कहलाते हैं | किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तो कहते हैं की उसके प्राण निकल गए , प्राण तत्व पञ्च जड़ तत्वों में से एक भी नही है क्योंकि शव के शरीर में पांचों जड़ तत्व उपस्थित रहते हैं और आत्मा भी हिन्दू धर्म के अनुसार मृत शरीर के आस पास ही तेरह दिनों तक भ्रमण करती है | अर्थात प्राण तत्व वह क्षमता है जो आत्मा को शरीर में रहने योग्य बनाती है | या कह सकते हैं प्राण वह पुल है जो शरीर और आत्मा को जोड़ता है , जिसकी कड़ी टूटने पर आत्मा का शरीर से सम्बंध विच्छेद हो जाता है | जिस प्रकार निर्जीव मृत शरीर में कीड़े पड़ जाते हैं उसी प्रकार देह की जिस कोशिका , अवयव , अंग और संस्थान में प्राण रूप विद्युत् शक्ति की कमी होगी उस स्थान पर जीवाणु, विषाणु अपना घर बना लेते हैं और वह अंग दुर्बल, निश्तेज और रोगी हो जाता है |
ऊर्जा के सहारे यंत्रों का सञ्चालन होता है , मनुष्य शरीर भी एक यंत्र है उसके सञ्चालन में जिस विद्युत् की आवश्यकता पड़ती है उसे प्राण कहते हैं | शरीर के प्रत्येक कोशिका को जीवित रहने के लिए रक्त,वायु और विद्युत् की आवश्यकता होती है | यह आवश्यकता दो प्रकार से पूरी होती है प्रथम ह्रदय और मस्तिष्क में विनिर्मित होने वाली विद्युत् से और दूसरी जो अखिल ब्रह्माण्ड में व्याप्त कॉस्मिक एनर्जी या ब्रह्मांडीय ऊर्जा है उससे | सर्वव्यापी प्राण शक्ति प्रत्येक जीव , वनस्पति , जड़ पदार्थ को प्रभावित करती है |
शरीर या जीव सत्ता में स्थित प्राण को आत्माग्नि कहा जाता है | उसी प्रकार से समस्त ब्रह्माण्ड के सञ्चालन हेतु जिस विद्युत् की आवश्यकता पड़ती है वह भी प्राण शक्ति ही है जिसे ब्रह्माग्नि कहते हैं | तात्विक रूप से जीवसत्ता और ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करने वाली विद्युत् ऊर्जा प्राण एक ही है केवल आत्माग्नि लघु है और ब्रह्माग्नि विभु है |
जैसे पावर हाउस और घर के अंदर चलाने वाले उपकरणों में दौड़ाने वाली विद्युत् मूल रूप से एक होती हुई भी अपने समर्थ के अनुसार अगल- अगल होती है | जीव सत्ता के आत्माग्नि में ब्रह्माग्नि का अनुदान सतत पहुंचते रहना आवश्यक है | जिस प्रकिया द्वारा इस प्रयोजन की पूर्ति होती है उसे प्राणायाम कहते हैं |
क्रमश: ......
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